क्या EGI अध्यक्ष शेखर गुप्ता झूठी खबर फ़ैलाने में विशेषज्ञ हैं?

शेखर गुप्ता - विकिपीडिया
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
पत्रकारिता जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है, को एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष पद पर बैठे शेखर गुप्ता ही कलंकित कर रहे हैं। इतने प्रतिष्ठित पद पर आसीन ही भ्रामक समाचार प्रसारित करेंगे, दूसरों को क्या कहें? अगर इनसे किसी पत्रकार के विरुद्ध भ्रामक यानि फेक न्यूज़ के विरुद्ध शिकायत करने पर क्या किसी कार्यवाही की अपेक्षा की जा सकती है? पत्रकार होते हुए, शेखर को इस बात का भी ज्ञान होना चाहिए कि भ्रामक ख़बरों से देश का माहौल ख़राब होता है। दूसरे, कांग्रेस और वामपंथियों द्वारा तुष्टिकरण के चलते भारत के वास्तविक इतिहास धूमिल करने से देश का कितना अपमान हुआ है, देशवासी को अपने असली इतिहास से अज्ञान होने के कारण किस तरह साम्प्रदायिक आग में कितने लोगों की जानें स्वाह हो चुकी हैं। विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जहाँ वास्तविक इतिहास की बात करने वालों को हिन्दुवादी, साम्प्रदायिक, फिरकापरस्त, देश में शांति का दुश्मन और पता नहीं कितने नामों से बदनाम किया जा रहा है। 
वरिष्ठ पत्रकार और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट शेखर गुप्ता फेक न्यूज फैलाने के लिए कुख्यात हैं। एक बार फिर उन्होंने गलत खबर फैला कर कर्नाटक सरकार और बेंगलुरु पुलिस को बदनाम करने की कोशिश की, लेकिन Asianet News ने शेखर गुप्ता की पोल खोल दी।
दरअसल, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट के नाते शेखर गुप्ता ने एक पत्र जारी किया जिसमें लिखा गया है कि 11 अगस्त को नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में खबर करने गए कारवां के पत्रकारों के साथ बदसलूकी की गई और उसी दिन बेंगलुरु में खबर कवर कर रहे इंडिया टुडे, द न्यूज मिनट और सुवर्ण न्यूज 24X7 के पत्रकारों पर सिटी पुलिस द्वारा हमला किया गया। ये सभी पत्रकार उस समय ड्यूटी पर थे। ये दोनों घटनाएं निंदनीय है। 
आखिर किसके इशारे पर शेखर ने इस फेक न्यूज़ को फैलाया और क्यों? क्या शेखर ने पत्रकारिता नियमों का उल्लंघन नहीं किया? 80 के दशक तक फिल्म पत्रकारिता "येलो जर्नलिज्म" कहलाती थी, लेकिन शेखर गुप्ता जैसे पत्रकारों ने सारी पत्रकारिता को "येलो जर्नलिज्म" बना दिया। अगर शेखर जैसे वरिष्ठ पत्रकारों ने समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते देश के वास्तविक इतिहास को प्रकाश में लाने का प्रयास किया होता, देश में साम्प्रदायिक दंगों में बेगुनाहों को अपनी जान से हाथ नहीं धोना पड़ता।
 
दूसरे, यह कि जब किसी गैर-मुस्लिम के इष्ट देवी-देवताओं पर व्यंग किया जाता है, क्यों ये ही पत्रकार खामोश रहते हैं? यही देश में फिरकापरस्ती का माहौल फैलाते हैं, जब व्यंग बर्दाश्त नहीं होता, फिर दूसरों पर भी नहीं करना चाहिए। जब पेंटर एम.एफ.हुसैन हिन्दू देवी-देवताओं के नग्न चित्र बना रहा था, देश के कितने पत्रकारों ने उसका विरोध किया था? और चर्चित होने पर जब उसी हुसैन पेंटर को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा था, तब भी सब चुप्पी साधे रहे, क्यों? क्या इसी का नाम पत्रकारिता है, कि सरकारी प्रलोभन के लिए सरकारी तुष्टिकरण का पालन करते रहो? 

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट शेखर गुप्ता के इस पत्र का Asianet News (सुवर्ण न्यूज) ने गलत बताया है। Asianet News Network Private Limited ने लेटर जारी कर कहा है कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है। उनके पत्रकारों पर हमला बेंगलुरु सिटी पुलिस द्वारा नहीं बल्कि उन्मादी भीड़ द्वारा किया गया और उनके पत्रकारों को पिटा गया। उसके तीन रिपोर्ट्स घायल हैं और इस संबंध में बेंगलुरु में रिपोर्ट दर्ज कराई गई है।
शेखर गुप्ता की इस फेक न्यूज़ के कारण ट्विटर पर लोगों की प्रतिक्रियाएं :

 

शेखर गुप्ता फेक न्यूज फैलाने में माहिर हैं और अब नया मामला उनके एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट के नाते सामने आया है। सवाल यह है कि हकीकत जाने बगैर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और शेखर गुप्ता ने आखिर बेंगलुरु पुलिस को बदनाम करने की कोशिश क्यों की?
फिर शेखर जैसे किसी भी पत्रकार ने नागरिकता संशोधक कानून के विरोध में हो रहे धरनों और प्रदर्शनों में मुखरित हो रहे हिन्दू और हिन्दुत्व के विरुद्ध लग रहे नारों का विरोध नहीं किया। अगर यही नारे इस्लाम के विरुद्ध लग रहे होते, तब इनकी नींद खुलती और "हिन्दू आतंकवाद", "भगवा आतंकवाद" और "हिन्दू साम्प्रदायिक" आदि नामों से इस्लाम के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए आसमान सिर पर उठाए आधी रात को अदालतें खुलवा देते। 

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