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‘बंगाल मतलब बाकी देश से अलग, इसे बचाने के लिए राष्ट्रवादी क्रांति जरूरी’: पंचायत चुनाव में हिंसा, समाज, सिस्टम, अर्थव्यवस्था पर स्वप्न दासगुप्ता

पश्चिम बंगाल में हाल ही में पंचायत चुनाव संपन्न हुए, जिसमें भाजपा ने 22.88% वोट शेयर हासिल किया और 10,000 से भी अधिक सीटें हासिल की। ये सब इसके बावजूद हुआ, जब चुनाव में राज्य भर में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। कहीं से बूथ लूटने की खबरें आईं तो कहीं-कहीं भाजपा प्रत्याशियों और कार्यकर्ताओं पर हमले किए गए। कहीं बैलेट बॉक्स को ही आग के हवाले कर दिया गया तो कहीं मतपेटी पर पानी उड़ेल दिया गया।

इन सबके बीच हमने स्वप्न दासगुप्ता से बात की, 2 बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं। शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में काम करने के लिए पद्म भूषण का पुरस्कार पा चुके 67 वर्षीय स्वप्न दासगुप्ता 1990 से ही भाजपा से जुड़े हुए हैं। वो ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी स्थित नफ़ील्ड कॉलेज में पोस्ट ग्रेजुएट फेलो भी रहे हैं। उन्होंने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’, ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘इंडिया टुडे’ और ‘द स्टेट्समैन’ जैसे बड़े मीडिया संस्थानों में संपादकीय जिम्मेदारियाँ निभाई हैं।

सवाल: बंगाल में 40 से ज्यादा लोगों की हत्या पंचायत चुनाव में कर दी जाती है। तृणमूल से अलग जिन लोगों ने जीत दर्ज की, उनमें से कुछ डर के कारण असम चले गए। डर के इस माहौल में लोकतंत्र को आप कहाँ देखते हैं? क्या सिर्फ वोटिंग करवाना ही लोकतंत्र है?

जवाब: देखिए, इस बार जो पंचायत चुनाव हुआ है इसमें हिंसा सिर्फ मतदान के दौरान ही नहीं हुई है, बल्कि जिस दिन नामांकन की प्रक्रिया हुई उसी समय से ये शुरू हो गया और अब काउंटिंग के बाद तक भी ये चल रहा है। 50 लोगों की हत्या कर दी गई है। इनमें सभी पार्टियों के लोग हैं – TMC, भाजपा, लेफ्ट और ISF (इंडियन सेक्युलर फ्रंट)।

हिंसा अधिकतर मुस्लिमों के प्रभाव वाले इलाकों में हुई है। इसके पीछे कारण ये है कि 2021 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कॉन्ग्रेस ने मुस्लिमों के सारे वोटों पर कब्ज़ा कर लिया था, 90-95% वोट उन्हें गए थे। तब भाजपा की जो हार हुई, उसका एक प्रधान कारण था – शत-प्रतिशत मुस्लिम ध्रुवीकरण। लेकिन, इस बार मुस्लिम वोटों में एक विभाजन आ गया है, जिस कारण हिंसा की इतनी घटनाएँ हुई हैं।

मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में सबसे ज्यादा हिंसा हुई है। एक साइलेंट इंटिमीडेशन चल रहा है। ‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ और ‘Winner Takes All’ वाला लोकतंत्र विरोधी कल्चर आ गया है, जिसे लेफ्ट ने शुरू किया था और TMC इसकी कार्बन कॉपी है।

मार्क्सवादियों और तृणमूल का संगठन अलग है, लेकिन दोनों समान हैं। बस एक फर्क है – CPM का भ्रष्टाचार सीमित था और ये पार्टी कंट्रोल्ड करप्शन था, लेकिन तृणमूल के मामले में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है। ये राज्य सरकार से लेकर पंचायत स्तर तक, सब मिले हैं और सबका हिस्सा बँटा हुआ है।

असीमित भ्रष्टाटार के कारण केंद्र सरकार की जो योजनाएँ आती हैं और उनके फंड्स आते हैं (मनरेगा, आवास योजना, हर घर जल इत्यादि), इन सबमें चोरी हुई है। इस कारण पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई है और भ्रष्टाचार को ही आय का स्रोत बना दिया गया है। इसी कारण ये जीत के लिए इतने बेचैन रहते हैं, ताकि 5 वर्षों के लिए सब सेट हो जाएँ। इसी कारण, वहाँ भारी सुधार की आवश्यकता है।

सवाल: 2014 में 34 और 2019 में 22 लोकसभा सीट पर तृणमूल की जीत। अब 2024 से पहले पंचायत स्तर पर ऐसी हिंसा भाजपा या किसी भी विपक्ष को बंगाल से साफ करने की रणनीति तो नहीं?

जवाब: इस पंचायत चुनाव का जो परिणाम है, उसके साथ पब्लिक ओपिनियन का क्या संपर्क है – ये चिंतन का विषय है। इतनी लूट हुई है, इतना फ्रॉड हुआ है। ये चुनाव बैलेट बॉक्स से कराया गया था राज्य चुनाव आयोग के जरिए, इतने फर्जी वोट पड़े, हमले हुए हैं और लोग तनाव में थे। इसीलिए, अनुमान लगाना मुश्किल है। फिर भी, लोकसभा के चुनाव में इसका असर जरूर देखने को मिलने वाला है।

उस समय (लोकसभा के चुनाव में) TMC के भ्रष्टाचार का असर नहीं पड़ता, क्योंकि राज्य में सांसद की उतनी शक्ति नहीं होती और दिल्ली के लिए वोट दिए जाते हैं। ये फ्लेक्सिबल होता है, इसीलिए विधानसभा चुनाव में तृणमूल कॉन्ग्रेस वोट देने वाले भी लोकसभा चुनाव में भाजपा को देते हैं।

राज्य स्तर पर भाजपा की एक कमजोरी ये है कि अब तक संगठन मजबूत नहीं है। संगठन में बहुत कमजोरियाँ हैं। 3 महीने पहले अगर कॉन्फिडेंस बनाने के लिए केंद्रीय बलों को लाया जा सकता है और चुनाव आयोग 8-10 से लेकर जितने भी चरण में चुनाव कराए, हर पोलिंग बूथ पर सुरक्षाबल सुनिश्चित हो, तब आप देखेंगे कि पंचायत चुनाव से लोकसभा का चुनाव एकदम अलग होगा।

सवाल: ममता बनर्जी की राजनीति से अलग बंगाल के समाज पर आपकी राय क्या है? लंबे समय तक वामपंथी सत्ता के कारण हिंसा की राजनीति या “सत्ता बंदूक की नाल से निकलती है” जैसी बात आम समाज में भी घर कर गई है?

जवाब: 2 चीजें हैं। पहला, राजनीतिक प्रभाव। वामपंथियों के संघर्ष में हिंसा की संस्कृति रही है। ये समाज में भी घुस जाता है। वामपंथी तकनीक से ही TMC ने वामपंथियों को हराया। ये प्रभाव समाज में रह गया।

पश्चिम बंगाल स्वाधीनता के समय नंबर एक या दो राज्य था, अब समय बीतते-बीतते 17-18 नंबर पर पहुँच गया और ओडिशा भी आगे निकल गया। असम भी कुछ दिनों में आगे निकल जाएगा। यहाँ कोई विकास नहीं हो रहा है, कोई रोजगार नहीं पैदा हो रहा। व्यवसायी लोग टोलबाजी से परेशान हैं, जिसे ‘Illegal Extraction’ कह लीजिए। पश्चिम बंगाल में भ्रष्टाचार का जो आलम है, नेताओं के बिस्तर से रुपए निकलने की घटनाएँ सामने आईं।

कहने का मतलब है कि अर्थव्यवस्था के बर्बाद हो जाने के कारण भ्रष्टाचार हावी है और जिसे जहाँ से मिल रहा है, वो लूट रहा है। इसके साथ हिंसा भी जुड़ गई है, इसका हिस्सा बन गई है। सामाजिक व्यवस्था ऐसी हो गई है कि जो पढ़े-लिखे और प्रतिभावान लोग हैं, वो वन-वे टिकट लेकर देश के महानगरों या विदेश में चले जाते हैं, यहाँ नहीं रुकते।

पलायन की समस्या के कारण कोलकाता में औसत उम्र बाकी नगरों से ज्यादा है। इसका कारण है कि जिनकी रियायरमेंट की उम्र हो गई है या जो रिटायर हो गए हैं, वहीं बंगाल में बचे हैं। जो प्रोडक्टिव जनरेशन है, युवा है, वो यहाँ नहीं ठहरते हैं। इसीलिए, पश्चिम बंगाल माइग्रेंट लेबर में आजकल नंबर वन हो गया है।

सवाल: बिहार ने कभी चुनावी हिंसा झेला, बहुत भयावह और बड़े स्तर पर। वहाँ जाति का समीकरण था, अगड़ा-पिछड़ा था, जमींदार-मजदूर था। फिर सब खत्म हो गया। बंगाल में चुनावी हिंसा के सामाजिक कारण क्या हैं? और यह खत्म क्यों नहीं हो रहे?

जवाब: पहले हिंसा होती थी तो लोग कहते थे कि बिहार की तरफ हो रहा है। बिहार देश की हर सड़ी हुई समस्या का प्रतीक बन गया था। यह हाल लगभग 15 साल पहले तक था। लेकिन आजकल बिहार में थोड़ी-बहुत हिंसा होती है, बड़े स्तर पर वैसा कुछ नहीं होता। पहले MCC और रणवीर सेना जैसे संगठनों की हिंसा की खबरें आती थीं।

बिहार में बदलाव हुआ है। बिहार आर्थिक रिकवरी की ओर बढ़ रहा है। बहुत बाकी है वहाँ करना-होना लेकिन थोड़ा-थोड़ा कर रहा है, जबकि पश्चिम बंगाल पीछे जा रहा है। शिक्षा व्यवस्था बर्बाद हो गई है, जिसकी शुरुआत लेफ्ट ने ही की थी।

बंगाल के सामाजिक पतन के लिए एक और बड़ी वजह है। यहाँ प्रादेशिकता की मानसिकता आ गई है, जो बंगाल को बाकी देश से अलग समझते हैं। यानी, एक इमोशनल अलगाववाद की भावना घर कर गई है। इसी कारण अन्य राज्यों से आने वालों को ‘बाहरी’ कहा जाता है। पहले तो कई जगहों से लोग बंगाल में आते थे, यूपी-बिहार के लोग यहाँ जीवन का हिस्सा बन गए और इनमें से कई बंगाली बोलते हैं तो कई नहीं भी बोलते हैं।

बिहार से यहाँ हजारों मजदूर, काम करने वाले, छोटे-बड़े व्यवसायी आए थे। अब सब खत्म हो रहा है। पुराने संपर्क हैं, लेकिन बंगाल का एक प्रभाव जो झारखंड वगैरह में पूरा था, मधुपुर, देवघर या भागलपुर तक उसका असर था। अब कुछ है ही नहीं।

पश्चिम बंगाल के लोगों को इस वास्तविकता को स्वीकार करना पड़ेगा, जो पूरी तरह नीचे जा रहे हैं – सांस्कृतिक रूप से, राजनीतिक रूप से और आर्थिक रूप से। राजनातिक प्रभाव पश्चिम बंगाल का कुछ है ही नहीं। प्रणब मुखर्जी थे लेकिन उनकी बंगाल से ज्यादा दिल्ली में चलती थी। पश्चिम बंगाल ने खुद को लंबे समय से मुख्यधारा से अलग कर रखा है, जिसका अब असर दिख रहा है।

सवाल: समाज से अलग अब बात सिस्टम की, सरकारी तंत्र की, पुलिस की। बंगाल से लगभग हर हफ्ते, 2 हफ्ते पर – बम बनाते समय विस्फोट, झोले में मिला क्रूड बम – जैसी खबरें हम देखते हैं। अगर यह इतना आम हो गया है तो क्या वहाँ पुलिस रिफॉर्म्स की जरूरत नहीं?

जवाब: पुलिस रिफॉर्म्स से पहले पुलिस रिक्रूटमेंट को सुधारना होगा। असली पुलिस से ज्यादा वहाँ सिविक पुलिस की भर्ती कर ली गई है। जिस तरह के प्रोफेशनल पुलिस की भर्ती की जानी थी, वो नहीं की गई। वो फंड्स की कमी को इसकी वजह बता रहे। हकीकत में पुलिस व्यवस्था का पूरा का पूरा राजनीतिकरण कर दिया गया है।

इस बार पंचायत चुनाव में जो बूथ लूटे गए हैं, इसमें पुलिस ने मदद की है। अदालतों में अधिकतर शिकायतें पुलिस के खिलाफ हैं। पुलिस ने हिंसा में हिस्सा लिया है। पुलिस रिफॉर्म से ज्यादा पश्चिम बंगाल में इन्हें (पूरे पुलिस विभाग को) रीकंस्ट्रक्ट करने की जरूरत है।

पहले अच्छी पुलिस फ़ोर्स थी, लेकिन पूरा बर्बाद कर दिया गया। आज भी कोलकाता की पुलिस बाकी बंगाल की पुलिस से अच्छी है। पश्चिम बंगाल की शासन व्यवस्था ध्वस्त हो गई है, शासन प्रणाली की संस्कृति बर्बाद हो गई है।

मुझे लगता है कि बंगाल को बचाने के लिए एक अलग प्रकार की क्रांति की ज़रूरत है – रेड रेवोलुशन या तृणमूल रेवोलुशन नहीं, राष्ट्रवादी क्रांति की जरूरत है। बंगाली संस्कृति का सभी सम्मान करते हैं, लेकिन वो भारत से अलग नहीं है बल्कि भारत को समृद्ध करता है। आप हर जगह जाकर ‘हमारा है, हमारा है’ कहेंगे तो कुछ नहीं होगा।

सवाल: आखिरी सवाल पार्टी के कार्यकर्ताओं को लेकर, चाहे वो किसी भी पार्टी के हों। क्योंकि चुनावी हिंसा का सबसे पहला और मारक असर इन्हीं पर पड़ता है। लंबे समय तक वामपंथी सत्ता और विचार का यह प्रभाव कि – “पार्टी ही सब कुछ, पार्टी के लिए मारना या मरना” – क्या यह दूसरी राजनीतिक पार्टियों में भी घर कर गई है? क्योंकि सत्ता परिवर्तन से बंगाल में चुनावी हिंसा के पैटर्न में कोई बदलाव नहीं दिख रहा।

जवाब: आप हिंदी बेल्ट में जाएँगे तो किसी पॉलिटिकल वर्कर के बारे में कहा जाता है कि वो ‘राजनीति’ करता है। जबकि, पश्चिम बंगाल में कहा जाता है कि ‘पार्टी कोर छी (वो पार्टी करता है)।’ पार्टी कौन सी? कोई सी भी लेकिन वहाँ महत्व पार्टी का ही है।

‘राजनीति’ से अलग ‘पार्टी’ वाले ट्रेंड को CPM ने शुरू किया था और TMC ने भी यही किया। हालत यह है कि आप जो भी करो, आपको पार्टी में आना पड़ेगा। हाल के दिनों में तृणमूल ने इस पार्टी कल्चर को भी बढ़ा दिया है।

पहले तृणमूल में सेंट्रलाइज्ड सिस्टम था, सिंगल विंडो क्लियरेंस था, लेकिन अब अलग-अलग स्तरों पर तृणमूल के भीतर कई समूह बन गए हैं। सब कुछ पार्टी ही बन गई है, पार्टी ही माई-बाप है। ये जो मानसिकता है, ये सभी पार्टियों में घर कर गई है।

स्वप्न दासगुप्ता के बारे में बता दें कि उन्होंने सन् 1975 में दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। लंदन स्थित SOAS यूनिवर्सिटी से उन्होंने Ph.D की। उस जमाने में उन्होंने पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में विभाजन और भेदभाव वाली राजनीति पर गहरा अध्ययन कर के थीसिस लिखी थी। वो JNU में विजिटिंग ऑनररी प्रोफेसर भी रहे हैं। उन्होंने ‘Awakening Bharat Mata: The Political Beliefs of the Indian Right’ नामक पुस्तक भी लिखी है।(साभार: चंदन कुमार https://hindi.opindia.com/परफेक्शन को कैसे इम्प्रूव करें :)

एयर होस्टेस के लिए ‘कुवैत एयरवेज’ का इंटरव्यू : ‘हमें जानवर समझा’: कपड़े उतरवा कर ब्रा-अंडरवियर में महिलाओं को खड़ा करवाया, रोती निकलीं बाहर

कुवैत की एक एयरलाइन में एयर होस्टेस की भर्ती के लिए आयोजित इंटरव्यू को लेकर चौंकाने वाले दावे किए गए हैं। कहा जा रहा है कि इंटरव्यू के दौरान महिलाओं को अपने कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया। साक्षात्कार के लिए पहुँची महिलाओं में से एक ने कहा कि उनकी जाँच जानवरों की तरह की जा रही थी। एक महिला तो रोते हुए कमरे से बाहर चली गई थी।

स्पैनिश मीडिया के हवाले से प्रकाशित ‘डेली स्टार‘ की रिपोर्ट के मुताबिक, मैड्रिड एयरपोर्ट के पास मेलिया बाराजस होटल में ‘कुवैत एयरवेज’ के लिए इंटरव्यू का आयोजन हुआ। इस दौरान महिला आवेदकों से ब्रा और अंडरवियर में प्रस्तुत होने के लिए कहा गया। 23 साल की महिला आवेदक मारियाना ने दावा किया कि साक्षातकार के दौरान महिला जो नोटपैड पर आवेदकों के बारे में लिख रही थी उसने अंडरवियर में उम्मीदवारों का इंस्पेक्शन किया।

निरीक्षण के बाद सबसे पहले उन लोगों को रिजेक्ट किया गया, जिनका वजन ज्यादा था। उसके बाद उन्हें निकाला गया, जिन्होंने चश्मे पहने थे या जिनके शरीर पर नजर आने वाले निशान थे। साक्षात्कार के दौरान एक महिला ने ऐलान किया कि उनलोगों को भर्ती नहीं किया जाएगा, जिनके शरीर पर किसी तरह का निशान है।

मारियाना ने कहा कि सात भाषाओं की जानकार लड़की को इसलिए रिजेक्ट कर दिया गया क्योंकि उसकी भौंह के ऊपर एक छोटा सा निशान था। इंटरव्यू में शामिल हुई 23 साल की बियांका नाम की उम्मीदवार ने स्थानीय मीडिया को बताया कि इंटरव्यू में उससे पहले वाली एक उम्मीदवार रोते हुए बाहर आई थी। उस उम्मीदवार को उसकी ड्रेस ऊपर उठाने के लिए कहा गया था। उसने ड्रेस ऊपर किया लेकिन इंटरव्यू लेने वाले और अधिक देखना चाहते थे। आखिरकार महिला को ब्रा और अंडरवियर में सामने आना पड़ा।

बियंका ने कहा, “एक महिला ने मुझसे मुँह खोलने के लिए कहा और अंदर झाँकने लगी जैसे मैं कोई कुत्ता हूँ। महिला ने मेरे दाँत देखने के लिए अपनी आँखें लगभग मेरे मुँह के भीतर ही घुसा दीं थी। इस व्यवहार से मुझे बेहद अपमानित महसूस हुआ। बियंका ने कहा कि उसे चिड़ियाघर के किसी जानवर सा महसूस हो रहा था।

रिपोर्ट के अनुसार एक तीसरी उम्मीदवार मारिया (19 साल) ने बताया कि कुछ आवेदकों से वजन कम करने के लिए कहा गया जबकि कुछ को वजन बढ़ाने के लिए कहा गया। जानकारी के मुताबिक इन आरोपों पर फिलहाल कुवैत एयरवेज या Meccti Ltd. की तरफ से कोई टिप्पणी नहीं की गई है।

तहलका का चमत्कारी इंटरव्यू : ‘वो(राहुल गाँधी) नशेड़ी है, कुछ भी बोलता रहता है’

राहुल गांधी ने कहा- आगे बड़ा तूफान ...
मुझे एक सम्पूर्ण राजनीतिज्ञ बनना है। इसके लिए मुझे एकाध चुनाव हारने पड़ेंगे। अगर मैं चुनाव नहीं हारता हूँ तो मैं एक अच्छा नेता नहीं बन पाऊँगा। मैं हार से डरता नहीं हूँ। ये मेरी ज़िंदगी का हिस्सा है।“- ये पंक्तियाँ पहली बार सांसद बने एक ऐसे व्यक्ति की है, जो इसके 12 साल बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी का अध्यक्ष बना। ये इंटरव्यू उन्होंने ‘तहलका’ में दिया था, जिससे कांग्रेस की फजीहत हुई थी और तरुण तेजपाल को कहा गया कि वो इसे फेक साबित कर दें। 
ये इंटरव्यू ‘तहलका’ के लिए विजय सिम्हा ने लिया था। बाद में ‘ज़ी न्यूज़’ से बात करते हुए उन्होंने बताया था कि ‘तहलका’ के संपादक तरुण तेजपाल ने राहुल गाँधी के 2005 के इस इंटरव्यू को दबा दिया था। सेक्स स्कैंडल में फँसे तरुण तेजपाल फ़िलहाल जेल में हैं। विजय सिम्हा ने कहा था कि शुरुआत में तरुण तेजपाल की आवाज़ में दम होता था और बैठक वगैरह में वो काफी प्रभाव डालते थे।
उन्होंने बताया कि वो 2005 में राहुल गाँधी से मिले थे, जो उस समय नए-नए राजनीति में आए थे और उन्होंने कांग्रेस व राजनीति के बारे में काफी चीजें कही थीं। कांग्रेस की समस्याओं पर भी उस इंटरव्यू में बात हुई थी। बकौल विजय सिम्हा, उस समय कई लोग कांग्रेस में इस चिंता में पड़ गए थे कि उनकी ‘नौकरी’ चली जाएगी और वो कहने लगे थे कि ये किस व्यक्ति से बात कर लिया, ये तो नशेड़ी है।
उन्होंने आगे बताया कि इसके बाद तरुण तेजपाल दबाव में आ गए। पहले तो उन्होंने डिफेंड किया कि उनके पत्रकार ने कुछ भी गलत नहीं किया है और सब ठीक है लेकिन बाद में वो अचानक से पलट गए। सिम्हा बताते हैं कि इस प्रकरण के कारण ही उनके मन में पहली बार तेजपाल को लेकर शंका हुई। बाद में पत्रकार विजय सिम्हा पर ही आरोप लगाए गए कि उन्होंने स्टिंग कर दिया या फिर काल्पनिक बातचीत को छाप दिया।
जबकि सिम्हा इन बातों को नकारते हैं। वो कहते हैं कि इन आरोपों की कोई सच्चाई नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया था कि तरुण ने इस स्टोरी को ‘किल’ कर दिया, दबा दिया। उनके अनुसार ऐसे कई पत्रकार थे, लेकिन हाथ में चीजें न होने के कारण वो कुछ कर नहीं पाते थे। नीचे संलग्न ‘ज़ी न्यूज़’ के वीडियो में आप देख सकते हैं कि कैसे विजय सिम्हा ने उस इंटरव्यू को दबाए जाने के बारे में खुलासा किया।
क्या कहा था राहुल गाँधी ने तहलका के इंटरव्यू में 
ट्विटर पर ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ की ट्रेजरर शीला भट्ट ने इस इंटरव्यू के स्क्रीनशॉट्स शेयर किए और कहा कि उनकी आलमारी से ये राहुल गाँधी का पुराना इंटरव्यू निकल आया है, जो काफी प्रभावी है। सितम्बर 2005 के इस इंटरव्यू के बारे में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के पत्रकार दीप्तिमान तिवारी ने याद दिलाया कि कैसे इस इंटरव्यू को दबाने के लिए कांग्रेस ने ‘तहलका’ पर भारी दबाव बनाया था। 
तिवारी ने याद दिलाया कि कैसे कांग्रेस पार्टी के आगे झुकते हुए ‘तहलका’ ने इसे पहले अनौपचारिक बातचीत करार दिया। तब मैगजीन की ओर से कहा गया था कि ये तो सिर्फ एक बातचीत है, जिसे इंटरव्यू समझा जा रहा है लेकिन ये इंटरव्यू तो है ही नहीं। और तो और, इंटरव्यू लेने वाले विजय सिम्हा को बेइज्जत तक किया गया। दरअसल, उस इंटरव्यू में राहुल गाँधी ने ऐसी-ऐसी बातें की थीं कि कांग्रेस पार्टी की खासी फजीहत हुई थी।
                                                         साभार : ZeeNews
राहुल गाँधी ने इस इंटरव्यू की शुरुआत भारत को नंबर-1 बनाने की बात से की थी और कहा था कि इसके लिए 30 से कम उम्र वाले हर युवा को कोशिश करना होगा और वो इतिहास दोहराने का रिस्क नहीं ले सकते। नीचे हम बिंदुवार तरीके से राहुल गाँधी द्वारा दिए गए बयानों को उनके शब्दों में हूबहू पेश कर रहे हैं। इसके बाद आप समझ सकते हैं कि कॉन्ग्रेस ने इसे दबाने के लिए क्यों इतना प्रयास किया:
*अमेठी में काफी मुद्दे हैं। मैं तो सिर्फ एक सांसद हूँ। मुझे MPLAD फण्ड में 2 करोड़ रुपए मिलते हैं। इससे मैं ज्यादा से ज्यादा 8 किलोमीटर सड़क बना सकता हूँ। लेकिन हम अमेठी में 500 किलोमीटर सड़क बनाने में सक्षम हुए हैं। इससे ज्यादा हम क्या कर सकते हैं? कुछ भी तो नहीं। मैं अपने प्रभाव का उपयोग कर के मंत्रियों के सामने हाथ जोड़ कर कह सकता हूँ कि ‘भैया, ये कर दो’ और काम हो सकता है।
*उत्तर प्रदेश और बिहार अलग ही कैटेगरी में आते हैं। यहाँ सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। (ये पूछे जाने पर कि कांग्रेस फिर भी मुलायम सिंह यादव की सरकार का समर्थन क्यों कर रही है): ये ऐसा नहीं चलेगा। मैं इसका समर्थन नहीं करता। मैं इसे लेकर कुछ करूँगा।
*(मुलायम और लालू के समर्थन पर): मैं घूम-घूम कर लोगों को नहीं कह सकता कि मुलायम और लालू का क्या करना है। इसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शामिल हैं। वही ये सब निर्णय लेते हैं। ये एक जटिल मुद्दा है। इसे छोड़ कर विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
*(अमेठी में कैसे काम करते हैं): मैं NGO के माध्यम से काम करता हूँ और मीडिया की इसमें कोई रूचि नहीं है। भारत 150 करोड़ लोगों का देश है। मीडिया चाहता है कि सब कुछ कल ही चुटकियों में हो जाए। ऐसा नहीं होता है। आप एक महीने बाद अमेठी आएँगे तो पाएँगे कि हर कांग्रेस नेता एक-दो छात्रों को पढ़ा रहा है। मेरा यही तरीका है।
*(शिक्षा में आईटी के उपयोग पर): आईटी को लेकर मीडिया में कुछ ज्यादा ही हाइप है। मुझे इसका प्रभाव एक सीमित क्षेत्र में ही दिख रहा। कर्नाटक व तमिलनाडु में अच्छे कार्य हो रहे लेकिन हर जगह ऐसी स्थिति नहीं है।
*मुझे कोई कहता है कि आप फेल हो रहे हो तो मैं कहता हूँ कि ये ठीक है। उत्तर प्रदेश में कहीं कुछ भी अच्छा हो रहा है तो ये मेरी सफलता है। देश में कोई भी सांसद इतना काम नहीं कर रहा, जितना मैं कर रहा हूँ।
*दम्भ को लेकर मेरा पहला पाठ मुझे यूके में एक बाथरूम में मिला, जब मैं एक कम्पनी में काम करता था। (एक अजीब कहानी जो समझ नहीं आई।)
कांग्रेस वर्किंग कमिटी का सदस्य होकर मैं प्रधानमंत्री को नहीं बोल सकता कि आप क्या करो और क्या नहीं। मैं पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों को कुछ करने, न करने नहीं बोल सकता हूँ।
*लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं विदेश क्यों जाता हूँ। मैं बने-बनाए ढर्रे पर राजनीति करने नहीं बल्कि उसे बदलने आया हूँ। मैं अलग-अलग देशों के लोगों से मिलूँगा, वो हमसे हमारी समस्याओं के बारे में पूछते हैं, उसके समाधान पर बात होती है।
जनता की प्रतिक्रियाएं :-
राहुल गाँधी इस इंटरव्यू में काफी कन्फ्यूज नज़र आ रहे हैं। वो खुद को लाचार दिखाने के लिए कहते हैं कि उनके पास फंड्स नहीं है, वो विदेश आना-जाना जारी रखेंगे क्योंकि इससे भारत का फायदा है, पीएम व मंत्रियों को वो कुछ करने, न करने को नहीं बोल सकते। वो ये भी कहते हैं कि हाथ जोड़ के निवेदन कर सकते हैं। लालू-मुलायम के समर्थन पर भी वो कुछ-कुछ बोलते हैं। बाथरूम वाली कहानी क्या थी, ये हमारे समझ में अब तक नहीं आई।
इन्हीं कारणों से कांग्रेस ने इसे दबा दिया और इसके लिए तरुण तेजपाल का सहारा लिया। विजय सिम्हा ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि वो सीनियर एडिटर थे लेकिन रिपोर्ट तो तेजपाल को ही करते थे, इस कारण वो कुछ नहीं कर पाए। एक पत्रकार की मेहनत को एक पार्टी विशेष को खुश करने के लिए दबा दिया गया। हालाँकि खुलासा तो यह भी होना चाहिए कि किन कांग्रेस नेताओं ने राहुल गाँधी को नशेड़ी बताते हुए कहा था कि ये कुछ भी बोलते रहते हैं।

प्रोफाइल फोटो से न्यूड पिक बनाकर गंदे मीम्स बनाते हैं: काजल

काजल हिंदुस्तानी, रावण
काजल हिंदुस्तानी 
भीम आर्मी का मुखिया चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण सोशल मीडिया में महिलाओं के लिए कितनी गंदी भाषा का इस्तेमाल करता है, इस पर एक रिपोर्ट हमने कल प्रकाशित की थी। लड़कियों के ट्वीट्स के नीचे रेप की बात, वेश्या कहना, जिस्म बेचने वाली कहना आदि पतितों वाली बातें लिखना उसकी हॉबी है।
रावण हर महिला के लिए इसी तरह की गंदी जुबान का इस्तेमाल करता है। जो महिलाएँ अक्सर उसके निशाने पर रहती हैं, उनमें से एक नाम वीडियो ब्लॉगर काजल हिंदुस्तानी का है। रावण के घटिया, अश्लील और गाली भरे ट्वीट्स को ले कर काजल ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ऑपइंडिया से बात की। इस दौरान उन्होंने ऑपइंडिया हिंदी के संपादक अजीत भारती के सवालों का विस्तार से जवाब दिया और रावण के करतूतों की पोल खोली।


अजीत भारती के साथ काजल हिंदुस्तानी की पूरी बातचीत सुनें
गुजरात से आने वाली काजल हिंदुस्तानी ने बताया कि 2017 के विधानसभा चुनावों में विपक्षी दलों ने ‘विकास गांडो थायो छे’ का नारा दिया था। इसका मतलब होता है कि गुजरात में विकास पागल हो गया। गुजराती होने के नाते यह मुझे बुरा लगा तो मैंने इसके जवाब में कुछ आँकड़ों के साथ एक वीडियो बनाया। वह इतना वायरल हुआ कि उसे 7-8 मिलियन व्यू मिले। इस वीडियो के वायरल होते ही इनका नारा फेल हो गया।
इसके बाद से ही गुजरात का स्वयंभू दलित नेता जिग्नेश मेवाणी गैंग और चन्द्रशेखर का गैंग मैरे पीछे पड़ गया। 2017 के बाद तो रावण ने मुझे इतना परेशान कर दिया कि वह मुझे लाइन चैटिंग करता था। मेरी हर पोस्ट पर कमेंट करता था। लेकिन मैंने कभी उसके कभी जवाब नहीं दिया, क्योंकि वह इस लायक नहीं था। रावण ने एक- डेढ़ साल तक मुझे लगातार परेशान किया। उसने मेरे बच्चों के बारे में भी पता कर लिया।
काजल ने आगे बताया कि जिग्नेश मेवाणी और रावण जैसे लोगों की हरकतों को देखकर तो ऐसा लगता है कि ये लोग 24 घंटे पोर्न देखते होंगे। इसलिए हर एक महिला को ये गंदी नजर से देखते हैं। मेरे लिए ‘बिस्तर गर्म’ करने जैसे शब्दों को पढ़कर लगता है कि ये लोग कितने कुंठित हैं। इनके अंदर भरी गंदगी को कोई भी कर्मचारी साफ नहीं कर सकता।
काजल ने बताया कि रावण ने उनके लिए इतने अश्लील शब्दों का प्रयोग किया कि वह बता भी नहीं सकतीं। लेकिन बीते दिनों रावण द्वारा उन पर किए गए सभी कमेंट सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। उन्होंने कहा मैं उन सभी भाई-बहनों का शुक्रिया अदा करूँगी जिन्होंने मेरा सपोर्ट किया। मुझे भारतीय महिला होने पर गर्व है। मुझे खुशी है कि इस मामले में सहारनपुर पुलिस और महिला आयोग ने एक्शन लिया है।
काजल आगे सवालों का जवाब देते हुए बताती हैं कि ये जो भीम-मीम वाले लोग हैं वे उनकी प्रोफाइल से फोटो निकालकर न्यूड पिक बनाकर गंदे मीम्स बनाते हैं। इन्हें देखकर कोई भी महिला सुसाइड कर सकती है। चौंकाने वाली बात यह है कि ऐसे लोगों के अकाउंट्स को ट्विटर वेरीफाइ करता है।
अपने नाम के पीछे हिंदुस्तानी लगाने को लेकर काजल ने बताया कि गुजरात में 2017 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान उन्हें जिग्नेश मेवाणी वगैरह ने ब्राह्मण होने को लेकर बहुत टार्गेट किया था। इसके बाद उन्होंने अपने नाम के पीछे हिंदुस्तानी लगा लिया, जिससे कि समाज में कोई जाति को लेकर द्वेष पैदा न हो और जातिवाद की राजनीति समाप्त हो।
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काजल हिन्दुस्तानी (बाएँ) और भीम आर्मी प्रमुख रावण (दाएँ) जनता भी किन भ्रष्ट और घिनौनी सोंच वालों को अपना नेता मान बै.....
भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर उर्फ रावण के कुछ पुराने ट्वीट सामने आए थे। इनमें से हरेक में एक बात कॉमन है कि वह महिलाओं को भद्दी गालियॉं दे रहा है।