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जहाँ इतिहास में कभी नहीं हुआ किसी का अंतिम संस्कार, भरत ने वही जगह ढूँढ कर की राजा दशरथ की अंत्येष्टि: पुजारी बोले – पहले सब जर्जर था, मोदी-योगी ने बदल दिया

राजा दशरथ समाधि स्थल  जहाँ भगवान राम के वियोग में प्राण त्याग देने वाले राजा दशरथ का हुआ था अंतिम संस्कार
अयोध्या में निर्माणाधीन रामजन्मभूमि के गर्भगृह में 22 जनवरी, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में रामलला की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। इस अवसर पर पूरे देश में दीपावली जैसा माहौल होगा। ऑपइंडिया की टीम दिसंबर 2023 के अंतिम हफ्ते से अयोध्या में है। अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में हम लोगों को न सिर्फ गुमनाम बलिदानी बल्कि विस्मृत किए गए उन स्थलों के बारे में भी बताने का प्रयास कर रहे हैं जो भगवान राम से कहीं न कहीं संबंधित हैं। इन्हीं में से एक स्थान है राजा दशरथ समाधि स्थल।

यहीं पर वनवास गए राम के वियोग में प्राण त्यागने के बाद उनके पिता दशरथ का अंतिम संस्कार हुआ था। शनिवार (30 दिसंबर, 2023) को ऑपइंडिया की टीम ने दशरथ समाधि और उसके आसपास के क्षेत्रों का दौरा किया।

राजा दशरथ अंत्येष्टि स्थल अयोध्या-आज़मगढ़ रोड पर पूरा बाजार क्षेत्र में स्थित है। अयोध्या से इस जगह की लगभग दूरी 12 किलोमीटर है। पुराणों में इस जगह का नाम बिल्वहरि घाट बताया गया है। मुख्य हाइवे से लगभग डेढ़ किलोमीटर अंदर उत्तर दिशा की तरफ बना यह स्थान एक घनी मिश्रित आबादी से गुजरता है। इसी मंदिर के बाद माझा क्षेत्र शुरू हो जाता है। माझा क्षेत्र वह इलाका कहा जाता है जो नदी के बढ़ने पर उसके दायरे में आ जाता है और यहाँ की जमीन रेतीली होती है। मंदिर से सटा हुआ सरयू नदी का विस्तार क्षेत्र है।

                                                राजा दशरथ समाधि स्थल प्रवेश द्वार

जहाँ रखा गया दशरथ का पार्थिव शरीर वहाँ बना है स्मारक

ऑपइंडिया ने पाया कि भगवा रंग में रंगी इस जगह की बाउंड्री की गई है। अंदर एक मंदिर है जिसमें बाकायदा विधि-विधान से पूजा-पाठ होता है। ऊँचाई पर चढ़ कर एक चबूतरानुमा स्मारक बना है। मंदिर के पुजारी व उत्तराधिकारी संदीप दास ने बताया कि जहाँ स्मारक है वहीं राजा दशरथ का पार्थिव शव रखा गया था और उनको मुखाग्नि दी गई थी। संदीप दास ने ऑपइंडिया को यह भी बताया कि तब सरयू नदी की मुख्य धारा मंदिर के ठीक बगल से गुजरती थी। हालाँकि, समय के साथ वह थोड़ी उत्तर दिशा में चली गई। अभी भी बरसात के मौसम में सरयू नदी मंदिर के बगल आ कर बहती है।
                                      राजा दशरथ की दाह संस्कार स्थली पर बना स्मारक
स्मारक के आसपास कई प्राचीन कालीन अस्त्र-शस्त्र रखे हुए हैं। संदीप दास का दावा है कि उन शस्त्रों पर सदियों से जंग नहीं लगा है। स्मारक के ऊपर प्रतीकत्मक तौर पर राम, लक्ष्मण, भारत द्वारा किया गया पिंडदान रखा हुआ है। इसी पर एक शिवलिंग भी बना हुआ है। बकौल पुजारी, राम ही नहीं उनके पूर्वज भी महादेव के भक्त रहे थे। संदीप दास के मुताबिक, अंतिम संस्कार के दौरान राजा दशरथ के पार्थिव शरीर में सिर का हिस्सा उत्तर नदी की तरफ और पैर दक्षिण की तरफ था। पैर की दिशा में स्मारक पर राजा दशरथ के चारों बेटों की चरण पादुकाएँ प्रतीकत्मक तौर पर बनी हुईं हैं।

यहाँ पहले किसी का नहीं हुआ था दाह संस्कार

राजा दशरथ का अंतिम संस्कार वहीं क्यों हुआ ? यह सवाल जब हमने पुजारी संदीप दास से पूछा तो उन्होंने इसकी कथा बताई। उन्होंने बताया कि पिता के देहांत के दौरान राम और लक्ष्मण माँ सीता वनवास काट रहे थे जबकि भरत और शत्रुघ्न अपने ननिहाल में थे। पिता के देहांत की खबर सुन कर भरत और शत्रुघ्न अयोध्या आए। तब राजा के रूप में काम कर रहे भरत ने अपने मंत्रिमंडल की सभा बुलाई। उन्होंने अपने पिता के दाह संस्कार के लिए ऐसी जगह तलाशने के लिए कहा जहाँ उस से पहले इतिहास में किसी और का अंतिम संस्कार न हुआ हो।
पुजारी संदीप दास के मुताबिक राजा भरत और उनके मंत्रिमंडल को ऐसी जगह तलाशने में काफी समय लगा। इस दौरान राजा दशरथ के पार्थिव शरीर को सुरक्षित रखा गया। आखिरकार लम्बी खोजबीन के बाद बिल्वहरि घाट पर वो जगह मिल ही गई जहाँ पहले इतिहास में किसी का भी अंतिम संस्कार नहीं हुआ था। आज जहाँ दशरथ समाधि है वह वही जगह है जहाँ इतिहास और वर्तमान मिला कर सिर्फ राजा दशरथ की ही अंत्येष्टि हुई है। संदीप दास का यह भी दावा है कि वनवास काट कर लंका विजय के बाद भगवान राम भी अपने पिता के अंत्येष्टि स्थल पर गए थे और उन्होंने वहाँ वैदिक विधि-विधान से आवश्यक क्रिया-कलाप किए थे।
                                                       राजा दशरथ की दाह स्थली

मंदिर में मौजूद है भगवान राम की वंशावली

ऑपइंडिया की टीम ने जब मंदिर का भ्रमण किया तो पाया कि परिसर में शनिदेव का एक अन्य मंदिर भी मौजूद है। मंदिर की दीवालों पर रामचरितमानस और रामायण के साथ विभिन्न देवी-देवताओं के चालीसा की पट्टिकाएँ मौजूद हैं। इन्ही पट्टिकाओं में भगवान राम की वंशावली भी दिखी। यह वंशावली भगवान ब्रह्मा से शुरू हुई है और राम पर खत्म हुई है। भगवान राम की वंशावली में उनके पहले क्रमशः दशरथ, अज, रघु, दीर्घवाहु, खष्ट्रवाड, विश्वास, विश्वसह, लिविल, दशरथ, मूलक, अश्मक, सौदास, सुदास, सर्वकाम, ऋतुपर्ण, अयुतायु, सिधुदीप, अम्बरीश, नाभाग, श्रुति, सुहोत्र, भगीरथ, दिलीप, अंशुमान, असमंजस, सगर, बाहु, वृक, रुरुक, विजय, चच्चू, हरीता, रोहिताश्व, हरिश्चंद्र, सत्यव्रत, त्र्यारुणि, त्रिधन्वा, सुमन, हरतस्य, हयश्व, पृषदश्व, अनरष्य, त्रसददस्यु, पुरुकुत्स्य, अमित, निकुम्भ, हर्यश्व, दद्धाश्व, कुवलयाश्व, वृहदश्व, शाश्वत, युवनाश्व, चांद्र, विष्टराश्व, पृथु, अनेनाः, कुकुत्स्थ, पुरंजय, विकुक्षि, ईक्षयाकु, वैवस्वत, विवस्वान, कश्यप मरीचि और भगवान ब्रह्मा के नाम हैं।
                                                    भगवान राम की वंशावली
इस पट्टिका के मुताबिक सूर्यवंश का आरम्भ शुरू से क्रम नंबर (पीढ़ी संख्या) 5 पर मौजूद राजा वैवस्वत के समय में हुआ। वहीं इसी सूची के मुताबिक रघुकुल की शुरुआत क्रम संख्या (पीढ़ी नंबर) 60 पर मौजूद राजा रघु के काल से हुई। राजा रघु को सूर्यवंश का सबसे प्रतापी राजा माना गया है। उनके ही नाम का जिक्र कई बार ग्रंथों में भी आया है। इसी नाम के आधार पर ‘रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाई’ चौपाई बनाई गई है।

जो काम योगी सरकार ने किया वो पहले कभी नहीं हुआ

मंदिर के पुजारी संदीप दास ने हमें बताया कि उनकी कई पीढ़ियाँ राजा दशरथ की अंत्येष्टि स्थल की रखरखाव और पूजा-पाठ करती आ रहीं है। स्थान को पवित्र और पौराणिक बताते हुए उन्होंने पिछली सरकारों द्वारा इसकी उपेक्षा का आरोप लगाया। संदीप दास का कहना है कि दशरथ समाधि के लिए जो काम मोदी और योगी सरकार ने कर दिया वो पहले करना तो दूर किसी ने सोचा भी नहीं था। पहले मंदिर में न सिर्फ पर्याप्त उजाले और पानी की दिक्कत थी बल्कि आने और जाने के लिए सड़क बेहद जर्जर हालत में थी।
                                                  मंदिर के पुजारी संदीप दास
अब मंदिर परिसर में एक छोटी सी धर्मशाला आदि बनवाई गई है। यह जगह मांगलिक आयोजनों के साथ धार्मिक सभा और कोई विकल्प न होने पर यात्रियों के ठहरने में काम आ रही है। फिलहाल दशरथ समाधि के बगल से गुजर रही सड़क जल्द ही चौड़ी की जाएगी। संदीप का कहना है कि वर्तमान सरकार मंदिर का जीर्णोद्धार करवाएगी और इसे भव्यता देगी। संदीप दास ने भावुक हो कर मंदिर परिसर से मोदी और योगी को आशीर्वाद भी दिया।
बताते चलें कि ऑपइंडिया की टीम दिसंबर 2023 के अंतिम सप्ताह से अयोध्या में है। यहाँ से हम आपको न सिर्फ रामजन्मभूमि आंदोलन के गुमनाम बलिदानी, विस्मृत घटनाएँ बल्कि अयोध्या के कई अनसुने लेकिन पवित्र स्थानों के बारे में विस्तार से बताएँगे। पिछली 2 रिपोर्ट में हमने पाठकों को रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के गुमनाम बलिदानियों के परिवार से परिचित करवाया है। इस कड़ी की अगली खबर जल्द ही प्रकाशित होगी।
                                                                                                                        (साभार)

‘हम जानते हैं क्यों दाखिल की है ये याचिका, शुक्र मनाओ जुर्माना नहीं लगा रहे’: सुप्रीम कोर्ट

                                                      राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और नया संसद भवन
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (26 मई 2023) को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन कराने के लिए लोकसभा सचिवालय को निर्देश देने की माँग वाली याचिका को खारिज कर दिया। इसके साथ ही याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि शुक्र मनाओ पर कोर्ट जुर्माना नहीं लगा रहा है।

जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता सीआर जया सुकिन के पास इस तरह की याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा कि उन्हें आभारी होना चाहिए कि अदालत उन पर जुर्माना नहीं लगा रही है।

बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा, “आपका उद्देश्य क्या है? हम जानते हैं कि आपने ये याचिका क्यों दायर की है। हम अनुच्छेद 32 के तहत हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं।” इस पर याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस लेने की कोर्ट से अनुमति माँगी, कोर्ट ने उसे इसकी अनुमति नहीं दी।

अदालत में केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “याचिका वापस लेने की अनुमति देने से उन्हें उच्च न्यायालय जाने की स्वतंत्रता मिलेगी। ये न्यायसंगत नहीं है। अदालत को इस पर ध्यान देना चाहिए।” कोर्ट ने कहा, “काफी समय तक बहस करने के बाद याचिकाकर्ता इसे वापस लेने की माँग कर रहा है, लेकिन हम याचिका को खारिज करते हैं।”

दरअसल, अधिवक्ता सीआर जया सुकिन द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि 18 मई 2023 को लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी बयान और लोकसभा के महासचिव द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए जारी किया गया निमंत्रण भारतीय संविधान का उल्लंघन है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 79 का हवाला देते हुए कहा गया है कि राष्ट्रपति संसद के अभिन्न अंग हैं। इसलिए उन्हें उद्घाटन से दूर नहीं रखा जाना चाहिए।

याचिका में कहा गया है, “राष्ट्रपति भारत के पहले नागरिक हैं और संसद की संस्था के प्रमुख हैं। इसलिए देश के बारे में सभी महत्वपूर्ण निर्णय भारतीय राष्ट्रपति के नाम पर लिए जाते हैं। संसद में राष्ट्रपति और दोनों सदन- राज्यसभा और लोकसभा शामिल हैं। राष्ट्रपति के पास संसद को बुलाने और सत्रावसान करने या लोकसभा को भंग करने का अधिकार है।”

बताते चलें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई 2023 को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस समारोह का कॉन्ग्रेस सहित 21 विपक्षी दलों ने बहिष्कार किया है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री द्वारा संसद भवन का उद्घाटन करना राष्ट्रपति का अपमान है।

भारत की स्वतंत्रता से जुड़ा है नंदी: नई संसद में स्थापित होगा Sengol, भारत का वह इतिहास जो नेहरू ने सत्ता पाते ही भुला दिया

चोल राजा शिवभक्त हुआ करते थे, इसीलिए 'सेंगोल' में ये भी साफ़ झलकता है (फाइल फोटो)
भाजपा विरोधी कुर्सी की भूखी और तुष्टिकरण पर चलने वाली छद्दम धर्म-निरपेक्ष अपनाने वाली 19 पार्टियों द्वारा संसद के नए भवन के प्रवेश कार्यक्रम का बहिष्कार करने से अपनी सनातन विरोधी मानसिकता को जाहिर कर दिया है। आने वाले चुनावों इन सभी सनातन विरोधियों को जनता को धूल चटानी होगी। भाजपा को वोट नहीं देना चाहते कोई बात नहीं, NOTA को दे दो वोट, लेकिन इन सनातन विरोधियों को नहीं। 28 मई को भारत में चोल साम्राज्य की पुनः वापसी होने से तुष्टिकरण के कारण धूमिल हुई भारतीय संस्कृति उजागर होगी। यह देश का दुर्भाग्य है कि अधिकांश भारतवासियों को चोल साम्राज्य का ज्ञान नहीं। 

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने जानकारी दी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार (28 मई, 2023) को संसद के नए भवन के लोकार्पण के शुभ अवसर पर भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर पवित्र ‘सेंगोल’ को ग्रहण कर नए भवन में इसकी स्थापना करेंगे। साथ ही उन्होंने ‘सेंगोल’ को न्याय और निष्पक्षता का प्रतीक बताते हुए एक वीडियो भी शेयर किया। आप ज़रूर सोच रहे होंगे कि ये ‘सेंगोल’ क्या है और भारत सरकार से इसका क्या संबंध है।

‘सेंगोल’ का इतिहास जानने के लिए हमें सबसे पहले स्वतंत्रता के समय जाना होगा, जब भारत आज़ादी की लड़ाई जीत चुका था और सत्ता के हस्तांतरण के लिए कार्यक्रम होने वाला था। उस समय तमिलनाडु ‘मद्रास प्रेसिडेंसी’ के अंतर्गत आता था। पीयूष गोयल ने जो वीडियो शेयर किया, उसमें उस समय कुछ कलाकारों को दिल्ली के लिए कूच करने की तैयारी करते हुए देखा जा सकता है। उन्हें एक महत्वपूर्ण कार्य के लिए बुलाया गया था।

सत्ता के हस्तांतरण को पवित्रता प्रदान करते और उसकी वैधता स्थापित करने के लिए इन लोगों को बुलाया गया था। सत्ता एक शासक से दूसरे के पास जा रही थी, विदेशियों से स्वदेशियों के पास। भारत के अंतिम वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन को अंग्रेजी सरकार की तरफ से सत्ता हस्तांतरण का कार्य पूरा करने के लिए भेजा गया था। इस दौरान उनके मन में सवाल था कि इस कार्यक्रम, या इस क्षण को कैसे प्रदर्शित किया जाना चाहिए?

हाथ मिलाने से भी काम चल सकता था, लेकिन वो इसे एक विशेष प्रतीकात्मकता देना चाहते थे। इस दौरान उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी ये सवाल पूछा। जवाहरलाल नेहरू खुद को सेक्युलर दिखाने में विश्वास रखते थे और शायद यही कारण रहा होगा कि जब लॉर्ड माउंटबेटन ने उनसे पूछा कि सत्ता हस्तांतरण की भारतीय परंपरा क्या है, तो उन्हें कोई जवाब नहीं सूझा। उन्होंने चक्रवर्ती राजगोपालचारी से इस संबंध में प्रश्न किया, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति की गहरी समझ रखते थे।

राजाजी तमिलनाडु से ताल्लुक रखते थे और भारतीय संस्कृति-सभ्यता को लेकर उनके ज्ञान का सभी सम्मान करते थे। उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की प्रतीकात्मकता की समस्या का हल भी इतिहास में निकाला। चोल राजवंश में, जो भारत के सबसे प्राचीन और सबसे लंबे समय तक चलने वाला शासन था। उस समय एक चोल राजा से दूसरे चोल राजा को ‘सेंगोल’ देकर सत्ता हस्तांतरण की रीति निभाई जाती थी। ये एक तरह से राजदंड था, शासन में न्यायप्रियता का प्रतीक।

चोल राजवंश भगवान शिव को अपना आराध्य मानता था। इस ‘सेंगोल’ को राजपुरोहित द्वारा सौंपा जाता था, भगवान शिव के आशीर्वाद के रूप में। इस पर शिव की सवारी नंदी की प्रतिमा भी है। इसी तरह के समारोह और रिवाज की सलाह राजाजी ने दी, जिस पर नेहरू तैयार हो गए। इसके बाद राजाजी ने मयिलाडुतुरै स्थित ‘थिरुवावादुठुरै आथीनम’ से संपर्क किया, जिसकी स्थापना आज़ादी से 500 वर्ष पूर्व हुई थी। मठ के तत्कालीन महंत अम्बालवाना देशिका स्वामी उस समय बीमार थे, लेकिन उन्होंने ये कार्य अपने हाथ में लिया।
उन्होंने ‘सेंगोल’ के निर्माण के लिए ‘वुम्मिडी बंगारू चेट्टी’ के आभूषण निर्माताओं को दिया। ‘सेंगोल’ के ऊपर नंदी का होना शक्ति, न्यायप्रियता और सत्य का प्रतीक है। वुम्मिडी एथिराजुलू ने ‘सेंगोल’ के निर्माण के बारे में जानकारी देते हुए बताया था कि उनके पास ‘सेंगोल’ की ड्रॉइंग लाई गई थी। ये गोल था और साथ में एक पोल का आकार था। उन्हें काफी सावधानी और उच्च गुणवत्ता के साथ इसे बनाने को कहा गया और बताया गया कि ये बहुत ही महत्वपूर्ण जगह जाने वाला है।
उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता के समय वो लोग इसका निर्माण करने में काफी खुश थे। समारोह के आयोजन के लिए महंत ने अपने शिष्य कुमारस्वामी, एक बड़े गायक और ‘नादसुर’ विशेषज्ञ को दिल्ली भेजा। 14 अगस्त, 1947 की रात को कुमारस्वामी श्रीला श्री कुमारस्वामी तम्बीरान ने ‘सेंगोल’ लॉर्ड माउंटबेटन को दिया। इसे जल से पवित्र किया गया था। इस दौरान तमिल संत ‘कोलारु पथिगम’ का गान किया गया, जो शैव कविता ‘थेवारम’ का हिस्सा है।
इसकी रचना तमिल कवि तिरुगन संबंदर ने की थी। संयासियों ने नेहरू को पीतांबर ओढ़ाया और मंत्रोच्चारण किया गया। इस दौरान जो पंक्ति पढ़ी गई, उसका अर्थ है – ‘हमारा आदेश है कि भगवान के अनुयायी राजा उसी तरह से शासन करेंगे, जैसे स्वर्ग के शासक।’ ये समारोह भारत के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से के संगम का भी प्रतीक बना। डॉ राजेंद्र प्रसाद भी उस सामरोह में मौजूद थे। अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘Time’ ने भी इस संबंध में खबर प्रकाशित की थी।

बिहार : लाचार नीतीश, गजब बेइज्जती, एक अस्पताल के उद्घाटन में फीता दो और कैंची दो


प्रधानमंत्री बनने की लालसा में किसी नेता को इतना बेइज्जत होते नहीं देखा। और सुशासन की बात करने वाले नितीश कुमार को इतनी बेइज्जती बर्दाश्त करनी पड़ रही है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक तस्वीर बिहार के महगठबंधन की सरकार की ढीली गांठ और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बेबसी की कहानी बयां कर रही है। इस तस्वीर में एक अस्पताल के उद्घाटन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव अलग-अलग फीता काटते नजर आ रहे हैं। यह तस्वीर बता रही है कि नीतीश की स्थिति धोबी के कुत्ते जैसी हो गई है, जो न घर का होता है, न घाट का। आज बिहार में महागठबंधन की सरकार का प्रमुख होने के बावजूद नीतीश कुमार सिर्फ मुखौटा है। तेजस्वी अपने पलटू चाचा को
 अकेले क्रेडिट लेने नहीं दे रहे हैं। इस तस्वीर के वायरल होने के बाद नीतीश कुमार पर बीजेपी नेताओं के साथ ही अन्य लोगों ने जमकर तंज कसा है।

 नीतीश की लाचारी और आत्मसमर्पण की तस्वीर

 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने 16 सितंबर, 2022 को भोजपुर जिले के कोइलवर में बने मेंटल हॉस्पिटल के भवन का विधिवत उद्घाटन किया। इस दौरान दो-दो फीता काटा गया। एक को मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार और दूसरे को उपमुख्यमंत्री तेजस्‍वी यादव ने काटा। गौर करने वाली बात ये है कि ऊपर का फीता तेजस्‍वी यादव ने काटा और नीचे का फीता नीतीश कुमार ने। आमतौर पर उद्घाटन के लिए एक ही फीता लगाया जाता है, जिसे उद्घाटन करने वाला काटता है। तस्वीर में उद्घाटन के दौरान नीतीश कुमार के चेहरे पर लाचारी और मायूसी को स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। तस्वीर से लगता है कि नीतीश कुमार ने तेजस्वी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है।

 इस उद्घाटन समारोह में जिस तरह से फीता काटा गया, उससे अब सवाल उठने लगे हैं।

अस्पताल के उद्घाटन की तस्वीर से उठे सवाल 

आखिर नीतीश कुमार इतने लाचार मुख्‍यमंत्री हो गए हैं कि उन्‍हें एक अस्‍पताल के दो फीते कटवाने की जरूरत पड़ गई है?

क्या नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने के लिए एनडीए से अलग होकर तेजस्वी के सामने आत्मसमर्पण कर चुके हैं ?

क्या महागठबंधन की सरकार में नीतीश कुमार सिर्फ मुखौटा है। असली मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव हैं?

जब अपने ही राज्य बिहार में नीतीश कुमार इतने लाचार हैं, तो वे प्रधानमंत्री बनने पर कितने लाचार होंगे?

क्या देश एक लाचार व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाना चाहेगा, जो अपने घटक दलों को देश को लूटने की खुली छूट देगा?

महागठबंधन के दूसरे दलों को बुरा लगा होगा- संजय जायसवाल

इन तमाम सवालों ने बीजेपी नेताओं को नीतीश कुमार पर हमले का मौका दे दिया है। बीजेपी के प्रदेश अध्‍यक्ष संजय जायसवाल ने नीतीश कुमार और जेडीयू-आरजेडी की महागठबंधन वाली सरकार पर तंज कसा कि आगे से नीतीश कुमार अब किसी सार्वजनिक पोखर, तालाब और शौचालय का उद्घाटन करें तो सात रिबन की व्यवस्था करें ताकि उनके गठबंधन के अन्‍य सहयोगियों को बुरा न लगे। उन्‍होंने कहा कि नीतीश कुमार ने जो संदेश दिया वो वाकई जीतन राम मांझी, माले और मदन मोहन झा को बुरा लगने वाला होगा, क्‍योंकि उन्‍हें फीता काटने का मौका नहीं दिया गया। पहला छह फीता उनके सहयोगी दल के लोग काट लें उसके बाद सातवां फीता अवश्‍य नीतीश कुमार को काटना चाहिए।

सोशल मीडिया में तंज- इसे कहते हैं नरकों में ठेलम ठेल

सोशल मीडिया पर यह तस्वीर वायरल होने के बाद लोग नीतीश कुमार पर जमकर मजे ले रहे हैं। कोई इस उद्घाटन को इस दुनिया का आठवां अजूबा बता रहा है तो कोई कह रहा है कि अभी तक तो एक ही फीता और कैंची से उद्घाटन देखे थे, अब दो दो फीता और कैंची से भी उद्घाटन देख लीजिए। लोग नीतीश कुमार पर कहावत कहते नजर आ रहे हैं- धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का”। प्रधानमंत्री बनने की चाहत ने अधूरा मुख्यमंत्री बना दिया। वहीं जेडीयू से अलग हो चुके अजय आलोक ने भी दो फीते काटने पर तंज कसा। उन्‍होंने ट्वीट कर लिखा, “ऐसा उद्घाटन किसी ने नहीं देखा होगा, दो फ़ीता, दो कैंची और CM का फ़ीता नीचे, इसे कहते हैं नरकों में ठेलम ठेल”।