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‘कम्युनिस्टों ने मेरी जिंदगी के 20 साल बर्बाद कर दिए’: पीयूष मिश्रा, पूर्व कॉमरेड

सच्चाई को सात तालों में भी कैद नहीं किया जा सकता। कभी कभी बाहर आ ही जाती है। यह एक कटु सच्चाई है कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट गठजोड़ ने कितनी बेदर्दी से भारत के गौरवशाली इतिहास का चीर हरण किया, जिसका नंगा नाच अपने आपको कहलाने वाला हर बुद्धिजीवी धृतराष्ट्र बन देखता रहा। यही कारण है कि कट्टरपंथी और अराजकतत्व देश में अराजकता फैलाते रहते हैं। और वास्तविक इतिहास बताने वालों को साम्प्रदायिक कहा जाता है। यदि देश के इतिहास को बिगाड़ने का साहस भारत से बाहर कहीं किया जाता, उसे तुरन्त जेल में धकेल दिया जाता, लेकिन यहाँ उन्हें सम्मान दिया जाता रहा है। 

खैर, 1962 इंडो-चीन युद्ध के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी ने स्पष्ट कहा था कि 'पार्टी का कोई वर्कर फौजियों के लिए खून नहीं देगा।' फिर पार्टी कहती है कि 'हम देश के प्रति वफादार है' और अज्ञानी सच मानकर इनका अनुसरण करने लगते हैं। और एक और सच्चाई सामने आयी है जिसे किसी अन्य ने नहीं बल्कि वर्षों तक कामरेड बने रहे चरित्र अभिनेता ने कि कम्युनिस्टों की परिवार के प्रति कोई सम्मान नहीं। जिस पार्टी का परिवार के लिए कोई सम्मान नहीं होगा, उसका जनता अथवा देश के लिए क्या होगा? जिन माँ और बाप के ही कारण ये लोग दुनिया में आये उन्हें ही गन्दा बताया जा रहा है।  

फिल्मों के चरित्र अभिनेता पीयूष मिश्रा ने कहा कि वामपंथी बनकर उन्होंने अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली। उन्होंने कहा कि कॉमरेड बनकर उन्होंने अपनी ऐसी-तैसी करा ली। कम्युनिस्टों ने उन्हें दबोच रखा था। बहुत मुश्किल के बाद वे उनके चंगुल से निकले हैं।

पीयूष मिश्रा ने कहा, “कम्युनिस्टों ने 20 साल मेरी जिंदगी के बर्बाद कर दिए। वे कहते- परिवार गंदी चीज है, माँ गंदी चीज है, बाप गंदी चीज है…. तुम्हें समाज के लिए काम करना है। ये सब समाज के हिस्से नहीं हैं क्या? वे कहते- नहीं… नहीं… समाज के हिस्से अलग होते हैं। क्रांति कहीं से आएगी। लाल बत्ती पर ठहरी हुई है।”

उन्होंने आगे कहा, “वे लगातार 20 साल तक मुझसे काम करवाते रहे। वे कहते- पैसा कमाना पाप है। जो पैसा कमाता है, वो पूँजीपति कहलाता है, कैपिटलिस्ट हो जाता है। पैसा कभी मत कमाना। फिर मैंने कहा- नहीं कमाऊँगा सर। मैंने सबको छोड़ दिया जिंदगी में… माँ-बाप, बीवी को।”

कॉमरेड बनने के अपने अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने कहा, “जब मुझे अहसास हुआ कि मैं खराब बाप हो गया, मैं खराब बेटा साबित हो गया। मुझे लगा अब खराब बाप साबित नहीं होऊँगा। तब मेरा बड़ा बेटा छोटा था। मुझे अहसास हुआ कि पीयूष तुम तो गलती कर रहे हो। उन लोगों ने मेरा सब कुछ ले लिया। परिवार की कतई चिंता नहीं थी मुझे।”

उन्होंने कहा, “ये जूनियर कैडेट से इतना खराब काम लेते हैं कि कुछ कह नहीं सकते। स्टालिन का भूत था। कम्युनिस्ट का मतलब स्टालिन होता है। एक बंदा होता है, जो सबका सिरमौर होता है और सारे बंदे जूनियर होते हैं। जूनियर बंदा उसका मुँह देखता है कि अब हमें क्या करना है, क्या खाना है, क्या पीना है। तो मैं भी लगातार काम करता रहा इनके लिए… लगातार।”

पीयूष ने अपनी हालत के बारे में बताते हुए कहा, “मैं टूट गया था उनके लिए काम करते-करते। मेरी फिजिकल हालत खराब हो गई थी। मेंटल हालत खराब हो चुकी थी। इमोशनली मैं ड्रेन हो चुका था।” उन्होंने बताया कि अच्छा बाप बनने के लिए उन्होंने सिनेमा में जाने का फैसला कर दिया।

‘TMC घोर सांप्रदायिक पार्टी, हिंदुओं और ईसाइयों के बीच विभाजन की कोशिश’: गोवा के पूर्व विधायक लवू मामलेदार ने छोड़ा ममता बनर्जी का साथ

गोवा में दूसरे दलों के नेताओं को लगातार पार्टी में शामिल करा रही तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) को एक झटका लगा है। लगभग तीन महीने पहले ही तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) में शामिल हुए गोवा के एक पूर्व विधायक ने पार्टी पर घोर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया है। टीएमसी छोड़ने का ऐलान करने वाले पूर्व विधायक लवू मामलेदार (Lavoo Mamledar) ने कहा कि टीएमसी राज्य विधानसभा चुनाव से पहले वोटों के लिए हिंदुओं और ईसाइयों के बीच विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रही है। 

उन्होंने कहा, “मैं सितंबर में टीएमसी में शामिल हुआ क्योंकि मैं ममता जी के 2021 के विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन और हाई-कमांड संस्कृति के प्रति उनके रूख से प्रभावित था। लेकिन पाँच नवंबर को TMC और MGP (महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी) के बीच गठबंधन के बाद हमने इसका घोर सांप्रदायिक रूप देखा।”

उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि योजनाओं के लिए जानकारी एकत्र करने के नाम पर पार्टी लोगों का डाटा भी जुटा रही है। पिछले 15-20 दिन में उन्होंने जो कुछ देखा है उससे पूरी तरह साफ है कि टीएमसी भाजपा से भी खराब है।

लवू मामलेदार ने आगे कहा, “TMC ने ‘लक्ष्मी भंडार’ स्कीम लॉन्च किया। इसके तहत उन्होंने पश्चिम बंगाल की महिलाओं को हर महीने 500 रुपए देने का वादा किया। लेकिन गोवा में उन्होंने 5,000 रुपए देने का वादा किया, जो कि लगभग असंभव है। जब कोई पार्टी खुद को हारा हुआ महसूस करती है तो वह झूठे वादे करती है।”

पोंडा से पूर्व विधायक लवू मामलेदार सितंबर के अंतिम सप्ताह में तृणमूल कॉन्ग्रेस में शामिल हुए थे। वह राज्य के उन शुरुआती नेताओं में से एक थे जिन्होंने टीएमसी से जुड़ने का फैसला किया था। इस साल बंगाल में जीत से भाजपा को करारा झटका देने वाली टीएमसी ने फरवरी 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में प्रदेश की सभी 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है। इसके लिए उसने भाजपा की पूर्व सहयोगी एमजीपी के साथ हाथ मिलाया है।

चीन : उत्सूल महिलाओं को हिजाब पहनने पर जेल, मस्जिदों से गुम्बद और लाउडस्पीकर हटाने की तैयारी

                                                    चीन का उत्सुल मुस्लिमों पर अत्याचार
उइगर मुस्लिमों के साथ होते अत्याचार की खबरों के बीच पता चला है कि अब चीन की नजर सान्या क्षेत्र के उत्सुल मुस्लिमों पर है। इस क्षेत्र में 10 हजार से भी कम संख्या में ये समुदाय रहता है। मगर, वहाँ ‘चीनी सपने’ को साकार करने की आड़ में इस समुदाय पर अप्रत्यक्ष रूप से हमले होने शुरू हो गए हैं।

जानकारी के अनुसार, सान्या में अब मुस्लिम घरों व दुकानों के बाहर लिखे मजहबी नारों जैसे अल्लाह-हू-अकबर को स्टिकर्स की मदद से ढका जा रहा है। हलाल खाने के बोर्ड को भी रेस्त्रां आदि से हटाया जा रहा है। इस्लामी स्कूल बंद हो रहे हैं और हिजाब पहनने वाली लड़कियों को जेल भेजने की कोशिश हो चुकी है।

न्यूऑर्क टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि चीनी सरकार की मुस्लिम समुदाय के ऊपर ऐसी मनमानियाँ मजहबी कट्टरता रोकने के नाम पर हो रही हैं। उइगर मुस्लिमों के बाद उत्सुल मुस्लिमों पर ऐसा नियंत्रण चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का असली तानाशाही चेहरा उजागर करता है।

फ्रॉस्टबर्ग स्टेट यूनिवर्सिटी में एक एसोसिएट प्रोफेसर जो मैरीलैंड कहते हैं कि उत्सुल मुस्लिमों पर नियंत्रण का कड़ा होना स्थानीय समुदायों के खिलाफ चीनी कम्युनिस्ट अभियान के असली चेहरे को प्रकट करता है। वह कहते हैं कि राज्य का कड़ा नियंत्रण बताता है कि ये सब पूर्ण रूप से इस्लाम विरोधी है।

चीन में इस्लाम को दबाने का काम साल 2018 के बाद से शुरू हुआ, जब चीनी कैबिनेट ने एक गुप्त निर्देश पास किया कि मस्जिदों और मदरसों में अरब के बढ़ते प्रभाव को रोका जाए। लेकिन अब हाल में सान्या में उत्सुल मुस्लिमों के साथ शुरू हुई मनमानी बताती है कि चीन अपनी ही सरकारी नीतियों के उलट चल रहा है। कुछ साल पहले तक इस समुदाय को और इसके मुस्लिम देशों से संबंधों को बढ़ावा दिया जाता था। लेकिन अब ये लोग उसी समुदाय की धार्मिक पहचान को मिटाने का काम कर रहे हैं।

मलेशियन-चीनी लेखक युसूफ लियो कहते हैं कि उत्सुल मुस्लिमों की अलग पहचान है। इन्होंने सदियों से भौगोलिक रूप से अलग रहकर, अपने मजहब को संभाले रखा। वह बताते हैं कि उत्सुल मुस्लिम कई मायनों में मलेशिया के लोगों जैसे हैं। वह एक जैसे कई गुण, जैसे भाषा, पोषाक, इतिहास, और खान-पान साझा करते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय मस्जिद के मजहबी नेताओं को अब लाउडस्पीकर्स हटाने के लिए कहा जा रहा है। इसके अलावा, आवाज को भी कम रखने की बात कही गई। एक नई मस्जिद का निर्माण कथित रूप से अरब वास्तुशिल्प तत्वों के विवाद की वजह से रुका हुआ है। जहाँ पूरी तरह से धूल इकट्ठा हो गई है। स्थानीयों का कहना है कि शहर में 18 साल से कम उम्र के बच्चों को अरबी पढ़ने से रोक दिया गया है।

उत्सुल समुदाय के लोगों का कहना है कि वे अरबी सीखना चाहते थे, जिससे न केवल इस्लामी ग्रंथों को बेहतर ढंग से समझ सकें, बल्कि उन अरब के पर्यटकों के साथ भी बातचीत कर सकें, जो उनके यहाँ रेस्त्रां, होटल और मस्जिद में आते हैं। कुछ लोगों ने नए प्रतिबंधों पर नाराजगी व्यक्त की है।

एक स्थानीय मजहबी नेता ने कहा कि समुदाय को बताया गया था कि उन्हें अब गुंबद बनाने की अनुमति नहीं। वह नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बोले, ”मध्य-पूर्व की मस्जिदें इसी तरह हैं। हम चाहते हैं कि ये भी मस्जिदों की तरह दिखें, न कि घरों की तरह।”

इस संबंध में हाल ही में कुछ लोगों को सरकार की आलोचना करने पर हिरासत में भी ले लिया गया था। वहीं, पिछले साल सितंबर महीने में उत्सुल पैरेंट्स और कुछ स्टूडेंट्स ने हिजाब नहीं पहनने के आदेश के खिलाफ कई स्कूलों और सरकारी दफ्तरों के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया था।

एक ओर जहाँ सान्या के उत्सुल मुस्लिमों को लेकर ऐसी खबर आई है वहीं चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार अब सामान्य हो चुका है। वहाँ चीनी अधिकारी उइगरों की पहचान मिटाने के लिए उन्हें कैंप में रखते हैं, उनके मस्जिदों रिकंस्ट्रक्ट करते हैं और घरों के इंटीरियर तक को बदलने का काम वहाँ किया जाता है। इसके अलावा पुरूषों को असहनीय पीड़ा और महिलाओं का बर्बरता से रेप उइगर मुस्लिमों के लिए कोई नई बात नहीं रह गई है।

शोध संस्थान JNU : रैंकिंग में फिसड्डी और राजनीति का अड्डा है

Image result for jnuलगता है हम जनता को जो इससे मुआमले से सीधे-सीधे जुड़े नहीं हैं, JNU के बारे में बहस नहीं करनी चाहिए। हमें न तो दक्षिणपंथी लोगों द्वारा फैलाई जा रही बातों में आना चाहिए और न ही यहाँ के कुछ कुत्सित मानसिकता वाले छात्रों के बातों में आना चाहिए। हालाँकि JNU के वर्तमान छात्रों से अधिक वो लोग वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं जो या तो यहाँ से अपनी पढ़ाई पूरी कर चुके हैं या फिर कहीं और सेटल होकर फ्री टाइम में फेसबुक पर ज्ञान दिए जा रहे हैं। ये लोग बस सहानुभूति, कचोट और पुरानी खुजली को फिर से खुजाने के सुखद अहसास भर के लिए प्रेमिका की शादी में प्लेट लगाने वालों की तरह हैं, जो न तो लड़की का कोई फायदा करवा पाते हैं और न ही लड़के का।
No photo description available.
No photo description available.ऐसी स्थिति में हमें करना क्या चाहिए? यदि हमारे अंदर देश की शिक्षा-व्यवस्था को लेकर इतनी ही अधिक चिंता है तो हमें सोचना चाहिए की आखिर इस शिक्षा संस्थान में ऐसा क्या है कि ये अब हमेशा विवादों मे ही रहता है। हमें सोचना चाहिए की जहाँ हम बच्चों को ज्ञान अर्जन के लिए भेजते हैं, शोध के लिए भेजते हैं वहॉं वो ‘ले के रहेंगे आज़ादी’, ‘SAVE KASHMIR’,  वामपंथ, दक्षिणपंथ, ‘GO BACK BHAGWA’, ‘मोदी हाय-हाय’ करना क्यों सिखने लगते हैं? जहाँ हमे गरीबी के नाते जल्द से जल्द डिग्री लेकर कुछ करना चाहिए वहॉं क्यों बच्चे एक के बाद दूसरी और दूसरी के बाद तीसरी डिग्री करना चाहते हैं। जिस बच्चे को सूतापट्टी या मोतीझील से ख़रीदे कपड़े का शर्ट-पेंट सिलवा वहॉं भेजा जाता है वो आखिर कैसे वहॉं जींस और फैब इंडिया का कुरता पहनना सीख जाता है।
जिस बच्चे को अपने घर में सुपारी का एक टुकड़ा खाने पर लम्बा भाषण सुनना पड़ता था वो कैसे वहॉं व्हिस्की, जिन, रम, स्कॉच, कसौल आदि का फर्क समझने लगता है। जिस बच्चे को सुबह सूर्योदय से पहले “कराग्रे वास्ते लक्ष्मी” से उठने की बात सिखाई जाती थी वो कैसे 10 बजे उठकर निम्बू पानी निचोड़ने लग जाता है… और हाँ, क्या ऐसा हो जाता है छात्र के साथ की वो अपने कमरे में देसी स्वामी विवेकानंद के कोट वाली पोस्टर हटाकर विदेशी मार्क्स और लेनिन को अपना लेता है ?
JNU देश का सर्वश्रेष्ठ शोध संस्थान है इसमें कोई दो राय नहीं। थोड़ा नजर उठाकर देखेंगे तो पाएँगे कि भले ही अपने देश में शोध का बहुत महत्व न हो, दुनिया भर में शोध के नाम पर मिलने वाली नौकरियों में सबसे अधिक पैसा है। ऐसे में JNU के अधिकतर छात्र शोध के बाद विदेश चले जाते हैं… ध्यान देंगे तो पाएँगे कि वाकई यहाँ रहने वाले कश्मीर और कन्हैया ही हैं अधिकतर।
हमें यह भी सोचना चाहिए की देश की दशमलव फीसदी आबादी मात्र ही JNU पहुँच पाती है। देश में इंजीनियर बन रहे हैं, डॉक्टर बन रहे हैं, CA बन रहे… ये सब JNU से नहीं आते, देश फिर भी चल रहा है।
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JNU में "ज्ञान गंगा" बहती हुई! जनता के टैक्स का मज़ाक तो है ही पर भारतीय संस्कृति के दुश्मन
 तैयार हो रहे हैं यहाँ!
ऐसे में सामान्य जन को JNU के नाम पर न तो समर्थन और न ही विरोध में हाइप क्रिएट करना चाहिए। वजह कई सारे हैं। JNU अब वो नहीं रहा जिसके लिए उसे 1969 में बनाया गया था। न तो जगदीश चंद्र बोस यहाँ से पढ़े थे, न रामानुजन, न विक्रम सारा भाई, न होमी जहांगीर भाभा, न रामन और न ही अबुल कलाम। कुछ इकोनॉमिस्ट हुए जो JNU से निकले और विदेश में बड़ा नाम किया। उनकी शोध पर उन्हें नामचीन पुरस्कार भी मिला, किन्तु उनके इस शोध का मानव जीवन पर कोई सकारात्मक असर पड़ा हो, बताइए। वर्ल्ड बैंक, यूनिसेफ या संयुक्त राष्ट्र संघ की फाइलों में पड़ी इनकी शोध धूल खा रही है… न तो दुनिया से भुखमरी समाप्त हो रही है और न ही जलवायु संतुलन के ठोस काम आया है ये शोध।
ऐसा नहीं है कि सारी बुराई ही है इधर, नि:संदेह कुछ अच्छे छात्र भी आए JNU से, किन्तु JNU इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि इसके लिए लोग आपस में लड़ने लगें और फिर JNU पर हल्ला करने से अन्य स्थानों पर शिक्षा-व्यवस्था सुधर जाएगी, सस्ती हो जाएगी… क्योंकि सरकार की सब्सिडी से JNU लगभग मुफ्त है और बाकी संस्थानों को अपना वित्त खुद देखना पड़ता है। न तो हम अभी इतने विकसित और सशक्त अर्थव्यवस्था हो गए हैं कि देश भर में पढ़ाई का स्तर JNU सरीखा और मुफ्त कर सकें।
ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश है जो बड़े शोधपरक सर्वेक्षणों के लिए जाना जाता है। यहाँ की एक संस्था है कैलिपर जो विश्व की तीन बड़ी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी में प्रवेश के लिए टेस्ट पेपर बनाती है। बजाय पास- फेल के यह नियुक्ति के पद के हिसाब से आदमी को सही या गलत बताती है और फिर आपका सिलेक्शन यहाँ होता है। इसके माध्यम से एक अमेरिकन कंपनी में प्रवेश और 9 साल सेवा देने का अवसर प्राप्त होता है।
सिडनी, ऑस्ट्रेलिया की ही एक संस्था है युनीरैंक। युनीरैंक विश्व भर में रैंकिंग सिस्टम के लिए प्रसिद्ध है। यह विश्वभर की 13,600 विश्वविद्यालयों से जुड़ी है और वहॉं के पिछले 4 साल के रिकॉर्ड के हिसाब से वृहत स्तर पर रैंकिंग तय करती है। इस संस्था के 2019 की रैंकिंग में पहले 200 विश्वविद्यालयों में भारत का कोई भी विश्वविद्यालय नहीं है।
भारत विकसित नहीं है तो यह संभव नहीं, कोई बड़ी बात नहीं। इस लिस्ट के प्रथम 20 स्थानों में सिर्फ अमेरिका और चीन है और उसके बाद इनके अलावा ब्रिटेन और कनाडा जैसे देश। एशिया की रैंकिंग में प्रथम 50 की रैंकिंग में दिल्ली यूनिवर्सिटी 7वें और IIT, मद्रास 50वें स्थान पर है। 200 तक की रैंकिंग पढ़ डाली, अफ़सोस JNU का नाम नहीं दिखा।
इस संस्था ने देश स्तर पर भी रैंकिंग दी है। संस्था द्वारा 2019 के प्रथम 5 भारतीय विश्वविद्यालयों का नाम:
रैंक 1 – दिल्ली यूनिवर्सिटी
रैंक 2 – आईआई टी, मद्रास
रैंक 3 – आईआईटी, मुंबई
रैंक 4 – आईआईटी, कानपुर
रैंक 5 – आईआईटी, खड़गपुर

JNU नहीं दिखा होगा। JNU इस रैंकिंग के दसवें स्थान तक भी कहीं नहीं है, बल्कि इसकी रैंकिंग 12वीं है हिंदुस्तान में। JNU भारत में उपलब्ध सबसे बेहतर शोध संस्थान है… किन्तु ऐसा बिलकुल नहीं कि आप JNU के नाम पर लड़ मरें और वो महारथी तो बिलकुल ही चुप रहें जो कहते हैं कि प्रवेश परीक्षा पास करके दिखाओ उनसे कहूॅंगा कि जाओ आप शोध के लिए फ़िनलैंड जहाँ अब तेज हिंदुस्तानी छात्र जा रहे… जहाँ केवल फ़ीस ही नहीं लगती बल्कि अच्छे-खासे पैसे भी दिए जाते हैं शोध करने के लिए।
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अंग्रेजी में कहते हैं कि हर काले बादल में एक उजली रेखा उम्मीद की होती ही है- एवेरी क्लाउड हैज़ अ सिल्वर लाइनिंग। पूर्...

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जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में कथित देश विरोधी नारेबाजी को लेकर छिड़ा विवाद अभी पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ कि जेएनयू के .....

बिना किसी लाग-लपेट और द्वेष-ईर्ष्या के कहूॅंगा- JNU बहुत अच्छा है किन्तु यह राजनीति और अय्याशी का अड्डा भी है। इससे खुद को दूर रखें, अपने आसपास की बेहतरी को देखें तो हमारे आपके अलावा हमारे देश के लिए भी बेहतर होगा।
अपने बच्चों को JNU में भेजने वाले अभिभावकों को चाहिए कि अपने बच्चों को गुंडागर्दी, नशीले पदार्थों और फ्री सेक्स से दूर रहने पर ही इस संस्थान में भेजें। 
Image may contain: one or more people, people dancing and crowdकुछेक लोग पूरे JNU की बदनामी कर रहे 
कुछेक लोग की करतूतों की बजह से अच्छे MINDED छात्रो पर और अच्छे चरित्र की छात्राओ पर जो चाहे भूतपूर्व हो या प्रेजेंट समय की उनकी छवि को ठेस और अघात और चारित्र पर बदनुमा धब्बा और ये उत्पन्न होने वली सोच कुछ अय्याश डॉन माफिया टाइप लोगों की बजह से हो रहा है ।वो सभी IAS IS PCS और बाकी सभी काबिल महान भूतपूर्व JNU के छात्र रहे हैं उन सभी को निकल के आना चाहिये और अपनी प्यारी यूनिवर्सिटी की मां मर्यादा इज्जत सम्मान को बचाना चाहिये । आपकी अपनी यूनिवर्सिटी है ।आप खुद सपोर्ट करो इन लोगो को हटवाने मे, इन लोगों के कर्म आप जेसे महान ग्रेट इन्सानो के चारित्र तक से अपने कुकर्मो से तुलना कराने की और एसा msg समाज मे भेजने की कोशिश लगातार किये जा रहे हैं ।
JNU यूनिवर्सिटी बुरी नही है । बुरा है तो वहा का माहोल वहाँ के लूज़ rules ।वहा का कुछ स्टूडेंट वहाँ का दोगला मैनेजमेंट ।
इन सभी की बजह से एक महान उद्देश्य शिक्छा के महादान के लिये खोली यूनिवर्सिटी को बन्द तक करने की माँग और सोच जनता के आणड़र गली गली उठने लगी है ।
सच काहू तो कांग्रेस को भी शख्त कदम उठाने चाहिये माहोल खराब करने और यूनिवर्सिटी को बदनाम करने वाले लोगो से तुरन्त अपना रक्छा कवच सपोर्ट समर्थन तुरन्त हटा लेना चाहिये अभी का अभी ।ये भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के नाम की यूनिवर्सिटी को बर्बाद कर रहे बदनाम कर रहे हैं ।
इन कुछेक लोगो की बजह से कांग्रेस के प्रथम और महान सीनियर नेहरु जी के नाम पर खोली महान दान किया ।
उनके नाम पर उन्ही की कृपा से फ्री रहने खाने और पड़ने की शुविधा देने वाले के नाम को कुछेक लोग धब्बा लगा रहे हैं ।
ये तो वो ही बात हो गयी ना जिस थाली मे खाया उसी मे छेद कर दिया *

और मजे की बात देखो शायद 2017 के हाई कोर्ट के आदेश का पालन नही होता । हमरी सुरक्छा संस्थाएँ वो एक हद तक haktchhep नही कर सकती घुस नही सकती अंदर ।क्या ये मजाक नही । वो ही पुलिस आदी इनकी सुरक्छा करते ।उनका अधिकार है कही भी सुरक्छा के लिये कुछ भी कर सकते cort के साथ मिलकर लेकिन यहाँ तो हाई कोर्ट का निर्णय आदेश नही माना जा रहा ।