आतंकियों की छवि सुधारने में लगी वामपंथी मीडिया, Al Jazeera-Guardian-CNN ने भी साधी इस्लामी टेरर पर चुप्पी: ‘भगवा’ को बदनाम करने वालों ने क्यों बदला दिल्ली ब्लास्ट पर अपना चश्मा

                       दिल्ली ब्लास्ट पर विदेशी मीडिया और भारतीय मीडिया ने अपना-अपना नैरेटिव गढ़ा
दिल्ली के लाल किले के पास हुए आतंकी कार ब्लास्ट ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। वहीं दूसरी ओर इस निंदनीय आतंकी घटना पर वामपंथी मीडिया अपना नैरेटिव चला रही है। टाइम्स ऑफ इंडिया, द वायर जैसे मीडिया पोर्टल दिल्ली बम धमाके में संदिग्ध मुस्लिमों के प्रति सहानुभूति दिखाकर उनकी छवि सुधारने में लगी हुई है।

उधर, CNN, अल जजीरा(Al Jazeera), द गार्जियन( The Guardian), डॉन (Dawn) जैसे विदेशी मीडिया संस्थानों ने दिल्ली में हुए कार ब्लास्ट को ‘घातक’ नाम देने में बिल्कुल नहीं हिचकिचाए। लेकिन यही विदेशी मीडिया संस्थानों ने धड़ल्ले से रिपोर्ट्स छापी कि कैसे भारत की सरकार दिल्ली ब्लास्ट के पीछे ‘साजिश’ तलाश रही है। इन रिपोर्ट्स में तीन एजेंडे साफ नजर आए-

  1. भारत सरकार जबरन मुस्लिमों को दिल्ली ब्लास्ट का आरोपित साबित करने में लगी है।
  2. दिल्ली में हुए कार ब्लास्ट जैसे ‘घातक’ हमले से पूरा भारत ‘डर’ गया है, यहाँ मोदी सरकार की नाकामी को दर्शाया गया।
  3. सवाल उठाए गए कि क्या भारत अप्रैल में हुए पहलगाम हमले के बाद तय की गई दुश्मन को सीधा जवाब देने वाली नीति पर कायम रहेगा?
इन सवाल और आरोपों के माध्यम से विदेशी मीडिया ने भारत सरकार को जमकर घेरा। यह विदेशी मीडिया का आम तरीका है भारत में मुस्लिम-पीड़ित को साबित करने का और वही घिसा-पीटा मोदी सरकार को ‘भगवा राजनीतिवाद’ दिखाने को और यह दर्शाने का कि मोदी सरकार ने जिन्हें बम धमाके का संदिग्ध बनाया है, इसका कारण केवल उनकी मुस्लिम पहचान है।

वामपंथी मीडिया का आतंकियों की छवि सुधारने का प्रोपेगेंडा

देश की वामपंथी मीडिया ने दिल्ली में आतंकी ब्लास्ट के संदिग्ध डॉक्टर मोहम्मद उमर नबी की छवि को सुधारने के मिशन पर उतर गई। जैसे उमर नबी एक सीधा व्यक्ति है और उसने अनजाने में दिल्ली में इतना बड़ा ब्लास्ट कर दिया हो।
द वायर ने अपने लेख में पुलवामा में रहने वाले उमर नबी के परिवार की पीड़ा प्रस्तुत की। यह लेख इस तरह लिखा गया है कि पढ़ने पर यह एहसास होता है मानो लेखक आतंक के आरोपों में शामिल लोगों को ‘पीड़ित’ के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा हो।
                                                              The Wire का लेख

उमर नबी के परिवार में उसके अब्बू के कथनों को प्रमुखता देकर यह दिखाया गया है कि वे अन्याय और दुख झेल रहे हैं, जबकि यह तथ्य नजरअंदाज कर दिया गया है कि इन्हीं का बेटा दिल्ली धमाके का संदिग्ध है।

टाइम्स ऑफ इंडिया के इस रिपोर्ट की लेखन शैली का अंदाज साफतौर पर दिखाता है कि दिल्ली धमाके का संदिग्ध डॉक्टर मुजम्मिल अहमद ‘पीड़ित’ है। रिपोर्ट में डॉ. मुजम्मिल की कॉलेज सीनियर डॉ. मोनिका लांघेह की प्रतिक्रिया दिखाई गई, वह मुजम्मिल के बारे में जानकर स्तब्ध हुईं हैं और कहती हैं, “एक श्रेष्ठ पद के व्यक्ति को गिरते देखा।” यह रिपोर्ट एक तरह से पाठक में मुजम्मिल के प्रति सहानुभूति जगाती है।

                                                        टाइम्स ऑफ इंडिया का लेख

उधर, भारत की मीडिया में दिल्ली ब्लास्ट में शामिल आतंकी उमर नबी की भाभी और आतंकी मुजम्मिल की अम्मी की ‘विक्टिम कार्ड’ वीडियो भी खूब प्रसारित की।

                                                               हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट

जहाँ उमर नबी की भाभी मुजमिल ने उमर नबी के बचपन और पढाई पर बात करते हुए उसे एक बेहतर बेटे और इंसान के रूप में पेश किया। यह माहौल बनाती है कि लोग सोच सकें- “ऐसा शांत-स्वभाव का व्यक्ति कैसे इतने बड़े आतंक जगत में शामिल हो गया?”

वहीं फरीदाबाद में 360 किलो विस्फोटक और हथियार के साथ पकड़े गए डॉ. मुजम्मिल, जो दिल्ली ब्लास्त का संदिग्ध भी है, उसकी अम्मी ने बेटे को बेगुनाह होने की बाते कहीं और आतंक के आरोपों को पूरी तरह नकारा। इस बयान के हवाले से Mint ने अपनी रिपोर्ट में आंतकी के परिवार को ‘बेबस’ और ‘अन्याय’ झेलने रूप में दर्शाया।

                                                               LiveMint की रिपोर्ट

आतंकी की अम्मी के दुख और भरोसे को, “मेरा बेटा ऐसा नहीं कर सकता, हमें तो किसी ने बताया कि उसे पकड़ लिया गया” जैसे बातें लिखकर पाठक के सामने आतंकी की छवि को साफ सुथरी प्रदर्शित करने की कोशिश की गई।

दिल्ली ब्लास्ट पर विदेशी मीडिया का प्रोपेगेंडा

दिल्ली ब्लास्ट पर विदेशी मीडिया ने भी अपने नैरेटिव को आगे बढ़ाया। तमाम तरीके के प्रोपेगेंडा चलाकर ब्लास्ट के दिल्ली धमाके को भारत की नाकामी दर्शाया गया। लेकिन मुस्लिम पहचान वाले संदिग्ध आरोपितों की बात तक नहीं की गई। यहाँ विदेशी मीडिया का इस्लामी कट्टरपंथी सोच सामने आती है। Dawn से लेकर अल जजीरा और द गार्जियन ने धड़ल्ले से दिल्ली ब्लास्ट को कवर करते हुए ऐसी रिपोर्ट्स छापी हैं।

द गार्जियन की इस रिपोर्ट में दिल्ली ब्लास्ट को एक बेहद घातक और डरावना हमला बताया गया है, जिससे पूरे भारत में दहशत फैल गई। लेख की शुरुआत ही इस तरह की भाषा से होती है कि यह घटना भारत की राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

                                                              द गार्जियन की रिपोर्ट

अल जजीरा की इस रिपोर्ट में सवाल उठाए गए कि कैसे भारत की मोदी सरकार दिल्ली ब्लास्ट पर इतने आनन-फानन में आरोप लगाने में जुटी हुई है। रिपोर्ट में पीएम मोदी का पहलगाम हमले के बाद दिए गए बयान- आतंकी हमले को ‘युद्ध की कार्रवाई’ माना जाएगा का हवाला देते हुए सवाल किया कि भारत ने पाकिस्तान के साथ संघर्ष शुरू किए बिना कथित अपराधियों को दोषी ठहरा दिया है।

                                                                  अल जजीरा की रिपोर्ट

इस रिपोर्ट में दिल्ली ब्लास्ट को लेकर डर और असुरक्षा का माहौल उभारने की कोशिश की गई है। लेख में कहा गया, “दिल्ली धमाका ने पूरे देश को सतर्क कर दिया है।” यानी इस विस्पोट से पूरा देश सतर्क और डर गया है। इस तरह का वाक्य भारत को एक डर से घिरे देश के रूप में दिखाने की कोशिश है और भारत की सुरक्षा व्यवस्था को नाकाम बताने जैसा दावा है।

                                                                 अल जजीरा की रिपोर्ट

अमेरिकन मीडिया CNN ने अपनी इस रिपोर्ट में दिल्ली में आतंकी ब्लास्ट और अगले ही दिन पाकिस्तान के इस्लामाबाद में हुए ब्लास्ट को समान बताने की कोशिश की गई। जबकि असलियत यह है कि दिल्ली ब्लास्ट में गिरफ्तार संदिग्धों के सीधे संबंध पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से पाए गए हैं। इसके बावजूद भारत ने अब तक पाकिस्तान को बिना ठोस सबूत के दोषी नहीं ठहराया है।

                                                                CNN की रिपोर्ट

उधर, आतंक को पनाह देने वाले पाकिस्तान के इस्लामाबाद में जो ब्लास्ट हुआ वह एक सुसाइड बॉम्बिंग है। जिसके तार अब तक भारत से दूर-दूर तक जुड़ने के कोई सबूत नहीं है। तब भी पाकिस्तान ने बिना तथ्यों के सीधा भारत पर हमले के आरोप लगा डाले।

दिल्ली ब्लास्ट और फरीदाबाद आतंकी मॉड्यूल

फिर बात करें दिल्ली ब्लास्ट के तारों की और फरीदाबाद में सामने आए आतंकी मॉड्यूल की तो इस ब्लास्ट में इस्तेमाल हुई कार, विस्फोट और संदिग्ध गतिविधियों से जुड़ी जाँच में यह साफ हुआ है कि यह एक बड़ा आतंकी नेटवर्क था। जाँच एजेंसियों को फरीदाबाद, सहारनपुर, लखनऊ समेत कुछ जिलों से 2900 किलो विस्फोटक सामग्री बरामद हुई, जो सीधे दिल्ली ब्लास्ट से जुड़ रही है।

इसके अलावा जिस i20 कार से ब्लास्ट हुआ, उसमें बैठा डॉक्टर मोहम्मद उमर नबी के तार भी आतंकी मॉड्यूल से जुड़े। उसके दोस्त सज्जाद अहमद और परिवार वालों से पूछताछ की गई तो सामने आया कि वह संदिग्ध आतंकी गतिविधियों में शामिल था। जाँच एजेंसियों को यह भी शक है कि फरीदाबाद से गिरफ्तार आतंकी मुजम्मिल की गर्लफ्रेंड डॉ. शाहीना का भी दिल्ली ब्लास्ट में बड़ा रोल हो सकता है। डॉ. शाहीना पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM) की महिला ट्रेनर थी, उसके पास से एके-47 और हथियार बरामद हुए।

यहाँ तक कि भारत सरकार ने दिल्ली ब्लास्ट की घटना को आतंकी हमला बताने में कोई संकोच नहीं किया। सरकार ने कहा कि यह हमला निंदनीय था और पीएम मोदी ने भूटान के मंच से चेतावनी दी कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।

दिल्ली ब्लास्ट पर सरकार की कार्रवाई और इस्लामी कट्टरपंथ सोच

दिल्ली ब्लास्ट पर भारत की मोदी सरकार की कार्यवाही जारी है। जाँच एजेंसिया अब तक दोषियों के काफी करीब पहुँच चुकी है। यहाँ तक कि दिल्ली ब्लास्ट के फिदायीन उमर नबी और उसके परिवार पर भी जाँच एजेंसियों ने शिकंजा कसा है। हमले की जाँच में रोजाना नई परते खुल रही हैं। लखनऊ के सहारनपुर से गिरफ्तार डॉ. शाहीन को लेकर भी जाँच एजेंसियाँ बड़ा शक जता रही हैं क्योंकि वह जैश-ए-मोहम्मद की महिला विंग की कमांडर है।

इन सब सबूतों और जाँच से साफ स्पष्ट होता है कि भारत सरकार आतंक के खिलाफ कार्रवाई को लेकर कितनी सक्रिय है। वहीं अब तक कि जाँच से यह भी साफ है कि संदिग्ध आरोपितों की कौम एक ही है। सभी पकड़े गए लोगों की पहचान मुस्लिम ही है। वैसे ये कोई चौंकने वाली बात नहीं है क्योंकि भारत में अब तक जो भी आतंकी हमले या ब्लास्ट हुए हैं उसके पीछे इस्लामी कट्टरपंथी की विचारधारा ही है। फर्क सिर्फ यह है कि इस बार हमला देश के भीतर बैठे इस्लामी कट्टरपंथों के जरिए किया गया है।

विदेशी मीडिया की इस्लामी कट्टरपंथ पर चुप्पी

अब वापस आते हैं विदेशी मीडिया की दिल्ली ब्लास्ट को लेकर छापी गई रिपोर्ट्स पर। यहाँ बड़े-बड़े विदेशी मीडिया संस्थानों ने दिल्ली ब्लास्ट को लेकर बेहतर तरीके से खबरें छापीं और पाठकों को हर मिनट अपडेट किया लेकिन यह सब अपना नैरेटिव ध्यान में रखते हुए किया गया। कहीं दिल्ली ब्लास्ट को ‘घातक’ हमला करार दिया गया तो कहीं भारत की मोदी सरकार पर सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े किए गए। लेकिन संदिग्धा आरोपितों पर कोई खबरें नहीं छापी गईं, क्योंकि उनकी पहचान ‘मुस्लिम’ थी।

ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसे विदेशी मीडिया हमेशा से करती आई है। एक बार फिर विदेशी मीडिया की इस्लामी कट्टरपंथी विचारधारा उजागर हुई है। ये मीडिया CAA, NRC और आर्टिकल 370 को मुस्लिमों के खिलाफ कार्यवाही बताने में नहीं हिचकिचाती है। तब भारत में मोदी सरकार की ‘भगवा राजनीति’ पर बड़े-बड़े लेख लिखे जाते हैं। लेकिन अब जब भारत की राजधानी में आतंकी हमला हुआ और आरोपित मुस्लिम हैं तो वे चुप्पी साधे बैठे हैं।

आरोप लगाए गए कि मोदी सरकार पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद अपनी नई नीति को साबित करने के लिए पाकिस्तान पर आरोप लगाने में जल्दबाजी कर रहा है। बता दें जिस नीति की बात हुई वह भारत की आतंकी हमले पर ‘युद्ध की कार्रवाई’ के कड़े संदेश हैं। तो विदेशी मीडिया को जान लेना चाहिए कि भारत अब चुप नहीं बैठता है, यह बयान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दिया जा चुका है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की बात आएगी तो भारत सबसे आगे रहेगा। इसका उदाहरण भारत की मोदी सरकार URI स्ट्राइक, ऑपरेशन सिंदूर और अन्य ऑपरेशन चलाकर दे चुकी है और आगे भी देती रहेगी।

भारत की वामपंथी मीडिया का दोहरा रवैया

यहाँ सिर्फ विदेशी मीडिया तक बात सीमित नहीं हो जाती है। बल्कि भारत के कुछ वामपंथी मीडिया संस्थान भी अपना नैरेटिव गढ़ने के लिए दिल्ली में हुए निंदनीय आतंकी धमाके पर प्रोपेगेंडा फैलाना शुरू कर देते हैं। इन मीडिया संस्थानों ने दिल्ली ब्लास्ट के संदिग्ध आरोपितों की छवि सुधारने को लेकर खबरें छापी। लोगों को इस भ्रम में डाला गया कि डॉ. मुजम्मिल और डॉ. उमर नबी जैसे आतंकी है तो आम इंसान ही लेकिन पता नहीं कैसे उन्होंने दिल्ली में ब्लास्ट कर दिया।

आतंकियों की छवि बदलने के लिए छापी गई खबरों का उद्देश्य साफतौर पर पारदर्शी था। वामपंथी मीडिया केवल यह साबित करने में लगी हुई थी कि इस्लामी कट्टरपंथी जैसा कुछ नहीं होता है और मुस्लिम को आतंकी बताना गलत है। इन मीडिया संस्थानों ने यहाँ जाँच एजेंसियों के उन पुख्ता सबूतों को नजरअंदाज किया, जिसमें साफ कहा गया है कि दिल्ली ब्लास्ट एक आतंकी महला था और इतना ही नहीं पकड़े गए आतंकियों ने भी कबूला कि वे इससे भी बड़ी साजिश रच रहे थे।

अब इतना तो साफ हो गया है कि चाहे भारत पर आतंकी हमला हो या युद्ध की स्थिति क्यों न आ जाए। देश का वामपंथी मीडिया अपना मुस्लिम पीड़ित वाला नैरेटिव गढ़ने के लिए आतंकियों को भी सफेद चोला पहनाने में नहीं कतराएगा। वहीं विदेशी मीडिया भी लगातार तथ्यों को जाँचे बिना भारत पर हमलावर रहेगा और इस्लामी कट्टरपंथी की विचारधारा को आगे बढ़ाता रहेगा।

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