संविधान, मुकुट, साड़ी… न्याय की देवी का नूतन अवतार: जानिए आँखों पर पट्टी वाली ‘लेडी ऑफ जस्टिस’ कहाँ से आई, CJI चंद्रचूड़ ने क्यों बदलवाई तलवार वाली मूर्ति

                                      सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी का बदला रूप (साभार: ऑपइंडिया)
भारत में ‘न्याय की देवी’ (Lady of Justice) आँखों पर बँधी पट्टी हटा दी गई है। उनके हाथ में तलवार की जगह संविधान की प्रति दे दी गई है। गाउन को हटाकर साड़़ी पहना दिया गया है। सिर पर मुकुट और गले में हार आदि से अलंकृत कर दिया गया है। इस प्रतिमा को न्याय की यूनानी देवी से न्याय की भारतीय देवी का अवतार कहा जा सकता है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने न्याय की देवी की एक नई प्रतिमा का अनावरण किया है। आँखों पर पट्टी होने का अर्थ कानून का अंधा होने का संकेत देता था। वहीं, तलवार सजा को प्रदर्शित करता था। अब परिवर्तनकारी प्रतीक संवैधानिक मूल्यों और कानून के समक्ष समानता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

सुप्रीम कोर्ट के जजों की लाइब्रेरी में लगाई गई नई मूर्ति को CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने ऑर्डर देकर बनवाया है। इसका उद्देश्य यह संदेश देना है कि देश में कानून अँधा नहीं है और यह सजा का प्रतीक नहीं है। मूर्ति के दाएँ हाथ में तराजू को बनाए रखा है, जो दोनों पक्षों के तथ्यों और तर्कों को देखने और सुनने के बाद न्याय करने का प्रतीक है।

यह बदलाव उपनिवेश के निशानियों से आगे बढ़ने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। हाल ही में भारत सरकार ने ब्रिटिश कानून इंडियन पीनल कोड (IPC) की जगह भारतीय न्याय संहिता (BNS) कानून लागू किया था। लेडी ऑफ जस्टिस की मूर्ति में यह बदलाव भी इसी कड़ी के तहत उठाया कदम माना जा रहा है।

                                   मिस्र की न्याय की देवी मात (साभार: egyptianmuseum/britannica)

एक न्यायिक अधिकारी ने बताया, “न्याय की देवी का रूप हमारे संवैधानिक प्रतिबद्धताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए बदलना आवश्यक था। तलवार के बजाय संविधान थामने से यह संदेश जाता है कि न्याय लोकतांत्रिक मूल्यों और मौलिक अधिकारों के अनुरूप होना चाहिए।”

कई सभ्यताओं से जुड़ी है लेडी ऑफ जस्टिस की कहानी

न्याय की देवी का इतिहास बहुत पुराना है। इसकी सबसे शुरुआती मूर्ति प्राचीन मिस्र में पाई जाती है। कहा जाता है कि यह देवी मात (Ma’at) की थी। मात सत्य, व्यवस्था और संतुलन का प्रतीक थीं। उन्हें अक्सर एक पंख पकड़े हुए दिखाया जाता था, जिसका उपयोग मृत्यु के बाद आत्मा के न्याय के लिए किया जाता था।
                                        ग्रीक न्याय की देवी थेमिस (साभार: ब्रिटानिका)
बाद में यूनानी और रोमन सभ्यताओं ने अपनी न्याय की देवी की मूर्ति बनाई। ग्रीक देवी थेमिस कानून और व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करती थीं। उनकी बेटी डाइक, जिन्हें एस्ट्राया के नाम से भी जाना जाता है, न्याय और नैतिक व्यवस्था का प्रतीक थीं। थेमिस को तराजू पकड़े हुए दिखाया गया था। इन्हें ही न्याय की देवी का शुरुआती रूप माना जाता है।
रोमन की पौराणिक कथाओं में थेमिस को जस्टिशिया के साथ जोड़ा गया था, जो रोमन साम्राज्य में न्याय की देवी थीं। जस्टिशिया की छवि आज की न्याय व्यवस्था को दिखाने के लिए इस्तेमाल की जाती है। रोमन सम्राट टिबेरियस ने रोम में जस्टीशिया का एक मंदिर बनवाया था। जस्टीशिया न्याय के उस गुण का प्रतीक बन गईं। इनके साथ हर सम्राट खुद को जोड़ता था।
                         रोमन साम्राज्य में न्याय की देवी जस्टिशिया (साभार: ThoughtCo)
आगे चलकर रोमन सम्राट वेस्पाशियन ने जस्टिशिया की छवि के साथ सिक्के बनाए। इन सिक्कों में वह एक सिंहासन पर बैठी हैं, जिसे ‘जस्टीशिया ऑगस्टा’ कहा जाता था। उनके बाद कई सम्राटों ने खुद को न्याय का संरक्षक घोषित करने के लिए इस देवी की छवि का उपयोग किया। दुनिया के कई देशों में न्याय की देवी की यह मूर्ति देखी जा सकती है।
यूनानी सभ्यता से न्याय की देवी यूरोप और अमेरिका पहुँची। औपनिवेशिक काल में ब्रिटेन के एक अंग्रेज न्यायिक अधिकारी 17वीं सदी में इन्हें भारत लेकर आया था। ब्रिटिश काल में 18वीं शताब्दी के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक इस्तेमाल किया जाने लगा। भारत की आजादी के बाद न्याय की देवी को उसके प्रतीकों के साथ भारतीय लोकतंत्र में स्वीकार किया गया।

‘बहराइच के दरिंदों का हो गया इलाज’: जिस अब्दुल हमीद के घर हुई रामगोपाल मिश्रा की हत्या, उसके 2 बेटों का नेपाल बॉर्डर पर उत्तर प्रदेश STF ने किया एनकाउंटर; कांग्रेस का विलाप शुरू

                               एनकाउंटर में घायल सरफराज और तालिब (साभार: ऑपइंडिया)
उत्तर प्रदेश के बहराइच में दुर्गा पूजा के मूर्ति विसर्जन के दौरान रामगोपाल मिश्रा की गोली मारकर हत्या करने के आरोपित रिंकू उर्फ सरफराज खान और तालिब उर्फ सबलू का एनकाउंटर कर दिया गया है। एनकाउंटर में दोनों आरोपितों के पैरों में गोली लगी है। इससे वे घायल हो गए हैं। सूत्रों के अनुसार, यह मुठभेड़ नानपारा कोतवाली के बाइपास में हुई है। 

घायल आरोपियों को इलाज के लिए नानपारा सीएचसी में भर्ती किया गया है। सीएचसी के बाहर पुलिस का पहरा बढ़ा दिया गया है। सीएचसी ने दोनों आरोपितों को बहराइच मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया है। कहा जाता है कि गोपाल मिश्रा पर गोली सरफराज ने ही चलाई थी। तालिब और सरफराज भाई बताए जा रहे हैं। दोनों आरोपित नेपाल भागने की फिराक में थे।

उत्तर प्रदेश के ADG (Law & Order) अमिताभ यश ने बताया कि पुलिस ने पाँच आरोपित पकड़े हैं। वहीं, एनकाउंटर में दो को गोली लगी है। रिपोर्ट के मुताबिक, आरोपितों के नेपाल भागने की की सटीक सूचना मिलने पर दोपहर करीब 2 बजे STF और बहराइच पुलिस ने नानपारा कोतवाली क्षेत्र में हांडा बसेहरी नहर के पास आरोपितों को घेर लिया।

पुलिस ने आरोपितों को सरेंडर करने के लिए कहा तो वे पुलिस पर फायरिंग की। इसके बाद पुलिस और STF ने भी जवाबी कार्रवाई की, जिसमें सरफराज और तालिब को पैरों में गोली लगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बहराइच हिंसा के आरोपियों के पुलिस मुठभेड़ में घायल होने की जानकारी दी गई है।

बहराइच की एसपी वृंदा शुक्ला का कहना है, “जब पुलिस टीम हत्या में इस्तेमाल हथियार की बरामदगी के लिए नानपारा इलाके में गई थी तो मोहम्मद सरफराज उर्फ ​​रिंकू और मोहम्मद तालिब उर्फ ​​सबलू ने हत्या में इस्तेमाल हथियार को वहाँ लोड करके रखा रखा हुआ था, जिसका इस्तेमाल उन्होंने पुलिस पर फायरिंग करने के लिए किया।”

उन्होंने आगे कहा, “आत्मरक्षा में पुलिस ने जवाबी फायरिंग की, जिसमें दोनों घायल हो गए। उनका इलाज चल रहा है और वे जीवित हैं। हमने अन्य तीन आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया है। सभी 5 को आधिकारिक तौर पर गिरफ्तार कर लिया गया है। उन सभी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी… अन्य आरोपियों की तलाश जारी है।”

पुलिस ने सरफराज के भाई फहीम, पिता अब्दुल हमीद और एक अन्य को भी पकड़ा है। इससे एक दिन पहले सरफराज की गोली चलाते हुए तस्वीर सामने आई थी। इससे पहले राम गोपाल मिश्रा की हत्या मामले में पहली गिरफ्तारी भी आज गुरुवार (17 अक्टूबर 2024) को ही हुई। आरोपित की पहचान राजा उर्फ मोहम्मद दानिश उर्फ जहीर/सहीर खान के तौर पर हुई है।

बताया जा रहा है कि जहीर नेपाल जाने की फिराक में था, लेकिन उसे माहसी खंड में राजी क्रॉसिंग पर गिरफ्तार कर लिया गया। बहराइच हिंसा मामले में अब तक 11 एफआईआर दर्ज हुई हैं, इसमें 6 नामजद और 1304 अज्ञात लोगों को आरोपित बनाया गया है। वहीं, राम गोपाल की हत्या मामले में 10 लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ है।

मोहम्मद दानिश उर्फ ​​साहिर/जहीर खान इन्हीं आरोपितों में से एक था। उसके अलावा अब्दुल हामिद, सरफराज, फहीम भी इस मामले में आरोपित हैं। गौरतलब है कि 13 अक्टूबर को दुर्गा विसर्जन के दौरान हुई हिंसा मामले में अब तक 55 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इन लोगों की पहचान सीसीटीवी फुटेज के आधार पर हुई है।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने एनकाउंटर पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि सरकार शुरू से ही फर्जी एनकाउंटर करा रही है। वे सिर्फ अपनी विफलता को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। मृतक रामगोपाल मिश्रा के पैर के नाखूनों को उखाड़ने के सवाल पर राय ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार दंगा कराना चाहती है।

मध्य प्रदेश : महीने के पहले और चौथे मंगलवार को राष्ट्रीय ध्वज को 21 बार सलामी दो, भारत माता की जय बोलो ; फैज़ान द्वारा पाकिस्तान जिंदाबाद, हिंदुस्तान मुर्दाबाद नारा लगाने पर हाई कोर्ट


मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने ‘पाकिस्तान जिंदाबाद, हिंदुस्तान मुर्दाबाद’ चिल्लाने वाले एक शख्स को इस शर्त पर बेल दी कि वो पुलिस थाने में लगे राष्ट्रीय ध्वज को महीने में दो बार आकर 21 दफा सलाम करेगा वो भी ‘भारत माता की जय’ नारे के साथ।

कोर्ट ने कहा कि आरोपित को ऐसा हर माह के पहले और चौथे मंगलवार को सुबह 10 से 12 बजे के बीच आकर करना होगा। इसके अलावा आरोपित पर 50000 रुपए का बॉन्ड प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।

ये फैसला मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की एकल पीठ ने दिया। उन्होंने फैजान उर्फ फैजल नाम के आरोपित के केस पर सुनवाई करते हुए अपना यह निर्णय दिया ताकि उसमें उस देश के प्रति सम्मान जगे जहाँ वो पैदा हुआ और रह रहा है।

फैजान को पुलिस ने आईपीसी की धारा 153 सी के तहत हिरासत में लिया था। बाद में उसने कोर्ट से बेल माँगी ये कहकर कि उस पर फर्जी मामला दायर हुआ है। हालाँकि जब अभियोजन पक्ष ने वीडियो दिखाई जो झूठ पकड़ा गया और कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाया है।

इस मामले में 17 मई 2024 को भोपाल के मिसरौद पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी। जाँच के बाद ट्रायल कोर्ट में चार्जशीट दायर की गई थी। इस दौरान वीडियो क्लिप को आधार बनाया गया जिसमें आरोपित स्पष्ट रूप से नारेबाजी कर रहा था। जाँच में पुलिस ने पाया कि आरोपित पर पहले से 14 आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं।

उत्तर प्रदेश : रामगोपाल मिश्रा की हत्या में पहली गिरफ्तारी मोहम्मद दानिश की, नेपाल भागते हुए UP पुलिस ने दबोचा; इन दंगाइयों का एक ही ईलाज सारी सरकारी सुविधाएं छीनी ही नहीं जाए ब्लैकलिस्ट भी किया जाए

दंगा कर भागने या छुपने वालों पर जब तक सख्ती नहीं की जाएगी, तब तक ये जेहादी सुधरने वाले नहीं। ये ज्यादा नहीं कुछ ही रुपयों के लालच में कट्टरपंथियों के जाल में फंस साम्प्रदायिक दंगे करते हैं। और निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक को इसे गंभीरता से जब तक नहीं लेंगी, ये डरपोक जेहादी खून की होली खेलते रहेंगे। जहाँ तक 'गरीब, मजलूम, भटके हुए आदि कहकर victim card खेलना कोई नया नहीं है। यह उतना ही पुराना है जितना जितना पुराना इस्लाम। जिसे समझने के अली सिमा द्वारा लिखित Understanding Mohammad And Muslim को पढ़ना होगा। जो लगता है अनवर शेख द्वारा लिखित 7/8 पुस्तकों का निचोड़ ही नहीं बल्कि हर हादसे को आज हो रही गुंडागर्दी से जोड़ा गया है। इन्हें तालीम ही ऐसी है। 
जब तक मुसलमानों को एक भारतीय नागरिक की तरह नहीं समझा जायेगा, ये जेहादी और इनके संरक्षण नहीं सुधरने वाले। और इस काम में विपक्ष ही नहीं बीजेपी भी बराबर की शामिल है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री जवाब दें किस कारण इनकी वोट लेने के लिए खजाना खोला गया? क्या मंदिरों और मठों के लिए खजाना खोला? आखिर क्यों सरकारी धन को लुटाया जा रहा है? क्या महाराष्ट्र मुख्यमंत्री एक भी हिन्दू वोट का हक़दार है? जो भी हिन्दू हालातों को देखते हुए शिंदे या इसकी शिवसेना को वोट देता है, फिर जेहादियों द्वारा किया जा रहे हमलों पर रोने का हक़ नहीं।       

दूसरे, सरकारों से लेकर सारी अदालतें और हिन्दू पक्ष के वकील जिम्मेदार हैं किसी ने भी पत्थरबाजों और पत्थर सप्लाई करने वालों पर सख्ती से पेश नहीं आती, जो जेहादियों और कट्टरपंथियों को ऑक्सीजन का काम करता है। जिस दिन अदालतों ने इन जेहादियों से वकीलों से यह सवाल कर दिया कि जिस तरह हिन्दुओं त्योहारों और शोभा यात्राओं पर मुस्लिम इलाकों में पत्थराव किया जाता है अगर हिन्दुओं ने तुम्हारे त्योहारों पर ऐसी भाषा में पलट वार किया उस स्थिति में क्या होगा? क्या 'सिर तन से जुदा' करने वालों पर कोई सख्त कार्यवाही हुई? सिर्फ जेल में बंद करना हल नहीं। किसके कहने पर और कितने रूपए लेकर इस जेहादी काम को अंजाम दिया किसी ने नहीं पूछा, क्यों?               
उत्तर प्रदेश के बहराइच में राम गोपाल मिश्रा की हत्या मामले में पहली गिरफ्तारी हो गई है। आरोपित की पहचान राजा उर्फ मोहम्मद दानिश उर्फ जहीर/सहीर खान के तौर पर हुई है। बताया जा रहा है कि जहीर नेपाल जाने की फिराक में था, लेकिन उसे माहसी खंड में राजी क्रॉसिंग पर गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस अब जहीर से इस मामले में पूछताछ कर रही है। वहीं सरफराज समेत 5 अन्य आरोपितों की तलाश के लिए दबिश दी जा रही है।

बहराइच हिंसा मामले में अब तक 11 एफआईआर दर्ज हुई हैं इसमें 6 नामजद और 1304 अज्ञात लोगों को आरोपित बनाया गया है। वहीं राम गोपाल की हत्या मामले में 10 लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ है। ​मोहम्मद दानिश उर्फ ​​साहिर/जहीर खान इन्हीं आरोपितों में से एक था। उसके अलावा अब्दुल हामिद, सरफराज, फहीम भी इस मामले में आरोपित हैं।

13 अक्टूबर को दुर्गा विसर्जन के दौरान हुई हिंसा मामले में अब तक 55 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इन लोगों की पहचान सीसीटीवी फुटेज के आधार पर हुई है। इसके अलावा प्रशासन ने इस मामले पर एक्शन लेते हुए महसी सीओ रूपेंद्र गौड़ा को निलंबित कर दिया है। उनकी जगह रामपुर में तैनात रहे रवि खोखर को सीओ महसी पद पर नियुक्त किया गया है।

आरोप है कि रूपेंद्र गौड़ ने यात्रा में शामिल लोगों पर लाठियाँ चलवाई थीं जिसके बाद भीड़ उग्र हो गई और हिंसा की घटना देखने को मिली। फिलहाल डीजीपी प्रशांत कुमार का कहना है कि अब बहराइच में पूरी तरह से शांति है। डीजी कानून-व्यवस्था अमिताभ यश ने बहराइच की स्थिति देखने के बाद डीजीपी को अपनी रिपोर्ट सौंपी है। रूपेंद्र गौड़ा के अलावा माना जा रहा है कि अभी उन पुलिसकर्मियों पर भी कार्रवाई होगी जिन्होंने घटना वाले दिन स्थानीय स्तर पर लापरवाही की थी।

जस्टिन ट्रूडो के कार्यालय से SFJ का कनेक्शन, आतंकी पन्नू ने खुद किया खुलासा


प्रतिबंधित खालिस्तानी आतंकी संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस’ (SFJ) जस्टिन ट्रूडो के कार्यालय के संपर्क में था। यह खुलासा खालिस्तानी आतंकवादी और SFJ के मुखिया गुरपतवंत सिंह पन्नू ने कनाडाई सरकारी न्यूज चैनल CBC न्यूज को दिए इंटरव्यू में किया।

भारत और कनाडा के बीच जारी राजनयिक विवाद को लेकर गुरपतवंत सिंह पन्नू ने बताया, “सिख फॉर जस्टिस पिछले 2-3 साल से जस्टिन ट्रूडो कार्यालय से संपर्क में है।” पन्नू के इस खुलासे से भारत के वह आरोप पुख्ता हो गए हैं कि कनाडा लगातार खालिस्तानी आतंकियों को खाद-पानी दे रहा है और उन्हें भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है।

कनाडा और भारत भारत के संबंध इस समय काफी निचले स्तर पर जा चुके हैं। भारत ने कनाडा के हाई कमिश्नर को देश से निकाल दिया है और अपने हाई कमिश्नर को भी वापस बुला लिया है। भारत ने कनाडा जस्टिन ट्रूडो पर राजनीति चमकाने के लिए रिश्तों की बलि चढ़ाने का आरोप लगाया है।

वोट बैंक के लिए हिंदुओं-भारत से रिश्ते बिगाड़ रहे जस्टिन ट्रूडो ; चीन-पाकिस्तान का दखल, कमजोर राजनीतिक जमीन, घटती लोकप्रियता


खालिस्तानियों से हमदर्दी दिखाने और भारत से कूटनीतिक रिश्ते खराब करने के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो घरेलू राजनीति में भी अलग-थलग पड़ गए हैं। कनाडा की राजनीतिक और पत्रकार बिरादरी भी ट्रूडो की नीतियों ने कतई सहमत नहीं है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भारत विरोध का यह झंडा ट्रूडो ने अपने वोटबैंक को ठीक करने के लिए उठाया है। यह भी कहा जा रहा है कि कनाडा के चुनावों में चीन के हस्तक्षेप से लोगों का ध्यान भटकाने को लेकर ट्रूडो भारत का नाम उछाल रहे हैं।

जिस तरह भारत में मोदी विरोधी सनातन विरोध कर जनता को गुमराह करते रहते हैं, ठीक उसी तर्ज पर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो चल निकले हैं। वैसे बीजेपी भी तुष्टिकरण कर रही है, जिसका उदाहरण महाराष्ट्र में बीजेपी समर्थित शिवसेना सरकार ने चुनावों मुस्लिम वोट लेने खजाना खोल दिया, उसके बावजूद बीजेपी और शिवसेना को मुस्लिम वोट नहीं मिलने वाला।   

अपनी ही पार्टी के निशाने पर ट्रूडो

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपनी ही पार्टी में अलग-थलग पड़ गए हैं। उनकी लिबरल पार्टी के कई सांसदों ने ट्रूडो सरकार की नाकामियों के चलते जस्टिन ट्रूडो से प्रधानमंत्री पद छोड़ने को कहा है। कई सांसद मुखर होकर यह बात उठा रहे हैं। कनाडाई मीडिया बता रहा है कि लिबरल पार्टी के सांसद एक साथ आकर ट्रूडो पर दबाव बना रहे है कि वह आगामी चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद छोड़ दें। उन पर यह दबाव हालिया टोरंटो उपचुनाव में हार के बाद और बढ़ा है।
CBC की एक रिपोर्ट बताती है कि सांसद सीन केसी ने जस्टिन ट्रूडो से खुले तौर पर पद छोड़ने को कहा है। इसके अलावा बाकी सांसद संख्याबल जुटा रहे हैं ताकि वह ट्रूडो को किनारे लगा सकें। ट्रूडो के विरोधी सांसद तब तक इस पूरी प्रक्रिया को चुपचाप कर रहे हैं। कई सांसदों से एक ऐसे कागज पर दस्तखत करने को कहा जा रहा है जिसमें ट्रूडो को हटाने की बात कही गई है। ट्रूडो को हटाने की यह कोशिश अकारण ही नहीं हो रही है। कनाडा में 2025 में आम चुनाव होने हैं।
चुनाव से पहले जस्टिन ट्रूडो की जनता में लोकप्रियता रसातल को चली गई है। जनता की पसंद-नापसंद बताने वाली अप्रूवल रेटिंग में भारी गिरावट हुई है। सितम्बर, 2024 में ट्रूडो की अप्रूवल रेटिंग मात्र 30% थी। यानी 100 में से 70 लोग ट्रूडो को पसंद नहीं करते। जब ट्रूडो प्रधानमंत्री बने थे, तब उनको पसंद करने वालों का आँकड़ा 60% के पार था। युवा वर्ग और पुरुषों में तो ट्रूडो की रेटिंग 25% पर पहुँच गई है। उनकी लोकप्रियता घटने का सबसे बड़ा कारण कनाडा में बढती महंगाई और बेरोजगारी है।
अपनी पार्टी के विरोध से बचने को ट्रूडो भारत विरोध का पैंतरा अपना रहे हैं। उन्हें लगता है कि राजनयिक बखेड़ा खड़ा करने से कुछ समय के लिए उनकी कुर्सी बच जाएगी। वह अपनी पार्टी को देश के संकट में फंसे होने का बहाना दे सकेंगे। हालाँकि, उनकी कुर्सी बचाने की यह तरकीब कनाडा को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारी पड़ने वाली है।

मुस्लिम-सिख वोटबैंक भी है कारण

जस्टिन ट्रूडो के खुले भारत विरोध का एक कारण वोटबैंक भी है। वह यूँ ही खालिस्तानियों का समर्थन नहीं कर रहे हैं। दरअसल, सिख कनाडा की आबादी का लगभग 2% हैं। उनके वोट ब्रैम्पटन जैसे इलाकों में निर्णायक हैं। कनाडा में सिखों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकांश नेता भी खालिस्तान के समर्थक हैं। जगमीत सिंह इसका एक उदाहरण हैं। कई बड़े गुरुद्वारों में भी खालिस्तानियों का प्रभाव है। इन सब परिस्तिथियों में सिख वोट ट्रूडो के लिए काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
वह खालिस्तानियों को खुश करके सिख समुदाय का वोट चाहते हैं। इसके अलावा कनाडा में हिन्दू वोट भी 2.3% है। ट्रूडो जानते हैं कि भारत का विरोध करने से उनको हिन्दू वोट का नुकसान होगा। हालाँकि, वह इस वोट का नुकसान करने को तैयार हैं और इसकी भरपाई वह सिख-मुस्लिम वोट मिलाकर करना चाहते हैं। कनाडा की आबादी में लगभग 5% हिस्सा मुस्लिमों का है। इनमें से भी बड़ा हिस्सा उन मुस्लिमों का है, जो पाकिस्तानी हैं।
इस मुस्लिम वोटबैंक को साधने के लिए ट्रूडो ने कनाडा के भीतर पाकिस्तान की गतिविधियों को खुला छूट दे दी है। सितम्बर, 2024 में ही कनाडा की खुफिया और सुरक्षा एजेंसी CSIS प्रमुख वनेसा लॉयड ने स्पष्ट तौर पर विदेशी दखल की जाँच करने वाली कमिटी को बताया था कि पाकिस्तान कनाडा के भीतर दखल दे रहा है। उन्होंने बताया था कि पाकिस्तान कनाडा के भीतर खालिस्तान समर्थकों को मदद करता है और साथ ही चुनावों में भी दखल देता है। पाकिस्तान यहाँ लोगों को दबाता भी है।
जस्टिन ट्रूडो ने इस खुलासे के ऊपर आँखे मूँद रखी हैं। उन्होंने पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी के ऊपर एक भी शब्द बोलने से इनकार कर दिया है। कनाडा के भीतर खालिस्तानियों को पाकिस्तान के साथ मिल कर भारत तोड़ने की साजिश रचने की पूरी छूट दी जा रही है। यह सब इसलिए ताकि ट्रूडो लगभग 7%-8% वोटबैंक बढ़ा सकें। चुनावी फायदे के लिए ट्रूडो ने अपने देश के रिश्तों को ताक पर रख दिया है। वह कनाडा की शिक्षा व्यवस्था का भी इससे बड़ा नुकसान करने वाले हैं।

चीन का दखल छुपाने का भी प्रयास

जस्टिन ट्रूडो का भारत विरोधी रवैये का एक और कारण है। यह कारण चीन का कनाडा की राजनीति और उसके चुनाव में दखल है। चीन के प्रभाव कनाडा में प्रभाव को ट्रूडो छुपाना चाहते हैं। कनाडाई चुनाव में दखल को लेकर एक जाँच चल रही है। जून, 2024 में आई एक रिपोर्ट बताती है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थक कुछ चीनी नागरिक, कनाडा के शासन और अर्थव्यवस्था में घुसपैठ करने और उसे प्रभावित करने के प्रयासों में लगे हुए हैं और लगे हुए हैं।
इस रिपोर्ट में बताया गया था कि कनाडा के चुनावों में दखल के लिए चीन सबसे बड़ा खतरा है। एक रिपोर्ट में तो यहाँ तक बताया गया था कि चीन ने कनाडा के भीतर अपने पुलिस स्टेशन तक बना लिए हैं। कनाडा में 7 चीनी पुलिस स्टेशन होने की बात कही गई थी। यह भी सामने आया था कि चीन ने कनाडा में कंजर्वेटिव पार्टी के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास किया। चीन ने कनाडा में सांसदों और कई नेताओं को धमकाने तक को लेकर प्रयास किए हैं। यहाँ तक कि जस्टिन ट्रूडो को जिताने में भी चीन का योगदान बताया जाता है।
चीन का कनाडा में दखल यहाँ राजनीति में बड़ा मुद्दा है। इसे दबाने को लेकर भी जस्टिन ट्रूडो भारत को निशाने पर ले रहे हैं। भारत लगातार कनाडा से खालिस्तानियों पर कार्रवाई की माँग करता आया है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत की चिंताओं को लगातार नजरअंदाज करते आए हैं और साथ ही भारत विरोधियों को प्रश्रय देते रहे हैं। स्थानीय राजनीति चमकाने के लिए आतंकियों को बसाना कभी भी फायदे का सौदा नहीं होता है, जस्टिन ट्रूडो जितनी जल्दी यह समझेंगे, उतना ही कनाडा का नुकसान कम होगा।

उत्तर प्रदेश : नौकरानी रीना अपने पेशाब से गूथती थी आटा; पूरे परिवार का लीवर खराब; वीडियो वायरल

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में एक रियल एस्टेट कारोबारी के घर में काम करने वाली एक नौकरानी खाने में पेशाब मिलाती थी। उसने कई बार पेशाब मिलाकर आटा गूंथा और पूरे परिवार को खिलाया। परिवार के चुपके से कैमरा मिलाने पर इस करतूत का खुलासा हुआ।

यह नौकरानी गाजियाबाद के क्रासिंग रिपब्लिक इलाके में एक घर में काम करती थी। परिवार ने बार-बार चोरी और बीमरी होने पर चुपके से वीडियो बनाया जिससे यह वारदात खुली। आरोपित नौकरानी का नाम रीना है, उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।

पुलिस से पूछताछ में रीना ने बताया है कि वह परिवार पर गुस्सा रहती थी इसलिए वह खाने में पेशाब मिलाने लगी। उसने ऐसा कई मौकों पर किया है। वह आठ साल से कारोबारी के घर में काम कर रही थी। अब उसे गिरफ्तार कर लिया है।

नरेंद्र मोदी पाकिस्तान और कांग्रेस को भिखारी बना चुके हैं; ट्रूडो क्यों पंगा ले रहे हैं मोदी से, मकड़जाल में फंसा ट्रुडो बर्बाद हो जाएगा; कैसा कानून है अमेरिका और कनाडा का?

सुभाष चन्द्र

यह बात सत्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान और कांग्रेस दोनों को भिखारी बना दिया, जहां पाकिस्तान आज दुनिया भर में कटोरा लिए घूम रहा है, वहीं कांग्रेस की हालत भी क्षेत्रीय दलों के आगे हाथ फैला कर भीख मांगने की हो गई है। 

पाकिस्तान फिर भी आतंकियों से भारत में हमले कराने से बाज़ नहीं आ रहा लेकिन भारत से दोस्ती करने का ढोंग भी करता है लेकिन अपने घर में जाकिर नाइक जैसे भारत के Wanted Criminal को अपना state guest बनाता है फिर भारत से बात करने का तो कोई मतलब ही नहीं रह गया पाकिस्तान पल रहा था भारतीय जाली नोटों की कमाई पर, लेकिन मोदी ने नोटबंदी करने उसकी कमर तोड़ दी और वह 2016 से कंगाल होता चला गया

लेखक 
चर्चित YouTuber 
इधर कांग्रेस केवल हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना को छोड़ कर हर राज्य में एक भिखारी की तरह क्षेत्रीय दलों से मिलने वाली सीटों की भीख पर आश्रित रहती है अभी हरियाणा में अकेले लड़ लिए और गिर गए वहां भी हर राज्य में किसी दल के साथ भी कांग्रेस अपनी मनमानी नहीं कर सकती अभी महाराष्ट्र में उद्धव और शरद पवार जितनी सीट देंगे,उस पर ही संतोष करना पड़ेगा और यही हाल झारखंड में होगा

अब कनाडा के ट्रूडो को देखो जब से निज्जर की हत्या हुई है तभी से खालिस्तान समर्थकों से घिरा हुआ भारत से पंगा लिए रहता है अब हाल ही में उसने भारतीय राजनयिकों पर मनघडंत आरोप लगा कर उन्हें बदनाम करने की कोशिश की लेकिन मोदी सरकार ने तबियत से ठोक दिया 

और अपने 6 राजनयिक वापस बुला लिए और कनाडा के निकाल दिए कनाडा को भोजन सामग्री और अन्य चीजें ले जाने वाला ship रास्ते में रोक कर वापस बुला लिया

ट्रूडो अब कह रहा है कि हमने भारत को नाराज़ करने के लिए ऐसा कुछ नहीं कहा जबकि भारत पर sanctions तक की धमकी दे दी थी भाई तुम्हे जो करना है कर लो, अपने दिल की सारी भड़ांस निकाल लो क्योंकि तुम खालिस्तान वालों के मकड़जाल में फंसे हुए हो और तुम्हे पता है जिस दिन तुम उनकी बात नहीं मानोगे, उस दिन तुम्हे निपटा देंगे इंदिरा गांधी की तरह

उधर अमेरिका पगलाया हुआ कि भारत ने उसके पन्नू को मारने की कोशिश जबकि ऐसा कोई सबूत नहीं है उनके पास अपने लिए तो निखिल गुप्ता को तुरंत प्रत्यर्पित करा लिया लेकिन भारत के अपराधी तहवर राणा को 15 साल से अपने पास लिए बैठा है

लेकिन एक बात समझ नहीं आती कि ये कनाडा और अमेरिका अपने को बहुत बड़ी  Democracy बने फिरते हैं, क्या उनकी democracy और Constitution उनके नागरिकों को मित्र देशों के प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों की हत्या करने और उन देशों में दंगे करने की और  दूसरे देशों में जनता को भड़काने की इज़ाज़त देता है वैसे ऐसा हो भी सकता है क्योंकि अमेरिका तो खुद दूसरे देशों की तख्तापलट तक करने के काम भी करता है तो नागरिकों से तो कुछ भी करा सकता है

अमेरिका कनाडा भारत विरोधी आतंकियों को पनाह दे रहे हैं, ब्रिटेन भारत समेत अनेक देशों के आर्थिक अपराधियों और हत्यारों को शरण दे देता है और पाकिस्तान का तो कहना ही क्या, उसे भारत के सभी वांछित आतंकियों से बेपनाह मोहब्बत है, आजकल तो जाकिर नाइक को मेहमान बनाया हुआ है 

इन देशों के साथ दोस्ती तो तलवार की धार पर चलने वाली बात है लेकिन मोदी सबकी राह में रोड़ा है और इसलिए अमेरिका चाहता है अपने किसी जड़ खरीद गुलाम को भारत की सत्ता दी जाए लेकिन सफल नहीं हो रहा जबकि राहुल गांधी जी जान से लगा है अमेरिका की मदद करने में

पेंशन भोगी का क्या साल में एक बार बैंक जाकर अपना जीवन प्रमाणपत्र देने का कर्तव्य भी नहीं निभा सकते; बैंक का क्या किसी के बाप के नौकर हैं जो अदालत ने बैंक को ही प्रवचन दे दिया

सुभाष चन्द्र

इस देश में सबसे बड़ी समस्या है कि हर किसी को अपने अधिकारों की चिंता है, कर्तव्य कोई नहीं निभाना चाहता और कोर्ट भी उनके अधिकार सुनिश्चित करने में ज्यादा रूचि रखते हैं लेकिन लोगों को उनके कर्तव्य बताने को राजी नहीं है क्योंकि इससे सरकार पर दबाव बनता और वह परेशान होती है। 

क्या पेंशन भोगी एक साल में एक बार अपना जीवन प्रमाण पत्र भी बैंक में जाकर जमा नहीं करेगा, कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक फैसले में पेंशन भोगियों को अपने जीवन प्रमाण पत्र जमा न करने के लिए Motivate किया है जिससे सभी बैंक परेशान हों। 

रिट याचिका 405 / 2023 पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि कोई पेंशन भोगी Life Certificate जमा नहीं करता तो बैंकों को उनकी पेंशन रोकने से पहले उसके घर जाकर पता करना कि क्या बात है। Delay और Laches की वजह से किसी के जायज हक़ नहीं मारे जाने चाहिए। 

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ये मामला था 102 साल के नागभूषण राव, एक freedom fighter का था जिन्हें सरकार से 1974 से पेंशन मिल रही थी पेंशन सरकार से मिल रही थी जो बैंक देता था उन्होंने अपना जीवन प्रमाण पत्र 2017 और 2018 के लिए जमा नहीं किया वह प्रमाणपत्र दिसंबर 2018 में जमा कराया गया जिस दिन प्रमाणपत्र जमा किया उस दिन से 5 अक्टूबर, 2020 तक की पेंशन बैंक ने जारी कर दी

पेंशन भोगी नागभूषण ने एक नवंबर 2017 से दिसंबर, 2018 तक की पेंशन जारी करने के लिए कहा जो 3,71,280 रुपये थी यानी 14 महीने की पेंशन थी 26,520 रूपए प्रति माह

कोर्ट ने बैंक को पेंशन भोगियों के घर जाने के प्रवचन देते हुए बैंक पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया और आदेश दिया कि 2 सप्ताह में पूरी पेंशन 6% ब्याज के साथ अदा कर दी जाए और यदि ऐसा नहीं किया जाता तो ब्याज 18% देना होगा

बैंकों के मेरे कुछ मित्र इस फैसले से बड़े खुश हैं यह फैसला लोगों के केवल अधिकार की रक्षा करने के बात करता है उन्हें कर्तव्य पूर्ति की सलाह नहीं देता बंदे ने 2 साल तक जीवन प्रमाण पत्र नहीं दिया और जाहिर है न बैंक को कोई सूचना दी होगी कि वह प्रमाण पत्र क्यों नहीं दे सका 

इस रिपोर्ट में यह भी नहीं लिखा कि वे चलने फिरने की हालत में नहीं थे और अगर ऐसा होता तो बैंक अधिकारी जरूर उनके घर आता क्योंकि ये RBI के निर्देश हैं उसके अनुसार यदि कोई पेंशन भोगी शारीरिक कष्ट के कारण बैंक नहीं आ सकता तो बैंक उसके घर अपना प्रतिनिधि भेजेगा 

यह जीवन प्रमाण पत्र साल में एक बार नवंबर के महीने में जमा करना होता है पेंशन भोगी की पेंशन Bread & Butter है और वह उसे लेने बैंक हर महीने जा सकता है तो Life Certificate भी जमा करा सकता है 

लेकिन कोर्ट के आदेश ने पेंशन धारकों को खुली छूट दे दी कि चाहे जीवन प्रमाण पत्र जमा करो या न करो, बैंक तुम्हारी पेंशन बंद नहीं कर सकता, उसे तुम्हारे घर आना होगा क्योंकि बैंक वाले तुम्हारे बाप के नौकर हैं आप सोचो यदि ऐसे बहक कर किसी बैंक में 5000 लोगों ने भी सर्टिफिकेट जमा नहीं कराया तो बैंक की हालत ख़राब हो जाएगी 5000 लोगों के घर में अधिकारी भेजते हुए 

समस्या सारी यह है कि हाई कोर्ट हो या सुप्रीम कोर्ट हो, उनके जज बोलते हुए, आदेश देते हुए सोचते ही नहीं (no application of mind) कि वो बोल क्या रहे हैं सरकार को जलील करना तो अपना परम कर्तव्य समझते हैं बैंक के अपने कुछ नियम होते हैं लेकिन अदालत बैंक ही नहीं सरकार के हर क्षेत्र में अपने नियम घुसेड़ना चाहते हैं यानी हर काम में दखल देना चाहते हैं और यह बहुत खतरनाक प्रवत्ति है

बहराइच के जिस घर में हुई राम गोपाल मिश्रा हत्या, वहाँ खून के धब्बे-काँच की बोतलें : बिजली के झटके देकर भी किया टॉर्चर, अब्दुल हमीद की लाइसेंसी बंदूक से मारी गोली; घर पर बुलडोज़र ही नहीं हर सरकारी सुविधा भी इन जालिमों की छीनी जाए

    रामगोपाल मिश्रा (दाएँ) और अब्दुल हमीद की छत पर मिले पत्थर (बाएँ) (चित्र साभार: Bhaskar & Amar ujala)
बहराइच में रविवार (13 अक्टूबर, 2024) को इस्लामी कट्टरपंथियों ने दुर्गा पूजा के जुलूस पर हमला किया था। यहाँ इस्लामी कट्टरपंथियों ने रामगोपाल मिश्रा की हत्या कर दी थी। रामगोपाल मिश्रा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया है कि वह उन्हें करेंट लगाया गया था और उनके नाखून उखाड़ कर बर्बरता की गई थी।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया है कि अब्दुल हमीद और उसके साथ के मुस्लिमों ने रामगोपाल मिश्रा को गोली मारने के बाद करेंट लगाया था और प्रताड़ित किया था। उनके पैर के नाखून उखाड़े गए और साथ ही में धारदार हथियारों से हमला किया गया। आँखों के पास नुकीली चीज मारी गई थी।

करेंट लगाने के कारण रामगोपाल मिश्रा को ब्रेन हैमरेज हो गया था। बर्बरता की वजह से उनका खून भी बहा था और ज्यादा इन्हीं दोनों कारणों से रामगोपाल मिश्रा की मौत हुई। इस प्रताड़ना की बात रामगोपाल मिश्रा की पत्नी ने भी बताई थी।

अमर उजाला की रिपोर्ट में बताया गया है कि रामगोपाल को अब्दुल हमीद की लाइसेंसी बंदूक से गोली मारी गई थी। इससे उनके शरीर में छर्रे फ़ैल गए थे। इस बंदूक का लाइसेंस निरस्त करने के लिए पुलिस ने रिपोर्ट भेजी है।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट में बताया गया है कि अब्दुल हमीद के घर की छत पर खून के धब्बे भी मिले हैं। यहाँ कांच की बोतलों के टुकड़े भी मिले हैं। संभवतः रामगोपाल मिश्रा पर काँच की बोतलों से वार किया गया था। यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि रामगोपाल को काँच की बोतलें लगीं जिसके कारण वह पहले घायल हुए।

रामगोपाल मिश्रा शव के साथ बर्बरता करने के बाद भी जब अब्दुल हमीद और उसके साथ के मुस्लिमों का मन नहीं भरा तो उन्होंने शव को लेने आए लोगों पर भी हमला बोला। रामगोपाल के भाई और दोस्त जब शव निकालने लगे तो उन पर फायरिंग और पथराव हुआ।

रिपोर्ट्स में बताया गया है कि अब्दुल हमीद और उसका परिवार भाग कर अब नेपाल चला गया है। ऑपइंडिया ने इससे पहले बताया था कि अब्दुल हमीद का एक बेटा नेपाल में रहता है और अपराधी है। सूचना मिली है कि अब्दुल हमीद और उसका परिवार नेपाल के रिश्तेदार के यहाँ शरण लेकर बैठा हुआ है।

यह भी सामने आया है कि रामगोपाल मिश्रा ने भगवा झंडा मुस्लिमों के हमले के बाद लगाया था। पहले दुर्गा पूजा पर पथराव किया गया था, इसमें देवी प्रतिमा पर पत्थर लगा था और उसे नुकसान पहुँचा था। इसके बाद हिन्दू शांतिपूर्ण रूप से प्रदर्शन कर रहे थे। एक और घायल ने बताया है कि पहले मस्जिद ने निकल कर लोगों ने उन पर हमला किया था।

बहराइच में हुए दंगे के बाद अब यहाँ पुलिस की भारी तैनाती है। फरार दंगाइयों को गिरफ्तार करने के प्रयास किए जा रहे हैं। रामगोपाल मिश्रा का परिवार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिला है। उन्होंने इस मामले में सख्त कार्रवाई का भरोसा दिया है।

पप्पू यादव ने लॉरेंस बिश्नोई के नेटवर्क को 24 घंटे में ख़त्म करने की धमकी दी, फिर पता नहीं क्या हुआ, टसुए बहा रहा था; आतंकियों के पैसे पर पलने वाला Bollywood आज खुद भय से कांप रहा है

सुभाष चन्द्र

बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद लॉरेंस बिश्नोई गैंग को लेकर जिस तरह दशहत बढ़ने लगी है। उस बीच पूर्णिया सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने गैंग को खुली चुनौती दे डाली है।

पूर्व कांग्रेस नेता और वर्तमान निर्दलीय सांसद पप्पू यादव के X पर लिख कर लॉरेंस बिश्नोई को ख़त्म करने की बात करते हुए कहा -

“यह देश है या हिजड़ों की फ़ौज,

एक अपराधी जेल में बैठ कर चुनौती दे 

लोगों को मर रहा है, सब मूकदर्शक बने हैं -

कभी मूसेवाला, कभी करणी सेना के मुखिया 

अब एक उद्योगपति राजनेता को मरवा डाला 

कानून अनुमति दे तो 24 घंटे में इस लारेंस बिश्नोई 

जैसे दो टके के अपराधी के पूरे नेटवर्क को 

ख़त्म कर दूंगा”

ये पोस्ट उसने 13th अक्टूबर को 3.48 बजे डाली थी लेकिन यानी 14th अक्टूबर का उसका एक बयान रोते हुए Instagram पर देखा गया। अब ये नहीं पता कौन उसे मारने की कोशिश कर रहा था लेकिन वो टसुए बहाते हुए कह रहा था कि -

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“साले अब हम दिखाते हैं गुंडई, मेरे गार्ड से पूछिएगा, मेरा गार्ड नहीं होता तो मार देता ये मुझे ये लोग, मैं SP को फ़ोन किया नहीं उठाया, IG को किया नहीं उठाया, CM को किया नहीं उठाया, उनके PA ने उठाया, उनको बोला हम पर हमला किया गया है” 

अब इंस्टाग्राम के वीडियो से पता नहीं चल रहा किसने हमला किया पप्पू पर लेकिन हो सकता है बिश्नोई के किसी गुर्गे ने हड़काने के लिए किया हो कि बेटा ये अंतिम चेतावनी है, मुंह बंद रख 

लेकिन पप्पू यादव लॉरेंस बिश्नोई को निपटाने के लिए कानून की अनुमति क्यों मांग रहा है क्योंकि जब लॉरेंस गैर कानूनी तरीके से लोगों को निपटा रहा है तो पप्पू भी गैर कानूनी तरीके से उसे निपटा दे, क्या प्रॉब्लम है भाई 

कभी गुलशन कुमार की दाऊद के गुर्गों द्वारा हत्या पर पूरा Bollywood जश्न मना रहा था और सुशांत सिन्हा की मौत का भी कोई गम नहीं था लेकिन आज गरीबों के कथित मसीहा की हत्या पर ऐसे रो रहा है Bollywood जैसे उनके अब्बा को मार दिया गया हो।  2900 करोड़ की networth का सलमान खान और पूरा Bollywood खौफजदा है जो आतंकियों के पैसे पर पलते हैं और हिंदुओं के खिलाफ एकजुट हो कर हिंदू मानस और देवी देवताओं को अपमानित करते हैं।  यह कहीं “कर्मफल” ही तो नहीं है और हिंदू देवों का श्राप?

लॉरेंस बिश्नोई को सलमान खान से बदला लेना है काले हिरणों के शिकार के लिए जिन्हें बिश्नोई समाज पूजता है लेकिन हमारी अदालतें देखो, 20 साल बाद 5 अप्रैल, 2018 को सलमान को 5 साल की सजा सुनाई लेकिन हाई कोर्ट ने 7 अप्रैल, 2018 को उस पर रोक लगा दी और तब  से हाई कोर्ट सो रहा है 6 साल से मक्कार इतना है सलमान खान कि बिश्नोई समाज से माफ़ी नहीं मांग सकता क्योंकि उससे उसकी इज़्ज़त ख़राब होती है तो अब छुपा बैठा रह दड़बे में 

और हाँ, जैसे बिश्नोई समाज का लॉरेंस काले हिरणों की हत्या पर इतना आक्रोशित है, कहीं हिंदुओं में कोई लॉरेंस पैदा हो गया और गाय काटने वालों को ठिकाने लग गया तो क्या होगा?

कर्नाटक : मस्जिद में ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने से आहत नहीं होती मजहबी भावनाएँ: हाई कोर्ट ने हिंदुओं के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई रद्द की


कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि मस्जिद के अंदर ‘जय श्रीराम’ कहने से किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं की ठेस नहीं पहुँचती। इसके बाद हाई कोर्ट के जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने पिछले महीने धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने के दो आरोपितों- कीर्तन कुमार और सचिन कुमार के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।

दरअसल, दक्षिण कन्नड़ जिले की पुलिस ने कीर्तन कुमार और सचिन कुमार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295A, 447 और 506 सहित कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था। शिकायत में कहा गया था कि पिछले साल सितंबर (सितंबर 2023) में एक रात दोनों स्थानीय मस्जिद में घुसे और ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए।

अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा, “धारा 295A किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य करने से संबंधित है। यह समझ से परे है कि अगर कोई ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाता है तो इससे किसी वर्ग की धार्मिक भावना कैसे आहत होगी।”

हाई कोर्ट ने कहा कि जब शिकायतकर्ता खुद कहता है कि इलाके में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द्र के साथ रह रहे हैं तो इस घटना का किसी भी तरह से कोई मतलब नहीं निकाला जा सकता है। दोनों याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि मस्जिद एक सार्वजनिक स्थान है। इसलिए इसमें आपराधिक अतिक्रमण का कोई मामला नहीं बनता। ‘जय श्रीराम’ का नारा IPC की धारा 295A के तहत परिभाषित अपराध भी नहीं है।

वहीं, राज्य सरकार की ओर पेश से वकील सौम्या आर ने इस याचिका का विरोध किया और कहा कि मामले में आगे की जाँच की आवश्यकता है। हालाँकि, अदालत ने माना कि वर्तमान मामले में कथित अपराध का सार्वजनिक व्यवस्था पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा। इस हाई कोर्ट ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का मानना ​​है कि हर कार्य IPC की धारा 295A के तहत अपराध नहीं बनता है।

महेंद्र सिंह धोनी बनाम येरागुंटला श्यामसुंदर (2017) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने कहा, “जिन कार्यों का शांति या सार्वजनिक व्यवस्था को नष्ट करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, उन्हें आईपीसी की धारा 295A के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। इन कथित अपराधों में से किसी भी अपराध के कोई तत्व नहीं पाए जाने पर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आगे की कार्यवाही की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग और न्याय की विफलता होगी।”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : 100 वर्षों की यात्रा


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिसका विपक्ष तुष्टिकरण के चलते मुसलमानों को खुश करने विरोध करती है, उसका कारण है, जिसे हर शांतिप्रिय को समझना होगा। भारत के बंटवारे के बाद 'मुस्लिम लीग ने कहा था कि अगर आरएसएस 10 साल पहले बन गया होता पाकिस्तान नहीं बनता।' तभी से छद्दम धर्म-निरपेक्ष संघ को बदनाम करने कमर कसे हुए हैं। अगर संघ में देश भावना नहीं होती 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सेना की भांति संघ की परेड नहीं निकलवाते। 

भारत की स्वतंत्रता और उसके बाद के राष्ट्र निर्माण में कई संगठनों ने अपनी भूमिका निभाई, लेकिन जो संगठन निरंतरता और समर्पण के साथ पिछले सौ वर्षों से राष्ट्र की सेवा कर रहा है, वह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)। संघ की यात्रा केवल संगठनात्मक नहीं है, बल्कि यह एक विचारधारा की यात्रा है, जो समाज के हर वर्ग को एकजुट कर भारत को सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से एक सशक्त राष्ट्र बनाने की दिशा में कार्यरत है।

RSS की स्थापना: राष्ट्र की सेवा का एक महान विचार

सन 1925 का वर्ष भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने उस समय देश के सामने आ रही चुनौतियों को समझते हुए आरएसएस की स्थापना की। हेडगेवार का यह स्पष्ट विचार था कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही भारत को पूर्णरूपेण स्वतंत्र नहीं बना सकती, जब तक कि समाज का संगठनात्मक, सांस्कृतिक और नैतिक पुनरुत्थान न हो।
सन 1925 में विजयदशमी के दिन शुरू हुआ आरएसएस इस विजयदशमी पर अपने 99 वर्ष पूरे करके 100वे वर्ष में प्रवेश कर गया है। डॉक्टर हेडगेवार के अनुसार, समाज को संगठित और सशक्त करने के लिए एक दीर्घकालिक और अनुशासित आंदोलन की आवश्यकता थी, जिसे आरएसएस के माध्यम से साकार किया गया। भारतीय समाज में कई ऐसे तत्व थे, जो इसे भीतर से कमजोर कर रहे थे।
उनका मानना था कि जातिवाद, सांप्रदायिकता और बाहरी सांस्कृतिक प्रभावों ने भारत के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर दिया था। इनका समाधान केवल संगठित और अनुशासित समाज से ही संभव था, जो देश के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित हो। इसी विचार को ध्यान में रखते हुए RSS ने एक सशक्त, संगठित और अनुशासित समाज की नींव रखी, जो राष्ट्र के पुनर्निर्माण में सहायक हो।

संघ का प्रारंभिक स्वरूप और विचारधारा

आरएसएस की शुरुआत बहुत ही छोटे स्तर पर हुई थी। हेडगेवार ने कुछ युवा लोगों को संगठित किया और उन्हें राष्ट्र सेवा, अनुशासन और संगठन के सिद्धांतों से प्रेरित किया। प्रारंभिक शाखाओं में शारीरिक प्रशिक्षण, बौद्धिक चर्चाएँ और राष्ट्रभक्ति की शिक्षा दी जाती थी। संघ की शाखाएँ एक प्रकार से प्रशिक्षण केंद्र थीं, जहाँ हर स्वयंसेवक को राष्ट्रहित में अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया जाता था।

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जीवन और नेतृत्व

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1889 में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा के दौरान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया था। कांग्रेस से जुड़े होने के बावजूद, उन्होंने महसूस किया कि राजनीतिक आजादी से अधिक महत्वपूर्ण सामाजिक संगठन और सांस्कृतिक पुनरुत्थान है। यही विचार उनके जीवन के केंद्र में रहा और आरएसएस की स्थापना में भी इसे ही प्राथमिकता दी गई।
डॉक्टर हेडगेवार ने एक ऐसे संगठन का सपना देखा जो समाज को एकजुट कर सके और हर व्यक्ति को राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित कर सके। आखिरकार डॉक्टर हेडगेवार के नेतृत्व में आरएसएस का प्राथमिक लक्ष्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना था, जो अपने अंदर किसी भी प्रकार की विभाजनकारी मानसिकता को जगह न दे।
उनके विचारों में स्पष्ट था कि भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनने के लिए समाज के सभी वर्गों के बीच समरसता और एकता की आवश्यकता है। इसी विचार के तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कार्य करना शुरू किया और धीरे-धीरे यह संगठन पूरे भारत में अपनी शाखाओं के माध्यम से फैलने लगा।

RSS का विस्तार और विकास: गुरुजी का नेतृत्व (1940-1973)

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर, जिन्हें गुरुजी के नाम से जाना जाता है, सन 1940 में डॉक्टर हेडगेवार के निधन के बाद संघ के दूसरे सरसंघचालक बने। गुरुजी का कार्यकाल संघ के लिए विस्तार और विचारधारा के सुदृढ़ बनाने का समय था। डॉक्टर हेडगेवार ने जिस नींव पर संघ की स्थापना की थी, गोलवलकर उर्फ गुरुजी ने उसे एक व्यापक रूप दिया।
उन्होंने संघ को न केवल संगठनात्मक रूप से बल्कि वैचारिक रूप से भी सशक्त बनाया। गुरुजी का मानना था कि भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक राष्ट्र है, जिसकी जड़ें उसकी प्राचीन सभ्यता और मूल्यों में हैं। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने और उसे आधुनिक भारत की पहचान बनाने की दिशा में कार्य किया।
उनके नेतृत्व में संघ ने समाज के हर वर्ग तक पहुँचने और उन्हें राष्ट्र निर्माण की दिशा में प्रेरित किया। गुरुजी ने स्वयंसेवकों को यह सिखाया कि राष्ट्र सेवा का अर्थ केवल राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना नहीं है, बल्कि समाज के हर क्षेत्र में अपना योगदान देना है। चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, ग्रामीण विकास हो या सामाजिक सुधार – स्वयंसेवक हर क्षेत्र में पुनर्निर्माण के लिए कार्य करना है।

संघ पर पहला प्रतिबंध: गाँधी जी की हत्या और संघ का संघर्ष

सन 1948 में महात्मा गाँधी की हत्या के बाद संघ को पहली बार प्रतिबंध का सामना करना पड़ा। महात्मा गाँधी की हत्या के बाद तत्कालीन पंडित नेहरू की अगुवाई वाली सरकार ने आरोप लगाया कि इस घटना के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हाथ है। इस आरोप के आधार पर आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया और संघ के कई प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। 
हालाँकि, संघ का इस हत्या से कोई सीधा संबंध नहीं था, लेकिन उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों में यह प्रतिबंध लगाया गया। संघ ने इस आरोप को न केवल नकारा, बल्कि अपनी निर्दोषता को साबित करने के लिए कानूनी लड़ाई भी लड़ी। जाँच आयोग की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया कि संघ का महात्मा गाँधी की हत्या में कोई हाथ नहीं था और इस आधार पर प्रतिबंध हटा लिया गया।

संघ का समाजिक सेवा कार्य और विस्तार

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उर्फ गुरुजी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी शाखाओं का विस्तार किया और पूरे भारत में अपने कार्यों को फैलाया। संघ के स्वयंसेवक देश के कोने-कोने में समाज सेवा के विभिन्न कार्यों में जुट गए। संघ के सेवा कार्य केवल आपातकालीन परिस्थितियों तक सीमित नहीं थे। संघ ने शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और समाज कल्याण जैसे क्षेत्रों में भी अहम योगदान दिया।
संघ के स्वयंसेवकों ने आपदा प्रबंधन में भी अग्रणी भूमिका निभाई। विद्या भारती जैसी संस्थाओं के माध्यम से संघ ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान दिया। विद्या भारती के तहत संचालित स्कूलों में न केवल शिक्षा दी जाती है, बल्कि भारतीय संस्कार और सांस्कृतिक मूल्यों का भी प्रचार-प्रसार किया जाता है। इसी प्रकार, सेवा भारती जैसे संगठनों के माध्यम से संघ ने ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में सेवा कार्यों को बढ़ावा दिया।

बाला साहेब देवरस: सामाजिक सुधार और दलित उत्थान (1973-1994)

गुरुजी के बाद बाला साहेब देवरस ने सन 1973 में संघ का नेतृत्व सँभाला। उनके कार्यकाल में संघ ने सामाजिक सुधारों की दिशा में बड़े कदम उठाए। बाला साहेब का मानना था कि समाज में जातिवाद और भेदभाव को समाप्त किए बिना सच्चे राष्ट्र निर्माण का सपना साकार नहीं हो सकता। उन्होंने समाज के पिछड़े और दलित वर्गों के उत्थान के लिए कई कार्यक्रम चलाए।
बाला साहेब के नेतृत्व में संघ ने समाज के सभी वर्गों को एक साथ लाने की दिशा में प्रयास किए। उन्होंने समाज के हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान दिलाने के लिए संघ के कार्यों को गति दी। उनके नेतृत्व में संघ ने एक ऐसा समाज बनाने की दिशा में काम किया, जहाँ हर व्यक्ति को उसकी जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति के आधार पर नहीं बल्कि उसके गुणों और कार्यों के आधार पर सम्मान मिले।

आपातकाल और दूसरा प्रतिबंध: लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघ का संघर्ष (1975)

सन 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार ने आपातकाल की घोषणा की। इसमें संविधान के कई प्रावधानों को निलंबित कर दिया गया और विपक्षी दलों, संगठनों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस समय राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए गुप्त रूप से आंदोलन चलाया। 
संघ के स्वयंसेवकों ने आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की बहाली के लिए कठिन संघर्ष किया। इस समय संघ के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया, लेकिन उन्होंने अपने संघर्ष को जारी रखा। सन 1977 में जब आपातकाल समाप्त हुआ और लोकतंत्र की बहाली हुई, तब संघ की भूमिका को व्यापक स्तर पर सराहा गया। 

प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह उर्फ रज्जू भैया का नेतृत्व (1994-2000)

प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह को रज्जू भैया के नाम से जाना जाता था। रज्जू भैया संघ के चौथे सरसंघचालक बने। रज्जू भैया एक महान शिक्षाविद् और विद्वान थे, जिन्होंने संघ के कार्यों को शिक्षा और बौद्धिक क्षेत्रों में विस्तार दिया। उनके नेतृत्व में संघ ने शिक्षा के क्षेत्र में नए प्रयास किए और युवाओं को संघ के विचारों से जोड़ने का कार्य किया।
रज्जू भैया का मानना था कि राष्ट्र का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी में निहित होता है। उन्होंने संघ के कार्यों को युवाओं तक पहुँचाने और उन्हें राष्ट्र निर्माण की दिशा में प्रेरित करने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाए। उनके नेतृत्व में संघ ने शैक्षिक सुधार, नैतिक शिक्षा और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

बाबरी मस्जिद विध्वंस और तीसरा प्रतिबंध (1992)

सन 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना के बाद संघ पर तीसरी बार प्रतिबंध लगाया गया। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था और संघ पर इस घटना के पीछे होने का आरोप लगा था। इस समय भी संघ ने संयमित रुख अपनाया और कानूनी प्रक्रिया के तहत अपनी निर्दोषता साबित की।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हमेशा यह स्पष्ट किया कि उसका उद्देश्य समाज में शांति, समरसता और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना है। इस घटना के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने समाज को जोड़ने और सांप्रदायिक सद्भावना को पुनः स्थापित करने के लिए कई कदम उठाए।

सुदर्शन जी का नेतृत्व (2000-2009): स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की दिशा में

कुप्प. सी. सुदर्शन, जिन्हें सुदर्शन जी के नाम से जाना जाता है, ने सन 2000 से सन 2009 तक संघ का नेतृत्व किया। उनके नेतृत्व में संघ ने स्वदेशी, आत्मनिर्भरता और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उनका मानना था कि भारत को सशक्त बनने के लिए स्थानीय संसाधनों और परंपराओं का उपयोग करना चाहिए। उन्होंने स्वदेशी एवं आत्मनिर्भरता के लिए कई कार्यक्रम चलाए।
सुदर्शन जी के कार्यकाल में संघ ने पर्यावरण संरक्षण, जैविक खेती और स्वदेशी उत्पादों के उपयोग की दिशा में जागरूकता फैलाने के लिए कई अभियान चलाए। उनका नेतृत्व संघ के लिए आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाने का समय था। उन्होंने भारतीय ज्ञान, विज्ञान, और परंपराओं को आधुनिक संदर्भ में पुनः स्थापित करने की दिशा में काम किया।

मोहन भागवत: वर्तमान में संघ का नेतृत्व (2009-वर्तमान)

वर्तमान में संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत हैं, जिन्होंने साल 2009 में यह पदभार सँभाला। उनके नेतृत्व में संघ ने समाज के हर वर्ग तक पहुँचने के लिए कई नई पहल की। मोहन भागवत का मानना है कि समाज में समरसता, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। उनके नेतृत्व में संघ ने समाज के हर वर्ग को एक साथ लाने का प्रयास किया।
उनके नेतृत्व में संघ ने समाज में व्याप्त जातिवाद एवं भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई कार्यक्रम चलाए। इस वर्तमान दौर में महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समरसता प्रमुख मुद्दे हैं, जिन पर संघ विशेष ध्यान दे रहा है। मोहन भागवत के नेतृत्व में संघ का यह प्रयास है कि भारत एक ऐसे राष्ट्र के रूप में उभरे, जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर और सम्मान मिले।

संघ का सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक योगदान

आरएसएस ने अपने सेवा कार्यों के माध्यम से समाज के हर वर्ग तक पहुँचने का प्रयास किया है। संघ के सेवा कार्य केवल किसी आपदा या संकट के समय तक सीमित नहीं रहे, बल्कि यह समाज के हर क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्यरत है। संघ ने शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और सामाजिक सुधारों के क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान दिया है।
विद्या भारती जैसे संगठन के माध्यम से संघ ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति की है। विद्या भारती के तहत संचालित विद्यालयों में लाखों छात्रों को न केवल शिक्षित किया जाता है, बल्कि उन्हें नैतिक शिक्षा और भारतीय संस्कृति से भी जोड़ा जाता है। इसी प्रकार, सेवा भारती के माध्यम से संघ ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संघ ने भारतीय संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण के लिए भी अद्वितीय कार्य किए हैं। संघ ने योग, आयुर्वेद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से भारतीय ज्ञान और विज्ञान की प्राचीन विधाओं को पुनर्जीवित किया है। संघ के विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भारतीय संगीत, नृत्य, और कला के माध्यम से भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया जाता है। 
संघ एक गैर-राजनीतिक संगठन है, लेकिन इसका प्रभाव भारतीय राजनीति पर दिखता है। संघ ने राजनीति में नैतिकता, सेवा, और राष्ट्रप्रेम के मूल्यों को आगे बढ़ाने का कार्य किया है। संघ से जुड़े कई राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता भारतीय राजनीति में सक्रिय हैं और राष्ट्र हित में कार्य कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जैसी राजनीतिक पार्टियों के निर्माण और विकास में संघ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

संघ की वैश्विक पहचान और राष्ट्र निर्माण में बढ़ते कदम

आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसकी पहचान विश्व स्तर पर स्थापित हो चुकी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित होकर कई संगठन विदेशों में भी भारतीय संस्कृति, योग और सामाजिक सेवाओं का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। 
संघ 100 वर्षों की यात्रा पूरी करने के बाद भी अपने लक्ष्य और उद्देश्यों के प्रति उतना ही समर्पित है, जितना कि अपने प्रारंभिक दिनों में था। संघ का उद्देश्य समाज के हर व्यक्ति को राष्ट्र सेवा की दिशा में प्रेरित करना और भारत को एक सशक्त, संगठित और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाना है।

‘BJP आतंकियों की पार्टी… जनजातियों के सिर पर पेशाब करती है’: कांग्रेस प्रमुख खड़गे के विवादित बोल, RSS पर भी निकाली कुंठा; लेकिन टुकड़े-टुकड़े गैंग और भारत विरोधी विदेशियों से हाथ मिलाने वाली कांग्रेस कब से देशभक्त हो गयी?

हरियाणा हारने के बाद से कांग्रेस की बौखलाहट या सत्ता से दूर रहने की मंशा से कांग्रेस क्या बोल रही है उसे ही नहीं पता। इस समय कांग्रेस देखा जाए तो अपना सुधबुध खो चुकी है। 

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भाजपा को आतंकवादियों की पार्टी कहा है। उन्होंने शनिवार (12 अक्टूबर 2024) को कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की आदत है कि वो कांग्रेस को हमेशा अर्बन नक्सल पार्टी बताते हैं, लेकिन उनकी पार्टी क्या है? उन्होंने कहा कि भाजपा आतंकवादियों की पार्टी है, जो लिंचिंग में शामिल रहती है। इसलिए मोदी को ऐसे आरोप लगाने का हक नहीं है।

राहुल द्वारा जातिगत जनगणना करवाए जाने का कांग्रेस समर्थन करती है, लेकिन मुस्लिम और ईसाईयों की जातिगत जनगणना पर क्यों खामोश रहती है? क्या यह हिन्दुओं को बाँटने का षड़यंत्र नहीं?    
दलित समाज से आने वाले खड़गे ने ANI से बातचीत में कहा, “जहाँ भी भाजपा की सरकारें हैं, वहाँ शेड्यूल कास्ट खासकर आदिवासियों पर अत्याचार किया जा रहा है। शेड्यूल कास्ट के लोगों पर पेशाब करती है। आदिवासियों का रेप करती है। ऐसा करने वालों का सपोर्ट भी करती है। वो दूसरों पर आरोप लगाते हैं। उनको ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है।”

दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने 5 अक्टूबर 2024 को महाराष्ट्र का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने ठाणे में कहा कांग्रेस और उसकी नीतियों को लेकर जमकर हमला बोला था। प्रधानमंत्री मोदी ने उस समय कहा था, “कांग्रेस और उनके सहयोगियों का एक ही मिशन है- बाँटो और सत्ता में रहो। कांग्रेस को अर्बन नक्सल गैंग चला रहे हैं। वह देश विरोधियों के साथ खड़ी है।”

वहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर भी उन्होंने पलटवार किया। मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “जिस पार्टी का मकसद देश को बाँटना है, उन्हें सपोर्ट करने वाले देश में ही हैं। वह संघ प्रमुख भागवत हैं। संविधान बदलना हो, रिजर्वेशन हो, हिंदू-मुसलमानों को अलग करने की बात करने वाले ये लोग हैं और बुद्धि दूसरे लोगों को बाँट रहे हैं।”

दरअसल, शनिवार (12 अक्टूबर 2024) को महाराष्ट्र के नागपुर में विजयदशमी के कार्यक्रम में RSS के स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी कुछ ऐसा ही कहा था। उन्होंने किसी का लिए बिना देश को बाँटने की साजिश रचने का आरोप लगाया। इसी बयान को लेकर खड़गे ने यह बात कही है।

"लड़की को 20 मिनट देखकर वासना महसूस नहीं करते, तो आप स्वस्थ नहीं हैं": ज़ाकिर नाइक ; जिसे दिग्विजय सिंह ने कहा ‘शांति का मसीहा’, उसे ‘घटिया-घिनौना-बीमार’ कह रहीं सुप्रिया श्रीनेत


शनिवार (12 अक्टूबर) को कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने इस्लामिक कट्टरपंथी और नफरत फैलाने वाले उपदेशक ज़ाकिर नाइक की महिलाओं पर की गई यौन उत्पीड़न संबंधी टिप्पणी को लेकर कड़ी आलोचना की।

सुप्रिया ने ट्वीट किया, “इतनी घटिया घिनौनी सोच, बीमार असल में यह खुद हैं।” उन्होंने ज़ाकिर नाइक की उस ताजा टिप्पणी पर प्रतिक्रिया दी, जिसमें नाइक ने महिलाओं, खासकर एंकरों को लेकर अपमानजनक बातें कही थीं।

यह जानना जरूरी है कि कांग्रेस में शामिल होने से पहले सुप्रिया श्रीनेत ने 17 साल तक बतौर पत्रकार काम किया था, और उन्होंने ईटी नाउ पर न्यूज एंकर के तौर पर भी सेवाएँ दी थीं।

                                 सुप्रिया श्रीनेत के ट्वीट का स्क्रीनशॉट

हाल ही में पाकिस्तान में एक इंटरव्यू के दौरान ज़ाकिर नाइक ने महिलाओं को उन प्रोफेशन्स से दूर रहने की सलाह दी थी, जहां उन्हें कैमरे के सामने आना पड़ता है। नाइक का कहना था कि ऐसा करने से महिलाएँ पुरुषों की वासना का शिकार बनती हैं। इस्लामिक प्रचारक ने कहा, “अगर कोई मर्द महिला एंकर को देख कर वासना महसूस नहीं करता, तो वह मेडिकल रूप से ठीक नहीं है।”

नाइक जो बोल रहा है वही अनवर शेख अपनी एक पुस्तक "Islam Sex And Violence" में लिखा है, लेकिन उनका सन्दर्भ इस्लाम फ़ैलाने से है। दूसरे, अली सीना की किताब "Understanding Mohammad And Muslim" में पढ़ने को मिलता है।     

ज़ाकिर नाइक ने यह भी कहा, “अगर आप 20 मिनट तक किसी लड़की को देखकर वासना महसूस नहीं करते, तो आप स्वस्थ नहीं हैं,” और इस दौरान उन्होंने क़ुरान की आयतों का हवाला दिया।

हाल ही में ज़ाकिर नाइक को पाकिस्तान में तीखी आलोचना झेलनी पड़ी थी, जब उसने स्वतंत्र और अविवाहित महिलाओं को ‘बाज़ारू औरत’ कहा था।

सुप्रिया श्रीनेत की ज़ाकिर नाइक पर की गई आलोचना को कांग्रेस की आधिकारिक राय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, भले ही वह पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। यह ज्यादा से ज्यादा उनकी व्यक्तिगत राय है, क्योंकि नाइक ने उनके पुराने प्रोफेशन (धंधे) को खास तौर पर निशाना बनाया था।

किसी भी अन्य कांग्रेस नेता ने ज़ाकिर नाइक के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की है, भले ही उसकी यौन उत्पीड़न संबंधी टिप्पणियाँ जगजाहिर हों। असल में, पार्टी ने कभी औपचारिक रूप से इस नफरत फैलाने वाले इस्लामी कट्टरपंथी की आलोचना नहीं की।

इसके उलट, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने ज़ाकिर नाइक को ‘शांति का मसीहा’ कहकर उसकी तारीफ की थी।

उन्होंने कहा था, “अस्सलाम वालेकुम। मैंने डॉ. ज़ाकिर नाइक के बारे में बहुत सुना था। अंततः मुझे उनसे मिलने का मौका मिला। मैं खुश हूँ कि वह दुनिया भर में शांति का संदेश फैला रहे हैं।”

दिग्विजय सिंह ने 2012 में अपने भाषण में कहा था, “डॉ. ज़ाकिर नाइक ने सभी धर्मों की किताबें पढ़ी हैं। अब यह जरूरी है कि आपका शांति का संदेश भारत के हर कोने में पहुँचे।”

कांग्रेस, ज़ाकिर नाइक और एक छिपा हुआ रिश्ता

हालाँकि उस समय ज़ाकिर नाइक को भगोड़ा घोषित नहीं किया गया था, लेकिन उसके हिंदू धर्म पर हमला करने वाले और कट्टर इस्लामिक भाषण ऑनलाइन उपलब्ध थे।
इसके बावजूद, मुस्लिम तुष्टिकरण के लंबे इतिहास वाली कांग्रेस पार्टी के नेता दिग्विजय सिंह को ज़ाकिर नाइक की तारीफ करने से कोई हिचक नहीं हुई।
यह जानकर कई लोग चौंक सकते हैं कि ज़ाकिर नाइक की इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (IRF) और राजीव गाँधी चैरिटेबल ट्रस्ट (RGCT) के बीच गहरे संबंध हैं। IRF ने दो बार RGCT को 50 लाख और 25 लाख रुपये का दान दिया है। और RGCT के ट्रस्टी कोई और नहीं बल्कि सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी हैं।