20 अगस्त संसद का काला दिन; क्या जनता ने विपक्ष के नाम पर सफेदपोशी गुंडों को लोकसभा में भेजा है?

भ्रष्टाचार विरोधी बिल पेश करते समय गृह मंत्री अमित शाह पर विपक्ष ने फेंके कागज के गोले 
IndiaTV के "कहानी कुर्सी की" शो(21 अगस्त) में बताया गया कि 20 अगस्त 2025 संसद के इतिहास का काला दिन कहा जा रहा है, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लोक सभा में 
PM हो या CM, या फिर केंद्र से लेकर राज्य तक के मंत्री… जेल में रहकर नहीं चला पाएँगे सरकार बिल पेश कर रहे थे, उस समय विपक्ष द्वारा अपनाया रवैया गुंडागर्दी से कम नहीं। क्या जनता ने विपक्ष के नाम पर सफेदपोशी गुंडों को लोकसभा में भेजा है? लोक सभा इतिहास में यह पहला मौका था जब गृह मंत्री द्वारा पेश किये जा बिल के दौरान उनकी सुरक्षा के लिए सदन में मार्शल्स को बुलाया गया। दूसरे, गृह मंत्री को अपने स्थान से हटकर पीछे(दूसरी/तीसरी) पंक्ति में जाकर बिल को पेश करना पड़ा। सदन में हुए उपद्रव में कांग्रेस और तृणमूल(TMC) के सांसद रहे। क्या विपक्ष देश से भ्रष्टाचार नहीं हटाना चाहता? 
तृणमूल कांग्रेस के सांसद तो अमित शाह के माइक को अपनी तरफ मोड़ते रहे। क्या यह लोकतंत्र के रक्षक हैं या भक्षक? क्या जनता ने विपक्ष के नाम पर सफेदपोशी गुंडों को लोक सभा भेजा है? विपक्ष के इस दुर्भाग्य पूर्ण रवैये के देख जनता को वोट देने से पहले सोंचना होगा।

           
  
21 जुलाई, 2025 को संसद का मॉनसून सत्र चालू हुआ, जो 21 जुलाई 2025 से 21 अगस्त, 2025 तक चलेगा। 32 दिनों वाले इस सत्र में 21 बार संसद की बैठक होगी। विपक्ष के हंगामे के चलते संसद का पहला दिन ही कामकाज के मामले में ठप हो गया। पहले प्रश्न काल के दौरान व्यवधान हुआ तो 12 बजे तक लोकसभा की कार्यवाही रोकी गई, फिर हंगामे के चलते लोकसभा की कार्यवाही 2 बजे तक रोक दी गई।

संसद में हंगामा और कार्यवाही रुकना कोई विचित्र बात नहीं है। दुनिया भर की सांसदों में यह होता है। लेकिन लगातार पूरे-पूरे दिन संसद ना चलने देना और पहले बैठकों में सहमति बनाने के बाद भी डेडलॉक पैदा करना भारत के विपक्ष की आदत बन गई है। अब तो स्थिति ऐसी हो गई है कि लोग पहले ही बता देते हैं कि संसद का सत्र चालू होने से पहले या तो कोई रिपोर्ट आएगी या कोई ऐसा मुद्दा उठेगा जिस पर हंगामा होगा, इसके बाद संसद सत्र बर्बाद होगा।

संविधान की रक्षा करने का रोना रोने वाले INDI गठबंधन को ना ही महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग और ना ही अन्य संवैधानिक संस्थाओं तक का सम्म्मान नहीं करता। क्या ऐसे बेगैरत INDI गठबंधन से देश के सम्मान की कल्पना की जा सकती है, ये सबसे बड़ा प्रश्न है, जिसका जवाब जनता को इस ठग INDI गठबंधन से पूछनी चाहिए। इस तरह का बेगैरत विपक्ष भारत ने कभी नहीं देखा। क्या ये INDI गठबंधन वर्तमान युग का जयचन्द गैंग है?            

कार्यवाही रुकना यानी करोड़ों की बर्बादी

मॉनसून सत्र का पहले ही दिन हंगामा भरा होना कोई शुभ संकेत नहीं है। यह सत्र 32 दिन चलने वाला है और इसमें 21 दिन संसद की बैठक होगी। नियमानुसार, हर दिन संसद के दोनों सदन 6 घंटे काम करते हैं। यह समय घट-बढ़ भी सकता है।

लेकिन 21 दिन भी संसद चले और 6 घंटे भी काम करे तो इस पर भारी-भरकम खर्च होता है। यह खर्च जनता के पैसे का होता है, जिसे हम टैक्स कहते हैं। लोकसभा के पूर्व महासचिव PDT आचार्य ने कई वर्षों पहले बताया था कि संसद का एक मिनट चलाने पर भी 2.5 लाख रूपए का खर्च होता है।

इसमें सांसदों की तनख्वाह, बिजली-पानी के बिल समेत बाकी खर्च शामिल होते हैं। यह खर्च अभी तक काफी बढ़ गया होगा। लेकिन 2.5 लाख रूपए खर्च आज भी प्रति मिनट माना जाए, तो इस मॉनसून सत्र पर सैकड़ों करोड़ खर्च होने वाले हैं।

सीधी गणित के हिसाब से इस संसद सत्र पर 2.5 लाख रूपए/मिनट के हिसाब से 189 करोड़ रूपए खर्च होने हैं। 21 दिन में संसद 126 घंटे चलने वाली है। यानी इसकी कार्रवाई 7560 मिनट चलेगी। इन 7560 मिनटों को 2.5 लाख रूपए से गुना करे तो यह 189 करोड़ रूपए की धनराशि खर्च होगी।

संसद के खर्च इसके अलावा और भी होते हैं, जैसे सांसदों को संसद सत्र के दौरान आने का हर दिन का 2500 रूपए भत्ता भी मिलता है। ऐसे में यह खर्च बढ़ता ही है, देश के लोकतंत्र के मंदिर पर खर्च हो, इससे किसी को ऐतराज नहीं है, लेकिन जिस तरह से इस सत्र की शुरुआत हुई है उससे अच्छे आसार नहीं लगते।

सरकार इस सत्र के पहले हुई सर्वदलीय बैठक में कह चुकी है कि वह ऑपरेशन सिंदूर समेत सभी मुद्दों पर बात करने को तैयार है। विपक्ष की माँग थी कि इस दौरान बिहार में चुनाव आयोग की पुनरीक्षण प्रक्रिया पर बात हो और एअर इंडिया हादसे को लेकर भी बात हो।

क्यों चिंताजनक है यह ट्रेंड?

संसद को चलाना पक्ष और विपक्ष दोनों की बराबर की जिम्मेदारी होती है। संसद का कम दिनों चलना और कम काम करना चिंताजनक इसलिए भी है कि इससे व्यवस्था के दूसरे हिस्सों को प्रभाव बढ़ाने का मौक़ा मिलता है। एक रिपोर्ट बताती है कि जहाँ पहली लोकसभा (1952-57) साल में 135 दिन बैठी तो वहीं 17वीं लोकसभा (2019-24) मात्र 55 दिन चली।

इससे भी चिंताजनक यह ट्रेंड है कि इन 17वीं लोकसभा का लगभग 50% समय हंगामे और बवाल की भेंट चढ़ गया। इससे जहाँ एक ओर जनता का पैसा बर्बाद होता है तो वहीं दूसरी तरफ महत्वपूर्ण विधेयकों पर तक चर्चा नहीं हो पाती।

ऐसे में विपक्ष को सिर्फ हंगामे की जगह अपने तर्क और सबूत के आधार पर संसद में सरकार को घेरने की नीति बनानी चाहिए ना कि कार्यवाही पर ही ग्रहण लगा देना चाहिए। इससे जनता का विश्वास बढ़ेगा ही, देश का लोकतंत्र मजबूत होगा और सरकारी पैसे की बर्बादी रुकेगी।

प्रधानमंत्री से मिले 2024 बैच के आईएफएस प्रशिक्षु, भारत की ‘विश्वबंधु’ भूमिका पर हुई विशेष चर्चा


19 अगस्त का दिन 2024 बैच के भारतीय विदेश सेवा (IFS- आईएफएस) के प्रशिक्षु अधिकारियों के लिए काफी खास रहा, जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके आवास, 7 लोक कल्याण मार्ग पर मुलाकात की। इस मुलाकात में प्रधानमंत्री ने इन भावी राजनयिकों के साथ एकदम खुलकर बातचीत की और भारत की वैश्विक भूमिका, कूटनीति और तकनीक से जुड़े कई अहम मुद्दों पर चर्चा की।

बैच में देश के अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कुल 33 प्रशिक्षु अधिकारी शामिल हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पहले भारत की भूमिका पर बात की – कैसे आज का भारत ‘विश्वबंधु’ के रूप में उभर रहा है, यानी ऐसा देश जो दुनिया के हर कोने से दोस्ती निभा रहा है। उन्होंने कहा कि जब भी किसी देश को जरूरत पड़ी, भारत ने सबसे पहले मदद का हाथ बढ़ाया – चाहे वो वैक्सीन भेजना हो, आपदा में राहत देना हो या तकनीकी सहयोग।

प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों के साथ भारत के सहयोग का भी जिक्र किया और बताया कि भारत ने न सिर्फ खुद को मजबूत किया है, बल्कि दूसरे देशों की क्षमता निर्माण में भी सहयोग दिया है। उन्होंने प्रशिक्षुओं से कहा कि भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाना है, और इस लक्ष्य को हासिल करने में आईएफएस अधिकारियों की भूमिका बेहद अहम है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आप लोग देश की विदेश नीति के चेहरे होंगे – दुनिया को भारत से जोड़ने का काम आपके हाथों में है।

मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री ने अधिकारी प्रशिक्षुओं से सीधे संवाद भी किया और पूछा कि अब तक के प्रशिक्षण में उन्होंने क्या अनुभव किया है। प्रशिक्षुओं ने अपने प्रोजेक्ट्स और रिसर्च से जुड़े अनुभव साझा किए – जिनमें समुद्री कूटनीति, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर्स, आयुर्वेद, सांस्कृतिक जुड़ाव और सॉफ्ट पावर जैसे विषय शामिल थे।

प्रधानमंत्री ने खास तौर पर सुझाव दिया कि अलग-अलग देशों के युवाओं में भारत को लेकर जिज्ञासा बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए उन्होंने “अपने भारत को जानें” जैसी प्रश्नोत्तरी और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं को और अधिक रोचक बनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि इनमें भारत के समकालीन मुद्दों और उत्सवों को भी शामिल किया जाए – जैसे महाकुंभ और गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर के 1000 साल पूरे होने जैसे आयोजन।

तकनीक की बात करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आज की दुनिया तकनीक-प्रेरित है, और इसमें संचार यानी कम्युनिकेशन की भूमिका बहुत बड़ी है। उन्होंने प्रशिक्षुओं से आग्रह किया कि वे विदेशों में स्थित भारतीय मिशनों की वेबसाइट्स को अच्छे से समझें और जानें कि प्रवासी भारतीयों से बेहतर संवाद कैसे स्थापित किया जा सकता है। अंतरिक्ष क्षेत्र पर बात करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में इस सेक्टर में जबरदस्त संभावना है। निजी स्टार्टअप्स इस दिशा में अच्छा कर रहे हैं, और अब जरूरत है कि हम अंतरराष्ट्रीय अवसरों की ओर भी देखें। उन्होंने आत्मविश्वास से कहा कि भारत इस क्षेत्र में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। 

189,00,00,000 रूपए इस मॉनसून सत्र में बर्बाद करेगा बेगैरत विपक्ष? मोदी सरकार ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा को तैयार, फिर भी जारी है हुड़दंग

बेसिर पैर का हंगामा कर जनता के धन को बर्बाद करता INDI गठबंधन 
सोमवार (21 जुलाई, 2025 को संसद का मॉनसून सत्र चालू हुआ, जो 21 जुलाई 2025 से 21 अगस्त, 2025 तक चलेगा। 32 दिनों वाले इस सत्र में 21 बार संसद की बैठक होगी। विपक्ष के हंगामे के चलते संसद का पहला दिन ही कामकाज के मामले में ठप हो गया। पहले प्रश्न काल के दौरान व्यवधान हुआ तो 12 बजे तक लोकसभा की कार्यवाही रोकी गई, फिर हंगामे के चलते लोकसभा की कार्यवाही 2 बजे तक रोक दी गई।

संसद में हंगामा और कार्यवाही रुकना कोई विचित्र बात नहीं है। दुनिया भर की सांसदों में यह होता है। लेकिन लगातार पूरे-पूरे दिन संसद ना चलने देना और पहले बैठकों में सहमति बनाने के बाद भी डेडलॉक पैदा करना भारत के विपक्ष की आदत बन गई है। अब तो स्थिति ऐसी हो गई है कि लोग पहले ही बता देते हैं कि संसद का सत्र चालू होने से पहले या तो कोई रिपोर्ट आएगी या कोई ऐसा मुद्दा उठेगा जिस पर हंगामा होगा, इसके बाद संसद सत्र बर्बाद होगा।

संविधान की रक्षा करने का रोना रोने वाले INDI गठबंधन को ना ही महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग और ना ही अन्य संवैधानिक संस्थाओं तक का सम्म्मान नहीं करता। क्या ऐसे बेगैरत INDI गठबंधन से देश के सम्मान की कल्पना की जा सकती है, ये सबसे बड़ा प्रश्न है, जिसका जवाब जनता को इस ठग INDI गठबंधन से पूछनी चाहिए। इस तरह का बेगैरत विपक्ष भारत ने कभी नहीं देखा। क्या ये INDI गठबंधन वर्तमान युग का जयचन्द गैंग है?            

कार्यवाही रुकना यानी करोड़ों की बर्बादी

मॉनसून सत्र का पहले ही दिन हंगामा भरा होना कोई शुभ संकेत नहीं है। यह सत्र 32 दिन चलने वाला है और इसमें 21 दिन संसद की बैठक होगी। नियमानुसार, हर दिन संसद के दोनों सदन 6 घंटे काम करते हैं। यह समय घट-बढ़ भी सकता है।

लेकिन 21 दिन भी संसद चले और 6 घंटे भी काम करे तो इस पर भारी-भरकम खर्च होता है। यह खर्च जनता के पैसे का होता है, जिसे हम टैक्स कहते हैं। लोकसभा के पूर्व महासचिव PDT आचार्य ने कई वर्षों पहले बताया था कि संसद का एक मिनट चलाने पर भी 2.5 लाख रूपए का खर्च होता है।

इसमें सांसदों की तनख्वाह, बिजली-पानी के बिल समेत बाकी खर्च शामिल होते हैं। यह खर्च अभी तक काफी बढ़ गया होगा। लेकिन 2.5 लाख रूपए खर्च आज भी प्रति मिनट माना जाए, तो इस मॉनसून सत्र पर सैकड़ों करोड़ खर्च होने वाले हैं।

सीधी गणित के हिसाब से इस संसद सत्र पर 2.5 लाख रूपए/मिनट के हिसाब से 189 करोड़ रूपए खर्च होने हैं। 21 दिन में संसद 126 घंटे चलने वाली है। यानी इसकी कार्रवाई 7560 मिनट चलेगी। इन 7560 मिनटों को 2.5 लाख रूपए से गुना करे तो यह 189 करोड़ रूपए की धनराशि खर्च होगी।

संसद के खर्च इसके अलावा और भी होते हैं, जैसे सांसदों को संसद सत्र के दौरान आने का हर दिन का 2500 रूपए भत्ता भी मिलता है। ऐसे में यह खर्च बढ़ता ही है, देश के लोकतंत्र के मंदिर पर खर्च हो, इससे किसी को ऐतराज नहीं है, लेकिन जिस तरह से इस सत्र की शुरुआत हुई है उससे अच्छे आसार नहीं लगते।

सरकार इस सत्र के पहले हुई सर्वदलीय बैठक में कह चुकी है कि वह ऑपरेशन सिंदूर समेत सभी मुद्दों पर बात करने को तैयार है। विपक्ष की माँग थी कि इस दौरान बिहार में चुनाव आयोग की पुनरीक्षण प्रक्रिया पर बात हो और एअर इंडिया हादसे को लेकर भी बात हो।

सरकार ने इसके लिए भी हामी भरी थी। हालाँकि, पहला दिन ही हंगामे की भेंट चढ़ा दिया गया। ऐसे में यह आशंका और गहरी हो जाती है कि इस बार भी जनता ठगी सी रह जाएगी और लगभग 200 करोड़ रूपए को सिर्फ तख्तियों और हंगामों में सिमटता देखेगी।

पहले के सत्र भी हो चुके बर्बाद

यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब संसद का सत्र शुरू होने से पहले ही उसे बर्बाद करने की ठान ली गई हो। विपक्ष ने इस बार मॉनसून सत्र मुद्दा बिहार में चुनाव आयोग की प्रक्रिया और ऑपरेशन सिंदूर तथा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान बनाए हैं लेकिन इससे पहले भी हर बार संसद सत्र को बर्बाद करने की पटकथा लिख ली जाती है।

विपक्ष ने पेगासस स्नूपिंग के आधारहीन आरोपों के लेकर राफेल और अडानी-हिंडनबर्ग तक के मुद्दे उठाए हैं। यह मुद्दे संसद क सत्र बर्बाद करने में बड़ा कारण रहे हैं। बजट सत्र 2023 को बर्बाद करने के लिए कांग्रेस और विपक्ष ने अडानी के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा प्रकाशित हिट जॉब वाली रिपोर्ट मुद्दा उठाया था और पूरा सत्र बर्बाद कर दिया था।

इसी सत्र के पहले BBC की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बनाई प्रोपेगेंडा डाक्यूमेंट्री को लेकर भी बवाल विपक्ष ने किया था। 2023 के ही शीत सत्र के पहले एप्पल फोन की नोटिफिकेशन पर बवाल विपक्ष ने मचाया था। हालाँकि, यह मुद्दा बड़ा बनता लेकिन एप्पल ने सफाई दे दी।

इससे भी 2021 में मॉनसून सत्र के पहले पेगासस की स्टोरी को लेकर बवाल मचाया गया था और दावा किया गया था कि सरकार स्नूपिंग में लिप्त है। यह कहानी बाद में झूठी निकली लेकिन संसद का सत्र बर्बाद हो गया। इसमें भी जनता का अरबों रुपया बर्बाद हुआ।

2021 में राहुल गाँधी ने राफेल विमान खरीद में घोटाले का कथित मामला उठाया। यह विदेशी मीडिया में कुछ रिपोर्ट्स आने के बाद उठाया गया था। इसको लेकर 2021 में संसद के सत्र हंगामे भरे रहे। राफेल मामले में हवा-हवाई दावे संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक नहीं टिक पाए। लेकिन संसद का समय बर्बाद होता गया।

इस दौरान जिस समय का उपयोग देश में नए कानून की चर्चा, पुराने कानूनों में सुधार करने और जनता के प्रश्न उठाने के लिए होना चाहिए था, उसका उपयोग विपक्ष ने तख्तियाँ उछालने और हंगामा मचाने में किया। विपक्ष ने इस दौरान कई मौकों पर डेडलॉक की स्थिति पैदा की और संसदीय काम जहाँ का तहाँ लटक गया।

क्यों चिंताजनक है यह ट्रेंड?

संसद को चलाना पक्ष और विपक्ष दोनों की बराबर की जिम्मेदारी होती है। संसद का कम दिनों चलना और कम काम करना चिंताजनक इसलिए भी है कि इससे व्यवस्था के दूसरे हिस्सों को प्रभाव बढ़ाने का मौक़ा मिलता है। एक रिपोर्ट बताती है कि जहाँ पहली लोकसभा (1952-57) साल में 135 दिन बैठी तो वहीं 17वीं लोकसभा (2019-24) मात्र 55 दिन चली।

इससे भी चिंताजनक यह ट्रेंड है कि इन 17वीं लोकसभा का लगभग 50% समय हंगामे और बवाल की भेंट चढ़ गया। इससे जहाँ एक ओर जनता का पैसा बर्बाद होता है तो वहीं दूसरी तरफ महत्वपूर्ण विधेयकों पर तक चर्चा नहीं हो पाती।

ऐसे में विपक्ष को सिर्फ हंगामे की जगह अपने तर्क और सबूत के आधार पर संसद में सरकार को घेरने की नीति बनानी चाहिए ना कि कार्यवाही पर ही ग्रहण लगा देना चाहिए। इससे जनता का विश्वास बढ़ेगा ही, देश का लोकतंत्र मजबूत होगा और सरकारी पैसे की बर्बादी रुकेगी।

नीचता पर उतरी कांग्रेस : मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की बेटी के भी पीछे पड़ा कांग्रेसी इकोसिस्टम, राहुल गाँधी से ‘वोट चोरी’ पर माँगा था हलफनामा

                                      सीईसी ज्ञानेश कुमार (बाएँ), राहुल गाँधी (साभार: India Today/ET)
राहुल गाँधी के ‘वोट चोरी’ वाले प्रोपेगेंडा की पोल खोलने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को अब 
कांग्रेस इकोसिस्टम टारगेट कर रहा है। यहाँ तक की उनके परिवार को भी सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जा रहा है। ज्ञानेश कुमार की दोनों बेटी मेधा रूपम और अभिश्री को भी इसका हिस्सा बनाया गया।

सोशल मीडिया पर कांग्रेस इकोसिस्टम ने ज्ञानेश कुमार के परिवार को बीजेपी का परिवार करार दिया। कांग्रेसियों ने सोशल मीडिया पर एक क्रम से ज्ञानेश कुमार के परिवार पर पोस्ट डालने चालू किए। हर पोस्ट में ज्ञानेश कुमार के परिवार का डाटा निकालकर ट्रोल किया गया।

पोस्ट में बताया गया कि ज्ञानेश कुमार की पहली बेटी मेधा रूपम, जो नोएडा की डीएम हैं और उनके पति मनीष बंसल सहारनपुर के डीएम हैं। इसके बाद दूसरी बेटी अभिश्री श्रीनगर IRS की डिप्टी डायरेक्टर हैं और उनके पति अखय लाब्रू श्रीनगर के डीएम हैं।

अब ज्ञानेश कुमार की बेटी और उनके पति को प्रशासन में उच्च पद हासिल करने को लेकर सवाल उठाए गए। कांग्रेस इकोसिस्टम ने इसे बीजेपी से जोड़ दिया। इनमें कांग्रेस के सोशल मीडिया स्टार और कांग्रेस की चापलूसी करने वाले कई वामपंथी लोग शामिल हैं।

मुंबई कॉन्ग्रेस ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के परिवार को टारगेट किया। उन्होंने भी ज्ञानेश कुमार, उनकी बेटी और दामाद के प्रशासनिक पद हासिल करने पर सवाल उठाते हुए ज्ञानेश के परिवार को ‘बीजेपी का परिवार’ करार दिया।

भारतीय युवा कांग्रेस(IYC) के सोशल मीडिया की स्टार मिनी नागरारे ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के परिवार को टारगेट किया।

इसी क्रम में आगे ज्ञानेश कुमार को ‘बीजेपी का परिवार’ बताते हुए कांग्रेस इकोसिस्टम ने पोस्ट किए।

ये वही लोग हैं जो ऑपरेशन सिंदूर की मीडिया ब्रीफिंग करने वाले विदेश सचिव विक्रम मिस्री की बेटी के ट्रोल होने पर दक्षिणपंथी को जिम्मेदार ठहरा रहे थे। उस समय ट्रोलर्स को राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने फटकार भी लगाई थी। 

ज्ञानेश कुमार और उनके परिवार पर ये हमला ऐसे समय में शुरु हुआ है, जब उन्होंने वोट चोरी के आरोपों पर राहुल गाँधी से 7 दिनों के भीतर हलफनामा देने या माफी माँगने के लिए कहा है। इसके बाद से वो लगातार कांग्रेसी इकोसिस्टम से जुड़े लोगों के निशाने पर आ चुके हैं।

PM हो या CM, या फिर केंद्र से लेकर राज्य तक के मंत्री… जेल में रहकर नहीं चला पाएँगे सरकार: जानिए कौन सा बिल ला रही मोदी सरकार, किस स्थिति में 31वें दिन ‘दागी’ अपने आप पद से हो जाएँगे मुक्त


अगस्त 20 को लोकसभा में मोदी सरकार 3 विधेयक पेश किए। इसके पास होने के बाद आपराधिक मामलों में जेल गए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन जेल में रहने पर अपने पद पर बने नहीं रह सकते। 30 दिन पूरे होते ही पदमुक्त हो जाएंगे। अभी तक संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था। गृह मंत्री अमित शाह लोक सभा में इन तीनों विधेयकों को पेश करते ही विपक्ष ने विरोध करते शाह के ऊपर कागज फाड़ कर फेंके। 

ये विधेयक हैं-

  1. संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025
  2. संघ राज्य क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक 2025
  3. जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025

130वां संविधान संशोधन विधेयक

  1. संविधान संशोधन विधेयक 2025 के तहत अनुच्छेद 75, 164 और 230ए में संशोधन कर प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री या अन्य मंत्री को हटाने का प्रावधान किया जा रहा है।
विधेयक में कहा गया है, ” कोई भी मंत्री जो गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तार किया जाता है या 30 दिनों तक हिरासत में रखा जाता है, जिसमें 5 साल या उससे अधिक जेल हो सकती है, तो प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति उसे पद से हटा सकते हैं। अगर उसे हटाया नहीं जाता है तो वह 31वें दिन से पदमुक्त माना जाएगा।”
इसी तरह प्रधानमंत्री भी आपराधिक मामलों में गिरफ्तार किए जाते हैं या 30 दिनों तक हिरासत में रहते हैं, जिसमें कम से कम 5 साल जेल की सजा हो सकती है, तो उन्हें भी पद से हटना होगा। अगर नहीं हटते हैं तो 31वें दिन उन्हें पदमुक्त समझा जाएगा।

संघ राज्य क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक 2025

केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार अधिनियम, 1963 (1963 का 20) के तहत गंभीर आपराधिक आरोपों के कारण गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए मुख्यमंत्री या मंत्री को हटाने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार (संशोधन) विधेयक 2025 लाया गया है। इसमें केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार अधिनियम, 1963 की धारा 45 में संशोधन किया जाएगा।
ऐसे मामलों में मुख्यमंत्री या दूसरे मंत्री को हटाने के लिए कानूनी प्रावधान किया जा रहा है। इसमें कहा गया है कि ऐसे आपराधिक मामले, जिसमें 5 साल या उससे अधिक जेल हो सकती है, उसके तहत गिरफ्तार मंत्री को उसके पद से हटाया जा सकता है या 31वें दिन वह खुद ही पदमुक्त माना जाएगा।

जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक में जुड़ेगा खंड

जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 में मुख्यमंत्री या अन्य मंत्रियों को गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी और 30 दिन तक हिरासत में रहने पर पदमुक्त हो जाने का प्रावधान है। इससे पहले जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था। इसलिए इसकी धारा 54 में संशोधन कर 4ए जोड़ा जा रहा है।
इसमें बताया गया है कि 30 दिन हिरासत में रहने पर 31वें दिन मुख्यमंत्री की सलाह पर उपराज्यपाल आरोपित मंत्री को पद से हटा देंगे। अगर मुख्यमंत्री कुछ नहीं कर रहे हैं तो अगले दिन वह खुद ही पदमुक्त हो जाएगा।
विधेयक का मकसद जनता में विश्वास पैदा करना है ताकि संवैधानिक तौर पर नैतिकता की रक्षा की जा सके। इसमें कहा गया है कि जनता अपना प्रतिनिधि विश्वास के साथ चुनती है। लोगों की आशाओं पर खड़े उतरना इनका कर्तव्य है। इसमें ये भी कहा गया है कि मंत्रियों का आचरण किसी भी संदेह से परे होना चाहिए।

दिल्ली के सीएम ने जेल से चलाई सरकार

दिल्ली में शराब घोटाले को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी ने 21 मार्च 2024 को गिरफ्तार किया था। केजरीवाल जेल गए थे, लेकिन उन्होने पद से इस्तीफा नहीं दिया। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने सीएम पद छोड़ा। दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया का भी रहा। उन्हें शराब घोटाले को लेकर गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में वे जेल गए थे। जनता की अदालत में वे भी हार गए। दिल्ली के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन को 2022 में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया गया। वो जेल गए लेकिन पद से इस्तीफा काफी दिनों बाद दिया।

झूठों के सरगना राहुल गाँधी ने बिहार में जीप पर चढ़वाकर जिससे कहलवाया ‘वोट चोरी’, वो निकला बड़ा फ्रॉड: चुनाव आयोग ने राजद BLA सुबोध कुमार के हर झूठ की खोली पोल

बिहार के नवादा में वोट अधिकार यात्रा में सुबोध कुमार से वोट चोरी का आरोप लगवाते राहुल गाँधी की तस्वीर (साभार : X_@RahulGandhi)
SIR को लेकर राहुल गाँधी और INDI गठबंधन जो हंगामा कर उपद्रव कर रहे हैं, लेकिन इनका हर प्रोपेगंडा बेनकाब हो रहा है। फिर भी झूठ का पुलंदा लिए राहुल गुमराह कर अपने LoP पद को कलंकित कर रहे हैं। 

कांग्रेस नेता राहुल गाँधी इस समय बिहार के नवादा में ‘वोट अधिकार यात्रा’ पर निकले हुए है। रैली के दौरान राहुल गाँधी की गाड़ी पर एक शख्स सवार होता है और चुनाव आयोग पर आरोप लगाकर कहता है कि ‘वोट चोरी’ हुई है और उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है।

आश्चर्य नहीं कि चुनाव आयोग की फैक्ट चेक में यह दावा पूरी तरह झूठा निकला। चुनाव आयोग ने बताया कि सुबोध कुमार नाम का यह शख्य कोई आम मतदाता नहीं है, बल्कि ये राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का बूथ लेवल एजेंट (BLA) हैं और उसका नाम कभी भी वोटर लिस्ट में था ही नहीं।

चुनाव आयोग पर राहुल गाँधी का ‘नकली ड्रामा’

राहुल गाँधी को तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं। वो हर चुनाव से पहले बच्चों जैसी जिद पर अड़े रहते हैं कि ‘वोट चोरी हो गई’ और हर बार चुनाव आयोग फैक्ट चेक कर उनके झूठ को उजागर करता है, फिर भी वो वही रट लगाते रहते हैं।

दरअसल, अपनी ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ के दौरान नवादा में एक शख्स को मंच पर माइक थमाकर राहुल गाँधी ने कहा, “इनका नाम वोटर लिस्ट से काट दिया गया है, यही लाखों लोगों के साथ हो रहा है।” यह शख्स सुबोध कुमार था, जिसने राहुल गाँधी के रथ पर चढ़ते ही कैमरे के सामने आरोप जड़ा कि उसका नाम वोटर लिस्ट से गायब है।

राहुल गाँधी ने इस पूरे वाकये को रैली से लाइव दिखाया और फिर सोशल मीडिया पर आग की तरह फैलाया। X (पहले ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा, “जो सुबोध कुमार जी के साथ हुआ, वही लाखों लोगों के साथ बिहार में हो रहा है। वोट चोरी भारत माता पर आक्रमण है– बिहार की जनता ये होने नहीं देगी।”

सुबोध कुमार नाम के व्यक्ति को मंच पर बुलाना, माइक थमाना और कैमरे के सामने आरोप लगवाना… यह सब पहले से स्क्रिप्टेड था। राहुल गाँधी ने इसे ‘भारत माता पर हमला‘ बताया। लेकिन असल हमला जनता की समझदारी पर किया गया छल था। रंजू देवी के झूठ के बाद अब सुबोध कुमार पर राहुल गाँधी की ‘वोट चोरी’ की कहानी हर बार फेल होती है।

फैक्ट चेक: चुनाव आयोग ने आरोपों को किया तार-तार

चुनाव आयोग की विस्तृत जाँच रिपोर्ट के अनुसार, सुबोध कुमार नाम का व्यक्ति कोई आम मतदाता नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का बूथ लेवल एजेंट है। 29 अक्तूबर 2024 को प्रकाशित सूची और फिर 2025 के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) में भी सुबोध कुमार का नाम कभी भी मतदाता सूची में नहीं था। उसके परिवार के कुछ सदस्य सूची में शामिल है, लेकिन खुद उसका नाम कभी दर्ज नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर प्रकाशित विलोपित मतदाताओं की सूची में भी उसका नाम दर्ज नहीं है।

चुनाव आयोग बताता है कि सुबोध कुमार ने ना तो फॉर्म-6 भरा और ना ही किसी प्रकार का घोषणा पत्र (Annexure-D) दिया। जब बीएलओ ने विलोपित मतदाताओं की सूची बूथ पर चिपकाई तब सुबोध वहीं मौजूद था, लेकिन उसने कोई आपत्ति नहीं दर्ज की। तस्वीरों में साफ दिख रहा है कि वह स्वयं हस्ताक्षर कर चुका है, फिर भी मंच पर दावा किया कि उसका नाम हटा दिया गया। चुनाव आयोग ने कहा कि सुबोध कुमार ने जो आरोप लगाए, वो निराधार एवं असत्य है। यदि वे भविष्य में नियमानुसार फॉर्म-6 एवं घोषणा पत्र प्रस्तुत करेंगे तो उनका नाम जोड़ा जा सकता है।

बार-बार दोहराया गया झूठ

यह पहला मौका नहीं है जब राहुल गाँधी ने इस तरह का निराधार आरोप लगाया है। इससे पहले, औरंगाबाद में उन्होंने रंजू देवी नाम की एक महिला का मामला उठाया था, यह दावा करते हुए कि उनका नाम भी वोटर लिस्ट से हटा दिया गया है। लेकिन बाद में रंजू देवी ने खुद एक वीडियो में बताया कि उनका नाम मतदाता सूची में मौजूद है और उन्हें गुमराह किया गया था।

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सोरोस के हाथ बिकाऊ विपक्ष वोट चोरी पर कर रहा उपद्रव; CSDS का ट्वीट, राहुल का वोट चोरी राग और विपक्षी
सोरोस के हाथ बिकाऊ विपक्ष वोट चोरी पर कर रहा उपद्रव; CSDS का ट्वीट, राहुल का वोट चोरी राग और विपक्षी
 

राहुल गाँधी का बार-बार एक ही तरह के निराधार आरोप लगाना, एक बच्चे की तरह रट्टा लगाने जैसा लगता है, जो ‘फैक्ट चेक’ के बाद भी अपनी बात पर अड़े रहते हैं। यह न सिर्फ उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बल्कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर भी गलत आरोप लगाने का प्रयास करता है।

'जनसुनवाई के दौरान दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता पर हुआ हमला'


दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर 20 अगस्त 2025 को हमला करने की कोशिश की गई। घटना कैंप ऑफिस में जनसुनवाई के दौरान हुई। हमलावर को गिरफ्तार कर लिया गया है। उससे पूछताछ जारी है। हमले का मकसद ​खबर लिखे जाने तक स्पष्ट नहीं था। हमलावर की पहचान भी सार्वजनिक नहीं की गई है।

दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने साप्ताहिक जनसुनवाई के दौरान हुई इस घटना की कड़ी निंदा की है। दैनिक भास्कर ने दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर के हवाले से लिखा है, “हमलावर 35 साल का है। जनसुनवाई में उसने सीएम को कुछ दस्तावेज दिए। इसके बाद कहासुनी होने पर उसने हमला करने की कोशिश की।” उन्होंने हमलावर के किसी राजनीतिक दल से जुड़े होने की आशंका जताई है।

इसी साल जून में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को जान से मारने की धमकी दी गई थी। धमकी भरा कॉल दिल्ली पुलिस की 112 हेल्पलाइन पर आई थी। इसके बाद गाजियाबाद से एक युवक को गिरफ्तार किया गया था।

पुलिस ने 35 साल के हमलावर को दबोचा

सीएम रेखा गुप्ता पर हमला करने वाले शख्स को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। जनसुनवाई के दौरान इस शख्स ने हमला करने की कोशिश की थी। हमलावर करीब 35 साल का है। युवक हाथ में कुछ कागज लिए हुए था और जनसुनवाई के दौरन अपनी शिकायत को लेकर सीएम रेखा गुप्ता के नजदीक गया। फिर अचानक सीएम पर हमला करने की कोशिश की और अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। पुलिस ने उसे तुरंत दबोच लिया।


सोरोस के हाथ बिकाऊ विपक्ष वोट चोरी पर कर रहा उपद्रव; CSDS का ट्वीट, राहुल का वोट चोरी राग और विपक्षी नैरेटिव- क्या यह महज संयोग है! उठ रही है कार्रवाई की मांग


2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनते ही सारा विपक्ष INDI गंठबंधन भारत विरोधी विदेशियों के हाथ बिकाऊ या कहें देशभक्त बन फिरने वाले हकीकत में गुलाम बन देश में उपद्रव कर जनता को गुमराह करते आ रहे हैं। पहले भी कई बार लिखा जा चुका है कि 
INDI गंठबंधन International भिखारी है। भारत विरोधियों से मिली भीख पर देश में उपद्रव करते रहते हैं। अब जब संजय कुमार ने गलत आंकड़े देकर इतने दिन संसद भंग करवाकर रोज कर करोड़ों रूपए बर्बाद कर उपद्रव करने के आरोप पर केंद्र सरकार ही नहीं चुनाव आयोग को सख्त कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए। दूसरे, निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक को भारतीय का चोला ओढे इन जयचन्दों पर भी सख्ती से पेश आना चाहिए। वोट विश्लेषण में सिर्फ हिन्दुओं की जाति आधारित बखान किया जा जाता है लेकिन मुस्लिमों का नहीं कि अंसारी, शिया, सुन्नी, पठान, अहमदिया आदि अन्य मुस्लिम जातियों ने किस पार्टी को वोट दिया? यानि इन जयचन्दों को असली मकसद हिन्दुओं को ही जातियों में बाँटने की हिम्मत कर सकते हैं, लेकिन 
INDI गंठबंधन में किसी ने भी माँ का दूध नहीं पिया जो मुसलमानों का जाति आधारित विश्लेषण कर सके।  
      

 

 

चुनावी सर्वे और एग्जिट पोल के लिए चर्चित संस्था Centre for the Study of Developing Societies (CSDS- सीएसडीएस) एक बार फिर विवादों में है। मामला तब शुरू हुआ जब सीएसडीएस के प्रमुख संजय कुमार ने महाराष्ट्र चुनाव को लेकर चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए एक ट्वीट किया, जिसे बाद में डिलीट कर दिया। लेकिन तब तक राहुल गांधी की कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने उसी ट्वीट को आधार बनाकर ‘वोट चोरी’ का नैरेटिव गढ़ दिया था। अब उसी नैरेटिव के आधार पर तमाम विपक्षी दल संसद से लेकर सड़क तक चुनाव आयोग के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो संसद से लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस और अब बिहार में वोटर अधिकार यात्रा तक चुनाव आयोग पर जमकर हमला बोल रहे हैं। राहुल चुनाव आयोग पर लगातार पक्षपाती रवैये का आरोप लगा रहे हैं। हाल ही में एक घंटे से ज्यादा चली प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने प्रेजेंटेशन के जरिए दावा किया कि बीजेपी के लिए वोट ट्रांसफर कराए गए। आयोग पर वोट चोरी का आरोप लगाते हुए उन्होंने यहां तक कहा कि उनकी सरकार बनने पर आयोग से जुड़े लोगों से निपट लिया जाएगा।

दरअसल में सीएसडीएस ने कुछ दिन पहले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट डाल चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे। यह ट्वीट कुछ ही घंटों में वायरल हो गया। कांग्रेस और आप समेत कई विपक्षी नेताओं ने इस पोस्ट को जमकर शेयर किया और कहा कि “ईवीएम से वोट चुराए गए हैं”। लेकिन हैरानी की बात ये रही कि जब बवाल बढ़ा, तो संजय कुमार ने चुपचाप वह ट्वीट डिलीट कर दिया। सवाल उठता है अगर ट्वीट में दम था तो हटाया क्यों गया? और अगर वह तथ्यहीन था, तो फिर उसे जारी ही क्यों किया था? क्या संजय कुमार ने वो ट्वीट कांग्रेस को राजनीतिक फायदा पहुंचाने के लिए पोस्ट किया था?

अब जब सीएसडीएस प्रमुख ने ट्वीट डिलीट कर दिया है, तब लोग सोशल मीडिया पर उनपर कांग्रेस के साथ राजनीतिक मिलीभगत कर देश को अराजकता में झोंकने का आरोप लगा रहे हैं। सोशल मीडिया पर कई लोग कह रहे हैं कि यह सब एक सोची-समझी रणनीति थी। पहले CSDS की ‘रिसर्च’ के नाम पर नैरेटिव गढ़ो, फिर विपक्ष के जरिए उसे विस्तार दो। सोशल मीडिया पर संजय कुमार को जमकर लताड़ लग रही है। लोग सरकार से सीएसडीएस के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

इस पूरे विवाद पर बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सीधा हमला करते हुए कहा कि सीएसडीएस एक शोध संस्थान नहीं, बल्कि एजेंडा चलाने वाली संस्था है, जिसका मकसद समाज में जातीय दरारें फैलाकर राजनीतिक लाभ पहुंचाना है। सीएसडीएस का पूरा ध्यान हिंदू समाज की जातियों को बांटकर ओबीसी, दलित, सवर्ण जैसे वर्गों के वोट पैटर्न को उजागर करने पर रहता है, जबकि मुस्लिम समाज की भीतरी जातीय संरचना पर यह संस्था संपूर्ण चुप्पी साध लेती है।

उन्होंने आरोप लगाया कि CSDS को वर्षों से फोर्ड फाउंडेशन, आईडीआरसी और अन्य विदेशी एजेंसियों से फंडिंग मिलती रही है, जिनका इतिहास भारत में सामाजिक विघटन को बढ़ावा देने से जुड़ा रहा है। इसके अलावा, उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि सीएसडीएस के सर्वे वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित नहीं होते, फिर भी इन्हें “डेटा एनालिसिस” बताकर बड़े-बड़े मीडिया हाउसेज में छापा जाता है। बीते कुछ वर्षों में कई बार ऐसा हुआ है कि सीएसडीएस द्वारा चुनाव पूर्व या बाद में जारी किए गए अनुमान और विश्लेषण हकीकत से कोसों दूर निकले। लेकिन हर बार गलती मानने की बजाय यह कहा गया कि “राजनीतिक हवा आखिरी वक्त पर बदल गई।”

यह सिर्फ अनुमान की गलती नहीं है, बल्कि एक सुनियोजित एजेंडा है। “नतीजे जब कांग्रेस के पक्ष में हों, तो प्रचार करो; जब ना हों, तो ईवीएम और आयोग पर शक पैदा करो।”

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Fake Data देने वाले ने मांगी माफ़ी, राहुल कब मांगेगे? जो कल कह रहे थे- चुनाव आयोग ने पैर पर मारी कुल्हाड़
Fake Data देने वाले ने मांगी माफ़ी, राहुल कब मांगेगे? जो कल कह रहे थे- चुनाव आयोग ने पैर पर मारी कुल्हाड़
 

सीएसडीएस के पूर्व सहयोगी योगेंद्र यादव और वर्तमान प्रमुख संजय कुमार दोनों पर कांग्रेस के प्रति झुकाव के आरोप लग चुके हैं। अब जब CSDS का ट्वीट खुद विपक्षी रणनीति का हिस्सा बनता दिख रहा है, तो देश को यह जानने का हक है कि क्या ‘शोध’ की आड़ में समाज को तोड़ने का खेल खेला जा रहा है?

Fake Data देने वाले ने मांगी माफ़ी, राहुल कब मांगेगे? जो कल कह रहे थे- चुनाव आयोग ने पैर पर मारी कुल्हाड़ी, वे अब खुद ‘फेक डाटा’ के लिए चुनाव आयोग से माँग रहे माफी: CSDS वाले संजय कुमार ने खुद का थूका चाटा

                     कॉन्ग्रेस हिट जॉब को अंजाम देने वाला CSDS फिर से बेनकाब (फोटो साभार: AI Dall-E)
सोनिया गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से एक बात कही जा रही है कि ये गलत सलाहकारों के चुंगल में फंस कांग्रेस को संकट में डाल रही हैं, जो आज तक चल रही है। इन्ही गलत सलाहकारों के कारण कांग्रेस बदहाली की ओर जा रही है। महाराष्ट्र चुनाव में वोट चोरी को लेकर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा कर देश को भ्रमित किया। 17 अगस्त को चुनाव आयोग के प्रहार का असर दिखना शुरू हो गया। संसद बाधित करने में जो देश का करोड़ों रूपए बर्बाद हुए हैं क्या कांग्रेस और INDI गठबंधन इस नुकसान की भरपाई करेंगे?  

सीएसडीएस के संजय कुमार ने महाराष्ट्र चुनाव को लेकर शेयर किए फर्जी डाटा को डिलीट कर माफी माँगी है। इसी फर्जी डाटा के दम पर राहुल गाँधी के ‘वोट चोरी’ के कैंपेन को कांग्रेस आगे बढ़ा रही थी। संजय कुमार ने पहले कहा था कि चुनाव आयोग को राहुल गाँधी के आरोपों का जवाब देना चाहिए। बाद में जब मुख्य चुनाव आयुक्त ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सभी आरोपों के सिलसिलेवार जवाब दिए तो संजय कुमार ने एक लेख में लिखा – चुनाव आयोग ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है।

संजय कुमार के फर्जी डाटा के आधार पर कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने 18 अगस्त 2025 को X पर एक ग्राफिक शेयर कर चुनाव आयोग पर सवाल उठाए। उन्होंने दावा किया कि 2024 के लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बीच छह महीनों में रामटेक और देओलाली जैसे क्षेत्रों से करीब 40% वोटर हटा दिए गए। वहीं, नासिक वेस्ट और हिंगना में करीब 45% वोटर बढ़ गए। चुनाव आयोग पर तंज कसते हुए उन्होंने लिखा, “अब ये कहेंगे कि 2 और 2 जोड़ने से 420 होता है।” इस डेटा का स्रोत लोकनीति-CSDS था।

                                                                 पवन खेड़ा का ट्वीट

आज हम एक ऐसे घिनौने खेल की हर परत को उधेड़कर सामने लाने जा रहे हैं, जिसने भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गहरा आघात किया है। सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज) के संजय कुमार ने अपनी चालाकी, फर्जी डेटा और साजिशों के जरिए न सिर्फ चुनाव आयोग को बदनाम करने की कोशिश की, बल्कि कॉन्ग्रेस के लिए एक सुनियोजित हिट जॉब भी अंजाम दिया।

संजय कुमार नाम का यह शख्स खुद को प्रोफेसर और रिसर्चर कहता है, असल में वो एक प्यादे की तरह काम कर रहा है, जो विदेशी फंडिंग और राजनीतिक एजेंडा के पीछे छिपा हुआ है। दरअसल, उसने फर्जी डाटा शेयर कर न सिर्फ आम लोगों में भ्रम फैलाया, बल्कि लगातार भारत की सर्वोच्च चुनावी संस्था चुनाव आयोग को भी निशाना बनाया और जब उसका खेल पकड़ में आ गया, तो चुपचाप अपने फर्जी डाटा को डिलीट कर माफी माँग ली। आइए, समझते हैं ये पूरा खेल…

संजय कुमार के फर्जीवाड़े का खेल

इस साजिश की शुरुआत 11 अगस्त 2025 को हुई, जब संजय कुमार ने ट्विटर पर एक भड़काऊ बयान फेंका। उसने दावा किया कि महाराष्ट्र चुनावों को लेकर चुनाव आयोग को सफाई देनी चाहिए, बिना किसी ठोस सबूत के सिर्फ आरोपों की बौछार कर दी। यह बस शुरुआत थी। इसके बाद उसने सीएनबीसी आवाज जैसे बड़े चैनल पर जाकर अपनी बात को और हवा दी। उसने कहा, “जो कुछ भी हो रहा है, वो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है… चुनाव आयोग और विपक्ष के बीच बातचीत की कड़ी भी टूट गई है… चुनाव आयोग को आगे आकर सफाई देने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा और माहौल बिगड़ता जा रहा है।”

ये शब्द सुनकर ऐसा लगता है जैसे वो कोई निष्पक्ष विश्लेषक हो, लेकिन असलियत में वो कांग्रेस के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम कर रहा था। उसकी ये बातें सुनियोजित थीं, ताकि जनता के मन में शक पैदा हो और चुनाव आयोग की साख पर बट्टा लगे। उसने इस दौरान कई टीवी डिबेट्स में भी हिस्सा लिया, जहां उसने बार-बार यही रट लगाई कि चुनाव आयोग पारदर्शिता नहीं बरत रहा, लेकिन उसने कभी भी अपने दावों के पीछे पुख्ता सबूत नहीं दिए।

महाराष्ट्र चुनाव को लेकर जारी किया फर्जी डाटा

17 अगस्त 2025 को संजय कुमार ने ट्विटर पर एक नया हमला बोला। उसने एक स्क्रीनशॉट शेयर किया, जिसमें महाराष्ट्र के चुनावी डेटा का दावा पेश किया गया। इस डेटा में कहा गया कि नासिक वेस्ट में 2024 के लोकसभा चुनाव से विधानसभा चुनाव तक वोटरों की संख्या 47.38% बढ़ी, जबकि हिंगना में 43.08% की वृद्धि हुई।

                              संजय कुमार का ट्वीट, और विस्फोटक खुलासा करते कॉन्ग्रेसी इकोसिस्टम से जुड़े एक्स हैंडल

ये आँकड़े देखने में तो चौंकाने वाले थे, लेकिन इनकी सच्चाई कहीं और थी। इस फर्जी डेटा को शेयर करते ही सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया। विपक्ष खासकर कांग्रेस ने इस मौके को दोनों हाथों से लपक लिया। कांग्रेस नेताओं ने इसे ‘एटम बम’ तक कह डाला, मानो ये कोई बड़ा खुलासा हो। उसने दावा किया कि ये डेटा साबित करता है कि चुनावों में धाँधली हुई और बीजेपी ने सत्ता हथियाई।

लेकिन सच्चाई यह थी कि ये सारा डेटा झूठ का पुलिंदा था, जिसे संजय कुमार ने जानबूझकर गढ़ा था। बाद में पता चला कि उसकी टीम ने 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के डेटा को गलत तरीके से पढ़ा और तुलना की, जिससे ये भ्रामक आँकड़े सामने आए।

ओपिनियन आर्टिकल लिखकर किया चुनाव आयोग पर हमला

संजय कुमार ने अपनी साजिश को और मजबूत करने के लिए नवभारत टाइम्स में एक ओपिनियन आर्टिकल लिखा, जो 18 अगस्त 2025 को प्रकाशित हुआ। लेख का शीर्षक था, “वोट चोरी पर जवाब… चुनाव आयोग खुद ही अपने पैर पर मार रहा कुल्हाड़ी”। इस लेख में उसने 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद उठे विवाद को फिर से हवा दी। उसने राहुल गाँधी के उस दावे को दोहराया, जिसमें कहा गया था कि प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में फर्जी वोटर जोड़े गए और वोट प्रतिशत बढ़ाकर धांधली की गई। विपक्ष का तर्क था कि मुख्यमंत्री के अपने क्षेत्र में पाँच महीनों में मतदाता सूची में 8% की वृद्धि हुई, और कुछ बूथों पर 20-50% तक की बढ़ोतरी देखी गई। संजय ने इसको आधार बनाकर चुनाव आयोग पर ऊँगली उठाई और उसे ‘असफल’ ठहराने की कोशिश की।

संजय ने लिखा कि चुनाव आयोग को दोनों चुनावों की मतदाता सूचियाँ सार्वजनिक करनी चाहिए थीं, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, जो उसकी नाकामी को दर्शाता है। लेकिन सच्चाई यह है कि चुनाव आयोग ने 24 दिसंबर 2024 को कॉन्ग्रेस को लिखित जवाब दे दिया था, जिसमें इन आरोपों को ‘निराधार’ और ‘बेतुका’ करार दिया गया था। आयोग ने अपनी वेबसाइट पर भी ये जवाब रखा, लेकिन संजय कुमार ने इसे नजरअंदाज कर दिया और अपना एजेंडा चलाया।

माफी का नाटक यानी सच्चाई छिपाने की कोशिश

जब इस फर्जी डेटा की पोल खुलने लगी, तो संजय कुमार को मजबूरी में पीछे हटना पड़ा। उसने अपने ट्वीट को डिलीट कर दिया और 18 अगस्त 2025 की रात एक माफी ट्वीट जारी किया। उसने लिखा, “मैं महाराष्ट्र चुनावों को लेकर किए गए ट्वीट्स के लिए दिल से माफी माँगता हूँ। 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के डेटा की तुलना में गलती हो गई। हमारी डेटा टीम ने इसे गलत पढ़ लिया। ट्वीट हटा दिया गया है और मेरा इरादा किसी तरह की गलत जानकारी फैलाने का नहीं था।”

लेकिन क्या ये माफी सचमुच दिल से आई? बिल्कुल नहीं! ये तो बस कानूनी कार्रवाई से बचने का एक सस्ता नाटक था। सोशल मीडिया यूजर्स ने तुरंत इसकी आलोचना की और कहा कि ये माफी मजबूरी में दी गई है। कई लोगों का मानना है कि संजय ने जानबूझकर गलत डेटा फैलाया, ताकि कांग्रेस को फायदा हो और जब पकड़ा गया, तो उसने पीछे हटने का ढोंग किया।

बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने संजय कुमार की इस करतूत पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने 19 अगस्त 2025 की सुबह ट्वीट करके लिखा, “माफी माँग ली और संजय कुमार बाहर हो गया। योगेंद्र यादव का यह चेला आखिरी बार कब सही साबित हुआ? हर चुनाव से पहले वो भविष्यवाणी करता है कि बीजेपी हार रही है, लेकिन जब उलटा होता है, तो टीवी पर आकर जस्टिफाई करता है कि बीजेपी कैसे जीती। शर्मनाक!”

उन्होंने आगे लिखा, “इस बार भी ये कोई ईमानदार गलती नहीं थी। कांग्रेस के फर्जी नैरेटिव को हवा देने के चक्कर में सीएसडीएस ने बिना जाँच के डेटा डाल दिया। ये विश्लेषण नहीं, बल्कि कन्फर्मेशन बायस है। अब वक्त आ गया है कि संजय कुमार और योगेंद्र यादव जैसे लोगों की पवित्र-सी बातों को नमक के एक थैले के साथ लिया जाए।” मालवीय का ये बयान साफ करता है कि संजय कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड पहले से ही संदिग्ध रहा है, और ये घटना उसकी पुरानी आदतों का हिस्सा है।

राहुल गाँधी का फ्लॉप शो और विदेशी हैंडलर्स

राहुल गाँधी ने संजय कुमार के फर्जी डेटा पर आँख मूँदकर भरोसा किया और अपनी सारी प्रतिष्ठा दाँव पर लगा दी। वैसे, राहुल की कितनी प्रतिष्ठा बची है, अब इसका अंदाजा भी कोई नहीं लगा पा रहा।

खैर, राहुल ने दावा किया कि ये डेटा साबित करता है कि चुनावों में धाँधली हुई और बीजेपी ने सत्ता हथियाई। लेकिन जब सीएसडीएस ने अपनी गलती मानी, तो राहुल और उसके विदेशी हैंडलर्स का सपना धराशायी हो गया।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये सारी साजिश कांग्रेस के विदेशी समर्थकों के इशारे पर रची गई थी, ताकि भारत की चुनावी प्रणाली को बदनाम किया जा सके। राहुल का ये कदम न सिर्फ उसकी अज्ञानता को दिखाता है, बल्कि उसकी टीम की लापरवाही और जल्दबाजी को भी उजागर करता है।

सीएसडीएस का गंदा खेल, विदेशी फंडिंग का एजेंडा

सीएसडीएस कोई साधारण शोध संस्थान नहीं है। यह एक ऐसी मशीन है, जो विदेशी फंडिंग और राजनीतिक एजेंडा के बल पर देश को अंदर से कमजोर करने का काम कर रही है। फोर्ड फाउंडेशन, गेट्स फाउंडेशन, आईडीआरसी (कनाडा), डीएफआईडी (यूके), नॉराड (नॉर्वे), ह्यूलेट फाउंडेशन और डच एजेंसियों जैसे संगठनों से मिलने वाला पैसा सीएसडीएस को हिंदू समाज को जाति के आधार पर बाँटने और गलत नैरेटिव बनाने में मदद करता है।

इसके लोकनीति प्रोग्राम के तहत हिंदुओं को ओबीसी, ईबीसी, दलित, और सवर्ण में बाँटकर वोटिंग पैटर्न पर डेटा जारी किया जाता है, जो द हिन्दू और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबारों में बड़े-बड़े शीर्षकों के साथ छपता है। लेकिन मुसलमानों की अंदरूनी जातीय दरारों (जैसे दलित मुसलमान, अशरफ, अज्लाफ, अरज़ल) पर चुप्पी साध ली जाती है।

ये साफ है कि सीएसडीएस का मकसद हिंदू समाज को तोड़ना और कॉन्ग्रेस को फायदा पहुँचाना है। योगेंद्र यादव से लेकर संजय कुमार तक, ये लोग लगातार इस एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। ये कोई भूल नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश है, जिसका मकसद भारत की एकता को कमजोर करना है।

संजय कुमार की कायरता और कॉन्ग्रेस का पुराना ट्रिक

संजय कुमार ने जो किया, वो कॉन्ग्रेस के पुराने ट्रिक का हिस्सा है। पहले किसी बड़े संस्थान या अखबार से फर्जी खबर चलवाओ, फिर उसे वायरल करो, और जब पकड़े जाओ तो चुपके से माफी माँग लो। संजय ने पहले चुनाव आयोग को बदनाम करने की कोशिश की, फिर जनता को गुमराह किया, और आखिर में माफी मांगकर पल्ला झाड़ लिया। ये शख्स न सिर्फ लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ किया, बल्कि देश की जनता के भरोसे को भी ठेस पहुँचाई।

कॉन्ग्रेस का ये पैटर्न पहले भी कई बार देखा गया है – चाहे वो 2019 के चुनावों में फर्जी सर्वे हों या 2024 में गलत दावे, हर बार ये लोग उसी रास्ते पर चलते हैं। संजय कुमार ने बिल्कुल वही कारनामा दोहराया, जो कॉन्ग्रेस के तमाम प्यादों ने पहले किया है।

चुनाव आयोग को उठाने होंगे गंभीर कदम

चुनाव आयोग ने अब तक इस मामले पर कोई सख्त कदम नहीं उठाया, जो हैरानी की बात है। अगर आयोग सचमुच फर्जी खबरों और गलत जानकारी से निपटने के लिए गंभीर है, तो उसे तुरंत संजय कुमार और सीएसडीएस के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। ये लोग लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और अगर इन्हें बक्शा गया, तो भविष्य में और भी बड़े घोटाले सामने आएँगे।
चुनाव आयोग को चाहिए कि वो इस मामले की गहन जाँच करे, सीएसडीएस के फंडिंग स्रोतों की पड़ताल करे और संजय कुमार पर कानूनी कार्रवाई शुरू करे। अगर आयोग चुप रहा, तो ये माना जाएगा कि वो इस तरह की साजिशों को बढ़ावा दे रहा है। जनता अब आयोग से जवाब माँग रही है – क्या वो सिर्फ कागजों पर ही मजबूत है, या असल में भी कार्रवाई कर सकता है?
बहरहाल, संजय कुमार जैसे लोगों की करतूतें अब छिपी नहीं रह सकतीं। उसने फर्जी डेटा फैलाकर, कॉन्ग्रेस के लिए हिट जॉब करके और चुनाव आयोग को बदनाम करने की कोशिश करके देश की जनता के साथ धोखा किया है। सीएसडीएस का विदेशी फंडिंग वाला एजेंडा और संजय की कायरता साफ दिख रही है। ऐसे में संजय कुमार और सीएसडीएस पर कड़ी कार्रवाई हो, ताकि भविष्य में कोई भी इस तरह की साजिश न कर सके। वरना, लोकतंत्र का मजाक और बनेगा… और फिर देश की जनता का भरोसा टूटेगा।