Showing posts with label Illegal Immigrants. Show all posts
Showing posts with label Illegal Immigrants. Show all posts

जमीनी हकीकत जहाँ साहिल खान ने की साक्षी की हत्या : बांग्लादेशी घुसपैठिए, बढ़ती मुस्लिम आबादी, अवैध शराब और ड्रग्स

                         दिल्ली में अवैध शराब-ड्रग्स का बांग्लादेशी कनेक्शन (फोटो साभार: bing AI)
देश श्रद्धा हत्याकांड को भूला भी नहीं कि उससे पहले ही राजधानी दिल्ली में 16 साल की लड़की साक्षी की हत्या ने फिर से पूरे समाज को आक्रोश से भर दिया। हत्या किस जघन्य तरीके से की गई, उस वायरल वीडियो को देखने से स्पष्ट है। इतनी निर्मम हत्या जहाँ हुई, वहाँ का माहौल क्या है? आस-पास कैसा समाज है? पुलिस-प्रशासन को लेकर वहाँ के लोगों का क्या कहना है? इन्हीं चंद सवालों को तलाशते ऑपइंडिया की टीम पहुँची शाहबाद डेरी।

शाहबाद डेरी पहुँच कर सबसे पहले हम गए हत्या वाली जगह पर। वहाँ आस-पास जिन चीजों ने हमारा ध्यान खींचा, उनमें सबसे प्रमुख था एक अवैध मजार का होना। इसके अलावे हत्या वाली जगह के ठीक सामने 200 मीटर की दूरी पर आम आदमी पार्टी के विधायक का ऑफिस भी है। 

अवैध मजार के अलावा हत्या वाली जगह और वहाँ के समाज को देखने पर मोटा-मोटी यह अंदाजा लगा कि सरकारी तंत्र लचर है। किस हद तक लचर है, किन-किन मसलों पर सरकार फेल रही है, यह जानने के लिए हमने वहाँ के कई स्थानीय लोगों से बात की। इलाके में खुलेआम अवैध शराब और ड्रग्स के धंधे पर लोगों ने सरकार और पुलिस को घेरा। इन्हीं लोगों में से एक मिले स्थानीय पत्रकार। देव सिंह हैं उनका नाम।

पत्रकार देव सिंह ‘तेज टी24 न्यूज’ के लिए काम करते हैं। साक्षी की हत्या वाली जगह से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर उनका घर है। ऑपइंडिया से बातचीत में देव ने साक्षी की हत्या के अलावा इस क्षेत्र में लव जिहाद के मामले से लेकर मुस्लिम आबादी और अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों तक की जानकारी दी। देव सिंह ने बताया: “यहाँ धीरे-धीरे मुस्लिमों की आबादी बढ़ती जा रही है। ये लोग जिस मस्जिद और मदरसे में नमाज पढ़ने जाते हैं, वहाँ इन लोगों को इन सब चीजों की ट्रेनिंग दी जाती है। इलाके में होने वाले अवैध धंधों में बांग्लादेशी मुस्लिम भी शामिल हैं।”

सरकारी जमीन-पार्क पर अवैध कब्जा

देव सिंह ने बताया कि शाहबाद डेरी इलाके के आधे से अधिक पार्कों में अवैध कब्जा हो गया है। लोगों को टहलने, घूमने के लिए जगह नहीं बची है। उनके अनुसार यहाँ इतने बड़े-बड़े पार्क हैं, जहाँ लोग आसानी से घूम फिर सकते हैं लेकिन अवैध कब्जों के कारण यह संभव नहीं। लोगों को टहलने के लिए दूर जाना पड़ता है।
इसी समस्या पर आगे बात करते हुए उन्होंने बताया कि जब इलाके की लड़कियाँ घूमने-खेलने दूर जाती हैं तो उनके साथ छेड़खानी होती है। पास में जो पार्क है, उनमें कब्जे हो गए हैं। ऐसे में बच्चे-बच्चियाँ खेलने के लिए आखिर कहाँ जाएँ?

अवैध शराब, ड्रग्स, अफीम… शाहबाद डेरी इलाके में सब कुछ

लचर सरकारी तंत्र (पुलिस और प्रशासन) पर बात करते हुए देव सिंह ने बताया कि शाहबाद डेरी इलाके में अवैध शराब से लेकर ड्रग्स, अफीम सब कुछ आसानी से मिल जाता है। स्थानीय लोगों के साथ-साथ अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए भी ड्रग्स और शराब के धंधे में लिप्त हैं।
देव के अनुसार मीडिया में खबर आने के बाद एक-दो जगह छापेमारी हो जाती है। लेकिन अवैध धंधा चलता रहता है। शाहबाद डेयरी से लेकर रोहिणी सेक्टर-25, सेक्टर-26, सेक्टर-27 और तमाम झुग्गियों में रहने वाले लोग अवैध शराब, ड्रग्स और सट्टेबाजी का कारोबार करते हैं। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले इसी इलाके से नारकोटिक्स सेल ने 35 लाख रुपए की ड्रग्स बरामद थी।

लव जिहाद का मामला साक्षी तक सीमित नहीं

साहिल खान अक्सर हाथ पर कलावा बाँधता था और साक्षी उसे एक हिंदू समझती थी। देव सिंह ने आशंका जताई कि हो सकता है साक्षी को साहिल के मजहब के बारे में जानकारी हो गई हो। इसके बाद साक्षी ने साहिल से दूरी बनाने की कोशिश की होगी। ये बात साहिल को नागवार गुजरी और उसने साक्षी की बेरहमी से हत्या कर दी।
साक्षी के अलावा शाहबाद डेरी इलाके में कोई दूसरी घटना लव जिहाद से जुड़ी रही हो, इस सवाल पर पत्रकार देव सिंह ने दो मामलों का जिक्र किया। हालाँकि यह भी बताया कि मामले पुराने हैं, इसलिए पीड़ित लड़कियों या आरोपितों का नाम याद नहीं। दोनों मामले किस जगह पर हुए, इसकी जानकारी उन्होंने दी: “इससे पहले यहाँ सेक्टर-25 (रोहिणी) में लव जिहाद का एक मामला सामने आया था। जो काफी दिनों तक चर्चा में था। एक मामला सेक्टर-27 में भी आया था। एक तरफा प्यार के सनकी युवक ने लड़की की हत्या कर दी थी।” 

AAP की केजरीवाल सरकार और क्राइम

दिल्ली में शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते रेप-क्राइम कितने थे? केजरीवाल ने भ्रष्टाचार और ‘रेप-कैपिटल दिल्ली’ के खिलाफ सत्ता हासिल की। ऐसे में स्थानीय पत्रकार होने के नाते दोनों वक्त की सत्ता और सरकारी तंत्र में होने वाले क्राइम को लेकर पूछे गए सवाल का देव सिंह ने जो जवाब दिया, वो पढ़िए: “दिल्ली में किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं हुआ। जैसे पहले हालात थे, वैसे ही अब भी हैं। यहाँ आए दिन गौहत्या हो रही है। सबसे अच्छा तो यह है कि इस देश में योगी राज आना चाहिए। जब तक देश में बांगलादेशी और ऐसे लोग हैं, तब तक देश में अपराध कम नहीं होगा।”

देश से अवैध कब्जे हटाने के लिए नैतिक बल जुटाना सरकारों और उनके नेतृत्व के लिए चुनौती: मुख्यमंत्री योगी और हिमंता सरमा ने पेश की मिसाल

2014 में मोदी सरकार से पूर्व देश में इतना अधिक अवैध निर्माण एवं अधिक्रमण हुए हैं, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इतना अधिक सरकारी जमीन पर हो चूका है, अगर आज उन सबको हटाया जाए, निश्चित रूप से दंगा-फसाद होगा ही। उन नेताओं और अधिकारियों से प्रश्न करना चाहिए, जिनके रहते अधिक्रमण हुआ था। चौड़ी सड़कें सिकुड़ गयी हैं, पटरियां चलने योग्य नहीं। आखिर क्या कर रहा है प्रशासन और नेता? लेकिन उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पदचिन्हों पर चलते असम के मुख्यमंत्री हिमंता सरमा ने दिखा दिया कि अधिक्रमण कैसे हटाए जाते हैं। दिल्ली को भी योगी और सरमा जैसे मुख्यमंत्री की जरुरत है।  
इतिहास देखें तो असम के दरांग जिले के धोलपुर में गत बृहस्पतिवार (23 सितंबर) को सरकारी जमीन पर से अवैध कब्जा हटाने की प्रक्रिया में जो हिंसा हुई वह पूरी तरह से अप्रत्याशित नहीं थी। इसलिए नहीं कि राज्य सरकार इसके लिए तैयार थी बल्कि इसलिए क्योंकि सरकारी संपत्ति पर से कब्ज़ा हटाने की प्रक्रिया ऐसी ही होती रही है जिसमें हिंसा का एक पूरा सिलसिलेवार इतिहास रहा है और यह किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है। रेलवे की जमीन, राज्य सरकारों की जमीन, केंद्र सरकार के किसी विभाग की जमीन हो, ऐसी हिंसा समय-समय पर कई जगहों पर देखने को मिली है। इस बात के भी उदाहरण हैं जब सरकारों या उनके विभागों द्वारा चलाए गए ऐसे बेदखली अभियान असफल भी रहे हैं।

हिंसा अप्रत्याशित नहीं रही हो पर जो बात ध्यान देने योग्य है वह ये है कि बेदखली के इस अभियान के पहले राज्य सरकार और अवैध कब्ज़ा करने वालों के बीच एक न्यूनतम समझौता हुआ था जिसके अनुसार कब्ज़ा हटाने के परिणामस्वरूप विस्थापितों को राज्य सरकार के नियमों के तहत जमीन दी जानी थी। ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि पहले से तयशुदा प्रक्रिया के बावजूद असम पुलिस पर इस तरह का हमला क्यों हुआ और इसके पीछे अवैध कब्जाधारकों की क्या मंशा थी? साथ ही यह प्रश्न भी उठता है कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा हिंसा के पीछे जिस षड्यंत्र की बात कर रहे हैं, उसे क्या बिना छानबीन के नजरअंदाज किया जा सकता है? अवैध घुसपैठियों द्वारा इतनी बड़ी सरकारी जमीन और संसाधनों की ऐसी लूट क्या कोई देश चुपचाप सहन कर सकता है? 

असम के बाद ही एक मामला उत्तराखंड में हुआ जिसमें टिहरी बाँध पर बनी एक मस्जिद को हटाने की माँग को लेकर प्रशासन और स्थानीय लोगों में एक झड़प हुई और उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। थोड़ा पीछे जाएँ तो इस महीने के शुरुआत में दिल्ली के फ्लाईओवर पर एक छोटी सी मस्जिद हटाने की माँग करने वाले स्थानीय लोगों और उस इलाके के पुलिस अफसर के बीच एक झड़प हुई थी और उसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। आज गुरुग्राम में सार्वजनिक जगह पर लगातार नमाज पढ़ने को लेकर स्थानीय लोगों ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि नमाज पढ़ने वालों के जुटने की वजह से इलाके में महिलाओं का आना-जाना दूभर हो गया है। इस तरह की तमाम घटनाएँ आये दिन सोशल मीडिया पर न केवल रिपोर्ट होती हैं बल्कि उन्हें लेकर लोगों की प्रतिक्रियाएँ भी देखने और पढ़ने को मिलती हैं।

 

ये घटनाएं हमारे समय का दस्तावेज हैं और हमें किसी तरह का संदेश दे रही हैं। उस संदेश को समझना हमारे लिए चुनौती है पर उससे भी बड़ी चुनौती यह है कि संदेश समझने के बाद हम क्या करते हैं। यदि हम असम की घटना को ही देखें तो यह हमसब के लिए आश्चर्य की बात होगी कि जब देश के छोटे किसानों (करीब 65 प्रतिशत) के पास औसत रूप से एक एकड़ से भी कम जमीन है तब असम के एक जिले में प्रति व्यक्ति करीब 200 बीघे जमीन पर घुसपैठियों ने न केवल अवैध कब्ज़ा कर रखा है बल्कि उसे छोड़ने के एवज में जमीन की माँग भी करते हैं।

इस अवैध कब्ज़े को हटाने के लिए लगभग दो महीने से सरकार और कब्ज़ाधारकों के बीच बातचीत हो रही थी। सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे तमाम अवैध कब्ज़े होंगे जिन्हें हटाने के लिए सरकारों को बड़ी मेहनत करने की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए अधिकतर सरकारें इस मेहनत से बचती रहती हैं जिसका परिणाम यह होता है कि अवैध कब्ज़े की जमीन बढ़ती जाती है। 

यही कारण है कि दशकों की यथास्थिति को बदलने की मंशा और वादे करके आई सरकारों के लिए ऐसे अवैध कब्ज़े बहुत बड़ी चुनौती है। यह आम भारतीय के लिए ख़ुशी की बात होनी चाहिए कि वर्तमान की असम और उत्तर प्रदेश सरकार ऐसे अवैध कब्ज़े हटाने का प्रयास तो करती हैं। ऐसा करने के लिए केवल संविधान और कानून लागू करना चुनौती है और इसके लिए जिस नैतिक बल की आवश्यकता है वह अधिकतर राज्य सरकारों और उसके नेतृत्व में नहीं मिलता। दशकों के अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का परिणाम यह है कि देश के बहुत बड़े हिस्से पर अवैध कब्जा हो गया है और उसे हटाना केवल सरकारों के लिए कानून व्यवस्था की चुनौती नहीं बल्कि राष्ट्रीय सभ्यता के लिए भी चुनौती है। 

भारतवर्ष पर अवैध कब्ज़े केवल देश के बंटवारे और विस्थापितों का परिणाम नहीं है। यह परिणाम है अवैध घुसपैठ, राजनीतिक तुष्टिकरण और योजनाबद्ध धार्मिक विस्तारवाद का। जब देश के प्रधानमंत्री देश को अपने संबोधन में बताते हैं कि; देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार है तो वह बात देश के पास बाद में पहुँचती है और कब्ज़ा ग्रुप के पास पहले पहुँचती है। जब अवैध घुसपैठियों को देश के संविधान और कानून के तहत अपराधी नहीं बल्कि वोटर समझा जाता है तो उसके दूरगामी परिणाम होते हैं। जब विपक्ष में रहने वाला नेता अवैध घुसपैठ पर सत्ता में आने के बाद यू-टर्न लेता है तब उससे अवैध कब्ज़ा ग्रुप को बल मिलता है। यथास्थिति को बदलने के लिए प्रयासरत सरकारें क्या कर पाती हैं, इस प्रश्न का उत्तर भविष्य के गर्भ में छिपा है।

‘रोहिंग्या को तुरंत रिहा करें, प्रत्यर्पित करने से केंद्र सरकार को रोकें’: प्रशांत भूषण

सुप्रीम कोर्ट से जम्मू-कश्मीर में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या को तुरंत रिहा करने और उन्हें प्रत्यर्पित करने के आदेश को लागू करने से केंद्र सरकार को रोकने की गुहार लगाई गई है। इस संबंध में पिछले साल कोर्ट की अवमानना मामले में दोषी पाए गए वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से गुरुवार (मार्च 11, 2021) को एक याचिका दायर की गई। इस याचिका में जम्मू में हिरासत में लिए गए अवैध रोहिंग्या प्रवासियों को रिहा करने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की माँग की गई है। कथित तौर पर यह याचिका रोहिंग्या मोहम्मद सलीमुल्ला ने दायर की है और एडवोकेट चेरिल डीसूजा (Cheryl Dsouza) ने इसे तैयार किया है।

आखिर प्रशांत को उन रोहिंग्यों से, जिन्हे कोई मुस्लिम देश तक अपने देश में रखने को तैयार नहीं, क्या लगाव है? क्या वह अवैध रूप से किसी भी देश में रह सकते हैं? यदि नहीं, फिर किस आधार पर रोहिंग्यों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा रहे हो? प्रशांत भूषण उन वकीलों में से है, जो आतंकवादियों की फांसी रुकवाने आधी रात को कोर्ट खुलवाते हैं? 

रिपोर्ट्स के अनुसार, बताया गया है कि यह जनहित याचिका भारत में रह रहे अवैध प्रवासियों (याचिका की भाषा में शरणार्थी) को प्रत्यर्पित करने से बचाने के लिए दायर की गई है। यह भी कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के साथ ही अनुच्छेद 51 (सी) के तहत प्राप्‍त अधिकारों की रक्षा के लिए यह याचिका दाखिल की गई है।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की गई है कि वह संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) को इस मामले में हस्तक्षेप करने के निर्देश जारी करें। साथ ही शिविरों में रखे गए रोहिंग्या की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने की माँग की गई है।

याचिका में कहा गया है कि एक सरकारी सर्कुलर की वजह से रोहिंग्या खतरे का सामना करना पड़ रहा है। यह सर्कुलर अवैध रोहिंग्या प्रवासियों की पहचान का निर्देश अधिकारियों को निर्देश देता है। शीर्ष अदालत में लंबित एक मामले में हस्तक्षेप अर्जी दायर कर गृह मंत्रालय को निर्देश देने का आग्रह किया है कि वह अनौपचारिक शिविरों में रह रहे रोहिंग्याओं के लिए विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ) के जरिए तीव्र गति से शरणार्थी पहचान-पत्र जारी करें।

याचिका कहती है कि भारत में शरणार्थियों के लिए कानून न होने से रोहिंग्याओं को अवैध प्रवासी माना जाता है, जिन्हें फॉरेनर्स एक्ट 1946 और फॉरेनर्स ऑर्डर 1948 के तहत कभी भी भेजा जा सकता है। इसमें यह भी कहा गया है कि मुस्लिम पहचान की वजह से सरकार रोहिंग्या के साथ भेदभाव करती है।

2017 में दायर हुई थी याचिका

इसी मामले में एक आवेदन साल 2017 में दायर किया गया था। उसमें रोहिंग्या सहित अन्य शरणार्थियों के निर्वासन के खिलाफ अधिकार की सुरक्षा की माँग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि सरकार रोहिंग्या लोगों म्यांमार प्रत्यर्पित करने का प्रस्ताव देकर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रही है।
जम्मू-कश्मीर में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए चल रही कवायद के तहत, कई रोहिंग्याओं को विदेशी अधिनियम की धारा 3(2) ई के तहत होल्डिंग सेंटर भेजा गया था। इनके पास पासपोर्ट अधिनियम की धारा 3 के तहत आवश्यकतानुसार वैध यात्रा के दस्तावेज नहीं थे।