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केरल : स्कूलों में जुम्बा डांस के विरोध में उतरे इस्लामी संगठन, बताया दीन के खिलाफ: बैकफुट पर वामपंथी सरकार

                              जुम्बा डांस क्लास की प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो साभार : Grok)
केरल में शिक्षा विभाग के जुम्बा डांस शुरू करने पर इस्लामी कट्टरपंथी भड़क गए हैं। इस्लामी कट्टरपंथी इसे ‘नैतिक मूल्यों के खिलाफ’ बता रहे हैं। इस्लामी कट्टरपंथियों का कहना है कि लड़के-लड़कियों का एक साथ नाचना, घुलना-मिलना और कम कपड़े पहनना बिल्कुल गलत है।

वहीं वामपंथी सरकार ने दावा किया है कि यह फैसला छात्रों में तनाव कम करने और नशीली दवाओं के खिलाफ अभियान का हिस्सा है।

इस्लामी कट्टरपंथी जुंबा को लेकर आक्रोश में

रिपोर्ट के अनुसार, विजडम इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन के महासचिव टीके अशरफ ने साफ कहा, “मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता, और मेरा बेटा इसमें शामिल नहीं होगा।” अशरफ ने जोर देकर कहा कि बच्चों को स्कूल में ‘गुणवत्तापूर्ण शिक्षा’ मिलनी चाहिए, न कि ‘लड़के-लड़कियाँ कम कपड़ों में एक साथ नाचें’ वाली संस्कृति। अशरफ ने कहा कि मैं एक शिक्षक हूँ इसलिए इसे लागू नहीं करने दूँगा।
अपनी एक फेसबुक पोस्ट में टीके अशरफ कहते हैं कि नशे जैसी गंभीर समस्याओं का हल सिर्फ डांस नहीं हो सकता। अशरफ ने यह भी सवाल उठाया कि क्या कोई वैज्ञानिक रिसर्च यह साबित कर सकता है कि जुंबा नशे के इस्तेमाल को कम करता है। इस्लामी कट्टरपंथियों का कहना है कि यह पहल डीजे पार्टियों और पश्चिमी नाइटलाइफ को बढ़ावा देगी।

समस्त केरल जामियातुल उलमा के नेता नस्सर फैजी कूड़ाथई ने जुम्बा को ‘अनुचित’ और ‘छात्रों के अधिकारों का उल्लंघन’ बताया। उन्होंने कहा, “जुम्बा कम से कम कपड़ों में एक साथ नाचने का तरीका है।”
समस्त केरल सुन्नी युवाजना संगम (SYS) के राज्य सचिव अब्दुस्समद पूकोटूर ने इसे सीधे तौर पर ‘नैतिक मूल्यों के खिलाफ’ बताया।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की छात्र शाखा मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन (MSF) ने भी विरोध किया। MSF के राज्य अध्यक्ष पीके नवास ने सवाल किया कि क्या सरकार ने इसे लागू करने से पहले कोई अध्ययन किया था।

सरकार का पलटवार

केरल की उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदु ने जुम्बा का बचाव किया। बिंदु ने कहा, “हम 21वीं सदी में हैं, यह 2025 है। हम 19वीं सदी या आदिम मध्ययुगीन काल में नहीं रह रहे हैं। सभी को समय के अनुसार सोचना चाहिए।” सामान्य शिक्षा विभाग ने भी जुम्बा का समर्थन किया है।

बयानबाजी और टकराव

जुम्बा विवाद पर इस्लामी कट्टरपंथी और CPM के बीच शब्दों का युद्ध छिड़ गया है। KNM नेता हुसैन मादावूर ने मंत्री आर बिंदु के बयान की आलोचना की। हुसैन ने कहा कि जुम्बा को स्कूलों में बिना किसी वैज्ञानिक आधार के थोपा जा रहा है।
हुसैन ने SFI सहित वामपंथी संगठनों को चेतावनी दी कि अगर वे अपना रुख नहीं बदलते, तो जनता उन्हें बदल देगी। हुसैन ने कहा, “प्रयास आदिम युग में लौटने का है, जब हम बिना कपड़ों के रहते थे।” हुसैन ने ‘कम कपड़े पहनकर अश्लील तरीके से नाचने’ को गलत बताया।
मंत्री बिंदु ने कहा था, “जुम्बा बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है। स्कूलों में जुम्बा कराने में क्या गलत है?”

‘अगर हम लोग (मुस्लिम) खड़े हुए तो आप लोगों (हिंदुओं) को चलने का रास्ता नहीं मिलेगा’: हिजाब वाली ने वक्फ कानून पर धमकाया, देखिए Video

वक्फ संशोधन एक्ट-2025 के खिलाफ जितने भी लोग सड़क पर हैं क्या किसी ने अपने आकाओं से पूछा कि तुमने वक़्फ़ की कितनी जमीन पर कब्ज़ा कर रखा है? उस जमीन का कितना किराया देते हो और उसके पलटे कितने करोड़ हर महीने कमा रहे हो?    
वक्फ संशोधन एक्ट-2025 के खिलाफ एक मुस्लिम महिला का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वीडियो में महिला ने चेतावनी दी कि अगर दुनिया भर के मुस्लिम एकजुट हो गए, तो हिंदुओं के पास खड़े होने की जमीन भी नहीं बचेगी।

हिजाब पहनी महिला ने कहा, “पूरी दुनिया में मुसलमान से ज्यादा तादात किसी की नहीं है। अगर हम लोग खड़े हुए, तो आप लोगों (हिंदुओं) को चलने का रास्ता नहीं मिलेगा इंसाल्लाहताला.. जितनी जल्दी हो सके, आप अपने वक्फ बिल को वापस लीजिए।”

वक्फ (संशोधन) एक्ट को अप्रैल 2025 में संसद ने पारित किया। यह एक्ट वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने और गैर-मुस्लिम सदस्यों को बोर्ड में शामिल करने जैसे सुधार लाता है। लेकिन कई मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने इसे मुस्लिम अधिकारों पर हमला बताया।

इस कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल में लगातार हिंसा हो रही है। हिंदुओं को निशाना बना रहे हैं। मंदिरों, हिंदुओं की संपत्तियों, वाहनों को निशाना बनाया जा रहा है, तो घर में घुसकर पिता-बेटे की हत्या कर दी गई।

कनाडा के मंदिर में पुजारी की ससम्मान वापसी, खालिस्तानी हमले के बाद हिंदू सभा ने हटाया था: ‘बटेंगे तो कटेंगे’ वाला वीडियो हुआ था वायरल


कनाडा के ब्रैम्पटन के हिन्दू सभा मंदिर के पुजारी राजिंदर प्रसाद की बर्खास्तगी को वापस ले लिया गया है। उन्हें मंदिर की प्रबन्धक हिन्दू सभा ने ससम्मान वापस पुजारी के तौर पर नियुक्त किया है। मंदिर सभा ने कहा है कि उसने पहले राजिंदर प्रसाद को हटाया था लेकिन अधिक जानकारी सामने आने के बाद वह उन्हें वापस नियुक्त कर रही है।

पंडित राजिंदर प्रसाद को 6 नवम्बर, 2024 को हिन्दू सभा ने यह कहते हुए हटाया था कि उन्होंने बिना अनुमति के एक प्रदर्शन में भाग लिया। इससे पहले उनका खालिस्तानियों के विरुद्ध एकजुट होने की बात करने वाला एक वीडियो भी वायरल हुआ था। उनके हटाए जाने के बाद बाद हिन्दुओं ने आपत्ति जताई थी।

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कनाडा : पाखंडी हिंदू सभा ने उस मंदिर के पुजारी राजेंद्र प्रसाद को क्यों हटाया जिसे खालिस्तानिय

पुजारी राजिंदर प्रसाद के वापस नियुक्त किए जाने पर कनाडा में हिन्दुओं के लिए काम करने वाले संगठन HCF ने प्रसन्नता जताई है।

कर्नाटक में कौन करेगा निवेश? कन्नड़ के नाम पर बेंगलुरु में हिंसा: दुकानों पर हमले, उखाड़ रहे बिलबोर्ड…

बेंगलुरु में उखाड़े गए अंग्रेजी बोर्ड (चित्र साभार: @nabilajamal_ & @harishupadhya/X)
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार में क्षेत्रवाद और भाषाई अतिवाद तेज़ी से बढ़ता हुआ दिख रहा है। बुधवार (27 दिसम्बर, 2023) को इसकी हद हो गई जब कथित कन्नड़ ने कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में दुकानों पर हमला बोल कर कई जगह उनके बिलबोर्ड कन्नड़ में ना लिखे होने के कारण क्षतिग्रस्त कर दिए और खूब उत्पात मचाया।

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु की बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका के आयुक्त तुषार गिरी नाथ के एक फैसले के कारण बवाल मचा हुआ है। तुषार गिरी नाथ का कहना है कि बेंगलुरु की सभी दुकानों, शॉपिंग मॉल और अन्य सभी प्रतिष्ठानों को अपने दुकान के नाम के बोर्ड 60% हिस्सा कन्नड़ भाषा में लिखना होगा। ऐसा ना करने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

इसके लिए तुषार गिरी नाथ ने 15 दिनों का समय दिया है। हालाँकि, कन्नड़ भाषा के लिए संघर्ष करने का दावा करने वालों ने इसे लेकर आज ही कोहराम मचा दिया। कन्नड़ क्षेत्रवाद का दावा करने वाले एक समूह कर्नाटक रक्षणा वेदिके ने बेंगलुरु में जम कर उत्पात मचाया।

लाल और पीले साफे पहने इसके कथित कार्यकर्ताओं ने बेंगलुरु में तमाम प्रतिष्ठानों के बिलबोर्ड उखाड़ दिए। अंग्रेजी में लिखे दिखने वाले अधिकांश बिलबोर्ड को इन्होंने उखाड़ा और दुकानों में तोड़फोड़ की। इस दौरान राज्य की पुलिस देखती रही और इन्हें रोक नहीं पाई।

इस गुंडागर्दी के अब वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। वायरल वीडियो में दिखता है कि मात्र छोटी दुकानों को ही नहीं बल्कि हर प्रकार के प्रतिष्ठान को निशाना बनाया गया। इसमें स्टारबक्स कॉफ़ी, थर्ड वेव कॉफ़ी और अन्य कई ब्रांड के स्टोर पर जाकर तोड़फोड़ की। ‘कर्नाटक रक्षणा वेदिके’ के कार्यकर्ताओं ने इस दौरान प्रतिष्ठानों के मालिकों को धमकाया भी।

बेंगलुरु में हुई आज तोड़फोड़ को लेकर कई लोग सोशल मीडिया पर रोष प्रकट कर रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसी हिंसा में कोई राज्य में निवेश करने क्यों आएगा? वहीं कर्नाटक पुलिस ने कुछ बेकाबू प्रदर्शनकारियों को हिरासत में भी लिया है।

कुछ दिन पहले भी इन कार्यकर्ताओं द्वारा कई दुकानदारों को परेशान करने के वीडियो सामने आए थे। इन्होंने गाड़ियों पर स्पीकर लगा कर दुकान पर कन्नड़ में बिलबोर्ड लगाने को कहा था। इसके बाद अब इन्होंने तोड़फोड़ की।

कर्नाटक चुनाव के समय भी कन्नड़ भाषा सीखने का मुद्दा काफी उठाया गया था। इस दौरान कई ऐसे वीडियो भी सामने आए थे जिनमें कन्नड़ ना बोलने वालों को सड़क पर रोक कर परेशान किया गया था। अब इस मामले ने दोबारा जोर पकड़ लिया है।

ईरान : ‘तानाशाह को मौत दो’: हिजाब विरोधी प्रदर्शन में महिलाओं का गुस्सा फूटा

                ईरान में हिजाब विरोधी प्रदर्शन में मुल्क के सुप्रीम लीडर अली ख़ामेनेई के खिलाफ भी नारेबाजी
ईरान में हिजाब न पहनने के कारण पुलिस हिरासत में ली गई एक महिला की मौत हो गई, जिसके बाद हजारों की संख्या में महिलाएँ विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। इस महिलाओं ने इस्लामी मुल्क के सुप्रीम लीडर अली ख़ामेनेई को तानाशाह बताते हुए उसकी मौत की भी दुआ की और इससे संबंधित पोस्टर लहराए। बौखलाई ईरान सरकार ने भारी प्रदर्शनों को देखते हुए इंस्टाग्राम का एक्सेस रोक दिया है। अब तक इन प्रदर्शनों में 7 लोग मारे जा चुके हैं। महिलाओं के साथ कुछ पुरुष भी सड़कों पर हैं।

ईरान ने इंस्टाग्राम को अपने देश में ब्लॉक कर दिया है। 22 वर्षीय माशा अमिनी की मौत के बाद ये प्रदर्शन भड़के हैं। ईरान की मोरालिटी पुलिस ने महिला को ‘अनुचित वस्त्र’ पहनने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। वैश्विक प्रतिबंधों से जूझते इस मुल्क में मानवाधिकार के लिए अब माँग जोर पकड़ रही है। ईरान के एक मंत्री ने ‘सुरक्षा कारणों’ का हवाला देते हुए इंटरनेट तक बंद करने की धमकी दे डाली। बाद में कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया था।

वहीं इस्लामी मुल्क के सुप्रीम लीडर अली ख़ामेनेई ने 1980-88 के बीच चले ईरान-ईराक युद्ध की बरसी बनाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में भाषण देते समय इन प्रदर्शनों का कोई जिक्र नहीं किया। इससे पहले ईरान में इस तरह के विरोध प्रदर्शन 2019 में देखने को मिले थे, जब सरकार ने गैस का दाम बढ़ा दिया था। सुरक्षा बल लगातार दमनकारी तरीके आजमा रहे हैं। प्रदर्शन के दौरान 23 साल की उर्मिया और16 साल की पीरंसहर को पुलिस ने गोली मार दी।

ईरान का प्रशासन इन मौतों की पुष्टि नहीं कर रहा है। ईरान के प्रदर्शनकारी अब एक जगह पर जुट रहे हैं और पुलिस के आने से पहले वहाँ से निकल जाते हैं, ताकि क्रूरता का उन्हें सामना न करना पड़े। तेहरान यूनिवर्सिटी के पश्चिमी इलाके में कई युवाओं को पुलिस ने पीटा। 450 लोग इन प्रदर्शनों में पुलिसिया कार्रवाई से घायल हुए हैं। ईरान सरकार ‘स्वच्छ जाँच’ की बात कह रही है, लेकिन प्रदर्शनकारियों की माँग इतनी सी नहीं है। उधर इजरायल की महिलाओं ने ईरान की प्रदर्शनकारियों को समर्थन दिया है।

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ईरान : खुली सड़कों पर हिजाब जलाए, बाल काट कर फेंके: महसा अमिनी की हत्या के बाद औरतें भड़कीं

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ईरान : खुली सड़कों पर हिजाब जलाए, बाल काट कर फेंके: महसा अमिनी की हत्या के बाद औरतें भड़कीं

सोशल मीडिया पर ऐसी वीडियोज सामने आई हैं जिसमें औरतें खुले बाल लेकर अपने हिजाब को जला रही हैं और कुछ अपने बालों को काट कर घटना का विरोध कर रही हैं। ईरानी महिला अपने बाल काट कर और हिजाब जलाकर महसा अमिनी की हत्या पर अपना गुस्सा दिखा रही हैं। पत्रकार अलीनेजाद बताती हैं कि 7 की उम्र से अगर ईरान में लड़कियाँ अपने बाल को न ढकें तो उन्हें स्कूल नहीं जाने दिया जाता और कोई जॉब नहीं मिलती। ईरान में औरतें इस लैंगिक भेदभाव की व्यवस्था से तंग आ गई हैं।

अशोक गहलोत ‘मुस्लिमों का गुलाम’, जैसे मेरे भाई को काटा, वैसे उसको भी काटो: कन्हैया लाल की बहन : देखिए Video

राजस्थान के सीएम गहलोत पर बिफरी कन्हैया लाल की बहन
राजस्थान के उदयपुर में 28 जून 2022 को कन्हैया लाल की निर्मम हत्या कर दी गई थी। इसके बाद 30 जून को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पीड़ित परिवार से मुलाकात की थी। इस बीच सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें गहलोत को ‘मुस्लिमों का गुलाम’ बताया जा रहा है। यह आरोप लगाने वाली कन्हैया लाल की बहन हैं।

रिपब्लिक टीवी से बातचीत में कन्हैया लाल की बहन ने ये भी कहा कि जिस तरह उनके भाई को मारा गया है, उसी तरह उनके हत्यारों को भी मारा जाना चाहिए। यह वीडियो मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद द्वारा कन्हैया लाल की बर्बर हत्या किए जाने के अगले दिन का है।

रिपब्लिक वर्ल्ड के यूट्यूब चैनल पर 5 मिनट 24 सेकेंड का यह वीडियो 29 जून को पब्लिश हुआ है। इस वीडियो के 25वें सेकेंड पर आप कन्हैया लाल की बहन को कहते सुन सकते हैं, “जैसे मेरे भाई को काटा है, वैसे उसको भी काटो। मेरे परिवार में 2 भतीजे और भाभी हैं उन्हें इंसाफ दिलाओ।” इसी वीडियो के 50वें सेकेण्ड पर मृतक की बहन कहती है, “हिन्दू की मौतें आए दिन हो रही है। फिर भी हिन्दू को कुछ नहीं सुन रहा। मुसलमान की इतना सुन रहा। मुसलमान को जरा सा भी कुछ होता है तो उनके लिए सरकार खड़ी रहती है।”

वीडियो में कन्हैया की बहन आगे कहती है, “जिसने काटा उसे भी काटो तब लगेगा कि हिन्दू के लिए सरकार है, वरना हिन्दू के लिए सरकार नहीं है।” इसके बाद पत्रकार ने सवाल किया कि पीड़ित परिवार मुख्यमंत्री गहलोत से क्या कहना चाहेगा? इसके जवाब में कन्हैयालाल की बहन कहती है, “गहलोत तो मुसलमान का गुलाम है एक नंबर का।” एक अन्य महिला ने कहा कि हत्या के बदले हमें हत्या ही चाहिए।

इस मामले में राजस्थान पुलिस कन्हैया लाल को मिल रही धमकियों को लेकर गंभीरता नहीं दिखाने के कारण आलोचना के घेरे में है। कन्हैया लाल ने अपनी शिकायत में हत्या किए जाने की आशंका जताते हुए सुरक्षा माँगी थी। उनकी निर्मम हत्या के बाद से मुख्यमंत्री गहलोत इसके पीछे ‘आतंकी संगठन’ की भूमिका की ओर इशारा कर पुलिस की पीठ थपथपाते रहे हैं। हालाँकि अब तक की जाँच के निष्कर्षों के आधार पर NIA ने इसमें आतंकी संगठन की संलिप्तता के एंगल को खारिज कर दिया है।

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक NIA को मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद ने बताया है कि वे कन्हैयालाल की हत्या को सोशल मीडिया पर LIVE करना चाहते थे। लेकिन किसी कारणवश उन्हें इस हत्या का वीडियो बनाकर वायरल करना पड़ा। इनके साथ कई दूसरे लोग भी इस नेटवर्क में शामिल थे। एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाने की भी जानकारी सामने आ रही है, जिसमें शामिल अन्य लोगों की जाँच की जा रही है।

 साभार: ट्विटर यूजर नेताजी बॉन्ड)
 ‘मैं हिन्दू हूँ, मेरी जान मत लो, हम सच नहीं बोलेंगे’: कन्हैयालाल की जघन्य हत्या के विरोध में एकजुट हुए कर्नाटक के वेंडर्स

उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या के बाद राजस्थान पुलिस की लापरवाही की भारी आलोचना हो रही है, वहीं उत्तर प्रदेश पुलिस बेहद सतर्क और मुस्तैद नजर आ रही है। उदयपुर घटना का सोशल मीडिया पर समर्थन करने नोएडा पुलिस ने गुरुवार (30 जून 2022) को आसिफ खान नाम के शख्स को गिरफ्तार किया है। 

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राकेश टिकैत कन्हैया लाल हत्याकांड में दिया शर्मनाक बयान

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राकेश टिकैत कन्हैया लाल हत्याकांड में दिया शर्मनाक बयान
राजस्थान के उदयपुर में हुई टेलर कन्हैया लाल की निर्मम हत्या से पूरा देश स्तब्ध है

राजस्थान के उदयपुर में हिन्दू टेलर कन्हैया लाल तेली (Kanhaiya Lal Murder) की हत्या के मामले में एकजुटता दिखाने के लिए कर्नाटक () के हिन्दू दुकानदार आगे आए हैं। इसी क्रम में गुरुवार (30 जून 2022) को मैसूर में हिन्दू दुकानदारों ने मृतक कन्हैया लाल के प्रति एकजुटता दिखाने और उनकी हत्या के विरोध में पोस्टर अभियान शुरू किया। दरअसल, बीजेपी से निलंबित चल रही पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के पैगंबर मुहम्मद पर कथित बयान के समर्थन में उनके 8 साल के बेटे द्वारा गलती से सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करने को वजह बनाकर कन्हैयालाल तेली की हत्या कर दी गई थी।

किसान आंदोलन में हुई 700+ मौतों का काला सच

कृषि कानूनों को केंद्र सरकार निरस्त कर चुकी है। अब शोर उन कथित मौतों को लेकर जो इन कानूनों के विरोध में हुए किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई। केंद्र और राज्य सरकारों से किसान संगठन इन मृतक प्रदर्शनकारियों के परिवारों को मुआवजा देने की माँग कर रहे हैं। रिपोर्टों और किसान संगठनों के दावों के मुताबिक विरोध-प्रदर्शन के दौरान 700-750 कथित किसानों की मौत हुई। 

दिसंबर 2021 में जब केंद्र सरकार ने ऐसे मृतकों की सूची नहीं होने की बात कही थी तो कांग्रेस  के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने एक लिस्ट रखी थी। उन्होंने यह भी कहा था कि इन मृतकों के परिवार को मुआवजा केंद्र सरकार को देना चाहिए। जब किसान संगठन और कांग्रेस मुआवजे की माँग कर रही है, तब यह तथ्य भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी भी किसान प्रदर्शनकारी की मौत पुलिस कार्रवाई में नहीं हुई। अब इन मौतों का एक विस्तृत विश्लेषण सामने आया है जिससे पता चलता है कि ऐसे किसानों की संख्या काफी कम है, जिनकी मौत विरोध-प्रदर्शन स्थल पर हुई। किसान संगठन जिन करीब 700 मौतों का दावा कर रहे उनमें ज्यादातार की मृत्यु अधिक उम्र, बीमारी, दुर्घटना और ऐसे ही अन्य कारणों से हुई। इनमें से शायद ही कोई मौत सीधे तौर पर कृषि कानूनों के विरोध-प्रदर्शन से जुड़ी हुई है।

एक ब्लॉग पेज ने विरोध-प्रदर्शन के दौरान जान गँवाने वाले किसानों का रिकॉर्ड रख रखा है। एक्टिविस्ट और खोजी पत्रकार विजय पटेल जिनका ट्विटर हैंडल @vijaygajera है, ने इस रिकॉर्ड का गहन अध्ययन कर कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने रखे हैं। विजय ने एक लंबे थ्रेड में इन मौतों की प्रकृति के बारे में बताया है, जिससे साफ है कि ये सीधे तौर पर विरोध-प्रदर्शन से जुड़े नहीं है। कुछ मौतें संदिग्ध आत्महत्या हैं तो कुछेक कोरोना संक्रमण से जुड़ी हैं। मौत हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण होती है। लेकिन किसी की मृत्यु का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए करना एक नई तरह की नीचता है। जो तथ्य विजय ने सामने रखे हैं और मृतकों की सूची की पड़ताल के दौरान ऑपइंडिया के सामने आए, उससे जाहिर है कि जिन 700 मौतों को किसानों के विरोध-प्रदर्शन से जोड़कर सामने रखा जा रहा है कि उनको लेकर कुछ स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।

सबसे पहले तो यह स्पष्ट है कि 700 मौतों की संख्या का इस्तेमाल विपक्ष, किसान संगठनों, प्रोपेगेंडाबाजों और वामपंथी झुकाव वाले मीडिया संस्थान केंद्र सरकार की छवि धूमिल करने की नीयत से कर रहे हैं। कॉन्ग्रेस इसका दुष्प्रचार न केवल किसानों के विरोध-प्रदर्शन, बल्कि कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने के बाद भी राजनीतिक हथियार के तौर पर कर रही है। 

विजय ने जिन 702 मौतों की पड़ताल की है उनमें से केवल 191 की मौत दिल्ली की सीमा के विरोध-प्रदर्शन स्थलों पर हुई। 340 लोगों की मौत विरोध-प्रदर्शन स्थल से घर लौटने के बाद हुई। यह स्पष्ट नहीं है कि क्यों किसान संगठन फिर इनकी मौतों को भी विरोध-प्रदर्शन से जोड़ रहे हैं। क्या केवल इसलिए कि जिनकी मृत्यु हुई वह दिल्ली की सीमा के विरोध-प्रदर्शन स्थलों पर मौजूद थे अथवा मौत से पहले वहाँ आए थे? साफ है कि इन लोगों की मौत को विरोध-प्रदर्शनों से जोड़ना बेतुके आरोप के सिवा कुछ नहीं है। इनके अलावा 108 लोगों की मौत विरोध-प्रदर्शन स्थल से घर लौटते वक्त रास्ते में हुई। इसमें हिंट एंड रन के केस भी शामिल हैं। ऐसे में सवाल यह भी है कि दुर्घटना में मौत को कैसे किसानों के विरोध-प्रदर्शन से जोड़ा जा सकता? इसके अलवा 63 लोगों की मौत दिल्ली की सीमा से इतर अन्य प्रदर्शन स्थलों या अन्यत्र हुई है।

नदी में डूबा लेकिन नाम किसानों की मौत की लिस्ट में जोड़ा गया

मृतकों की सूची में एक नाम सुखपाल सिंह नाम के किसान का भी है। पोस्ट के अनुसार, सिंह ने कई बार दिल्ली सीमा पर विरोध-प्रदर्शनों में भाग लिया था। मगर मृत्यु के समय वह अपने पैतृक स्थान पर थे। रिकॉर्ड में कहा गया है कि सिंह अपने खेत की तरफ गए थे। इसी दौरान गलती से ब्यास नदी में डूब गए। इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि उनकी मृत्यु को एक प्रदर्शनकारी की मृत्यु क्यों कहा गया, जबकि वह अपने खेत में काम करने के दौरान मरे थे।

ट्रेन में चढ़ते समय हुई मौत, लेकिन सूची में जगह मिली

एक अन्य किसान की पहचान गुरलाल सिंह के रूप में हुई है, जो बहादुरगढ़ रेलवे स्टेशन पर एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का शिकार हो गए। वह घर लौटते समय ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, मगर उनका पैर फिसल गया और यह दुर्घटना घट गई। प्राय: ऐसे हादसे तभी होते हैं जब कोई चलती ट्रेन में चढ़ने की कोशिश करता है। हालाँकि यह उल्लेख नहीं है कि ट्रेन चल रही थी या नहीं, मगर यह स्पष्ट है कि 47 वर्षीय गुरलाल की मृत्यु रेलवे स्टेशन पर हुई थी, न कि विरोध स्थल पर। परमा सिंह नाम के एक अन्य प्रदर्शनकारी की भी एक ट्रेन दुर्घटना में मृत्यु हो गई। सिंह टिकरी सीमा से लौटते समय कथित तौर पर ट्रेन से गिर गए और उनकी मौके पर ही मौत हो गई। विरोध-प्रदर्शन बंद होने के बाद दिल्ली सीमा से लौटते समय जसविंदर सिंह नाम के एक अन्य किसान की मौत हो गई। वह कथित तौर पर एक ट्रैक्टर से गिर गए और उससे कुचल कर उनकी मौत हो गई। वहीं सुखविंदर सिंह नाम के एक अन्य प्रदर्शनकारी ने सड़क दुर्घटना में घायल होने के बाद दम तोड़ दिया। पीजीआई चंडीगढ़ में इलाज के दौरान उनकी मौत हुई।

संदिग्ध आत्महत्याएँ

सूची में 40 ऐसे नाम है जिन्होंने आत्महत्या की। इनमें से कई आत्महत्या की जाँच की जरूरत है। विजय ने एक किसान की तस्वीर शेयर की, जिसकी कथित तौर पर आत्महत्या से मौत हो गई थी। लेकिन उसके चेहरे पर चोट के निशान साफ नजर आ रहे थे।

विरोध के दौरान पहली बार आत्महत्या की खबर 16 दिसंबर, 2020 को संत बाबा राम सिंह की आई। उन्होंने कथित तौर पर खुद को गोली मार ली और एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उन्होंने दावा किया कि सरकार की आँखें खोलने के लिए आत्महत्या की। हालाँकि उनकी मौत को लेकर कई तरह के सवाल उठे थे।

17 दिसंबर, 2020 को बताया गया कि एक समाचार चैनल के एक एंकर से बात करते हुए चंडीगढ़ की अमरजीत कौर नाम की एक नर्स ने इस आत्महत्या पर सवाल उठाए। अपने बयान में उन्होंने कहा कि यह असंभव है कि संत राम सिंह आत्महत्या करे। उसने आगे सुसाइड नोट को लेकर सवाल खड़े करते हुए कहा कि यह उनकी हैंडराइटिंग से मेल नहीं खाता है। कौर ने कहा कि जिसने लोगों को समस्याओं से बाहर निकलने और जीवन में मजबूत रहने के लिए प्रोत्साहित किया हो, वह आत्महत्या नहीं कर सकता। उसने कहा कि वह लोगों से कहते थे कि आत्महत्या करना किसी बात का जवाब नहीं है। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।

दूसरी रिपोर्ट की गई मौत कुलबीर सिंह की थी, जिसने विरोध स्थल से वापस आने के बाद आत्महत्या कर ली थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह कर्ज के चलते तनाव में था।

एक अन्य किसान रंजीत सिंह ने भी फरवरी 2021 में धरना स्थल से लौटने के बाद आत्महत्या कर ली थी। उन पर 15 लाख रुपए का कर्ज था। रिपोर्ट्स की मानें तो उन्हें बैंक से कुर्की का नोटिस मिला था। लखविंदर सिंह कॉमरेड ने भी आत्महत्या की। उन पर 15 लाख रुपए का कर्ज था। यहाँ तक कि रिपोर्ट्स में कहा गया था कि कर्ज के चलते उन्होंने खुदकुशी कर ली।

मुकेश को जिंदा जलाने का मामला

17 जून 2021 को, यह बताया गया कि मुकेश नाम के एक किसान को उसके साथी किसानों ने टिकरी बॉर्डर पर कथित रूप से आग लगा दी थी। मृतक ने प्रदर्शनकारियों के साथ नशा किया और बाद में कथित तौर पर मारपीट के बाद उसे आग के हवाले कर दिया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुकेश को जातिसूचक गालियाँ दी गईं। सोशल मीडिया पर उसे आग लगाने का एक वीडियो भी वायरल हो गया था, जिसमें आग लगाने से पहले जातिवादी गालियाँ दी रही थी।

मौत की वजहें

अज्ञात बीमारी जो कोरोना या कुछ और भी हो सकती है जो शायद प्रदर्शन स्थल से लेकर लोग गए होंगे से 307 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। हर्ट अटैक से 203 लोगों की जान गई। मौत के लिए ज्ञात यह सबसे बड़ी वजह है।

विजय ने एक ट्वीट में बताया है कि दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों को राष्ट्रीय और राज्य औसत के हिसाब से, मौत के प्राकृतिक वजह के रूप में चिह्नित किया जाना चाहिए था और इसके लिए सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

मौतों के रिकॉर्ड से पता चलता है कि हार्ट अटैक और अज्ञात कारणों के अलावा, किसानों की मौत हिट एंड रन, दुर्घटना, संदिग्ध आत्महत्या और निमोनिया, कोविड-19, ब्रेन स्ट्रोक, कोल्ड स्ट्रोक, पेट में संक्रमण जैसी विभिन्न बीमारियों की वजह से हुई। इस सूची में 3 ऐसे लोगों का भी जिक्र है जिनकी हत्या हुई। लेकिन उस दलित सिख लखबीर सिंह का नाम नहीं है जिसकी हत्या कुंडली बॉर्डर पर अक्टूबर 2021 में निहंग सिखों ने बेरहमी से कर दी थी।

बुजुर्गों को लालच दिया गया

एक ट्विटर यूजर जिसका हैंडल @Hindavi_Swarajy है, ने नवंबर 2021 में एक थ्रेड प्रकाशित किया था। इसमें उन्होंने बताया था कि उनके दादा को विरोध प्रदर्शन स्थल पर फुसलाकर ले जाने के लिए कैसे लोग उनके घर आए थे। उनके दादा की उम्र 80 वर्ष से अधिक है। उन्होंने घर आए लोगों को अपने दादा को प्रदर्शन में ले जाने से मना कर दिया, लेकिन उनके इलाके के कई बुजुर्ग प्रदर्शन में शामिल होने गए थे।

उन्होंने बताया था कि प्रदर्शन स्थल पर 7 लोगों की मौत हो गई थी। उन्होंने बताया था, “दुर्भाग्य से प्रदर्शन स्थल पर सात लोगों की मौत हो गई। अपने बीमार बुजुर्गों की सेवा करने, उनका इलाज करवाने की जगह मेरे मुहल्ले के लालची लोगों ने उन्हें प्रदर्शन में शामिल होने भेज दिया। अब वे गिद्ध की तरह मुआवजा मॉंग रहे और मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहे। ऐसे लोगों को वाहेगुरु कभी क्षमा नहीं करेंगे।”

मौतों को कोई उचित नहीं ठहरा सकता। मौतें हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण होती हैं और पीड़ित परिवार से काफी कुछ छीन लेती है। लेकिन, मौतों को राजनीतिक तमाशा बनाना और उनका इस्तेमाल व्यवस्था विरोधी दुष्प्रचार के लिए करना, एक ऐसी नीचता है जिससे हर किसी को दूर रहना चाहिए।

Pulwama Attack: टी-सीरीज ने पाकिस्तानी सिंगर्स के खिलाफ उठाया ये बड़ा कदम

एमएनएस चित्रपट सेना के हेड अमेय खोपकर ने कहा, ‘हमने इंडियन म्यूजिक कंपनी जैसे टी-सीरीज, सोनी म्यूजिक, वीनस, टिप्स म्यूजिक आदि कंपनी से बात की थी और उन्हें कहा था कि वो पाकिस्तानी सिंगर्स के साथ काम न करें। इन कंपनियों को उनके साथ काम करना जल्दी बंद करना होगा नहीं तो हम इनके खिलाफ अपने स्टाइल से एक्शन लेंगे।’
पुलवामा में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। पूरा देश इस घटना से गुस्से में है। फरवरी 16 को मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की फिल्म विंग ने फरवरी 16को संगीत कंपनियों से पाकिस्तानी गायकों के साथ काम नहीं करने के लिए कहा है।
हाल ही में भूषण कुमार की टी सीरीज कंपनी पाकिस्तानी सिंगर राहत फतेह अली खान और आतिफ असलम के साथ 2 अलग-अलग गानों के लिए जुड़े थे। हालांकि खोपकर ने दावा किया है कि उन्होंने हमारी चेतावनी के बाद गानों को हटा दिया है।
इससे पहले 2016 में उरी हमले के बाद राज ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी ने भारत में काम करने वाले सभी पाकिस्तानी कलाकारों को देश छोड़ने के लिए कहा था।
पुलवामा आतंकी हमले के विरुद्ध छात्र भी सडकों पर 
पुलवामा में हुए आतंकी हमले के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए। वहीं छात्र संगठनों ने भी रोष जाहिर किया। छात्र संगठनों ने अपने-अपने कॉलेजों में इसका विरोध किया। वहीं संगठनों ने कैंडल मार्च भी निकाला। आतंकी हमले की कड़ी निंदा करते हुए छात्र संगठनों ने हमला करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की।  राजकीय पॉलिटेक्निक पित्थुवाला में पुलवामा में आतंकी में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी। कॉलेज प्राचार्य एके सक्सेना ने कहा कि पूरे देश के लिए शोक का विषय है। इसके खिलाफ पूरे देश को एक होना चाहिए। श्रद्धांजलि सभा में समस्त छात्र और शिक्षक मौजूद रहे। स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों को श्रद्धांजलि दी। इस दौरान राज्यसचिव देवेंद्र रावल, जिला सचिव हिमांशु चौहान, नितेश खंतवाल, सुमन, सोनाली, सुप्रिया, आशु, शैलेंद्र , मनीष, मनोज, इंदु  मौजूद रहे। 
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पुलवामा आतंकी हमले के बाद बड़ा कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने मीरवाइज उमर फारुक समेत पांच अलगाववादी नेताओ.....

वहीं उत्तरांचल विश्वविद्यालय में सीआरपीएफ के जवानों को श्रद्धांजलि दी गई।  विवि के चांसलर जितेंद्र जोशी के नेतृत्व में कैंडल मार्च निकाला गया। लॉ कॉलेज के प्राचार्य डा. राजेश बहुगुणा ने छात्रों से आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार रहने की अपील की। छात्रों ने डीएवी कॉलेज से मार्च निकाला। वहीं एसजीआरआर पीजी कॉलेज छात्रसंघ ने कॉलेज गेट से कारगी चौक तक कैंडल मार्च निकाला। सीएमआई अस्पताल में डाक्टरों, कर्मचारियों एवं सीआईएमएस नर्सिंग कॉलेज की छात्राओं ने दो मिनट का मौन रख श्रद्धांजलि दी।
अखिल गढ़वाल सभा ने शहीदों को दी श्रद्धांजलि 
देहरादून। अखिल गढ़वाल सभा की ओर से भी शहीदों को श्रदांजलि दी। सभा के अध्यक्ष रोशन धस्माना, पूर्व सैनिक जगदीश प्रसाद रतूड़ी, कृष्ण मोहन बहुगुणा आदि मौजूद रहे।
राज्यपाल ने किए कार्यक्रम रद
राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने अपने सभी कार्यक्रम और मुलाकातों को रद कर दिया। राजभवन में चार बजे आयोजित शोकसभा में राजभवन अधिकारी और कर्मचारी एकत्र हुए। राज्यपाल ने आतंकी हमले को कायरतापूर्ण बताया।
भाजपा ने दी श्रद्धांजलि, भाजयुमो ने किया प्रदर्शन 
देहरादून। भाजपा युवा मोर्चा ने आतंकी हमले में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी। साथ ही पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन किया।भाजपा युवा मोर्चा से जुड़े कार्यकर्ता लैंसडौन चौक पर एकत्र हुए। यहां पाकिस्तान का पुतला फूंककर प्रदर्शन किया। उधर, शहीद जवानों को भाजपा प्रदेश कार्यालय में भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। वरिष्ठ उपाध्यक्ष ज्योति प्रसाद गैरोला की अध्यक्षता में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में विधायक हरबंस कपूर, महामंत्री नरेश बंसल डॉ. देवेंद्र भसीन आदि मौजूद रहे।
आराघर के कारोबारियों ने निकाला कैंडल मार्च
देहरादून। पुलवामा में आतंकवादी हमले में शहीद सैनिकों को आराघर व्यापार मंडल और क्षेत्र के लोगों ने शुक्रवार शाम कैंडल मार्च निकालकर श्रद्धांजलि दी। कारोबारियों ने लक्ष्मी नारायण मंदिर से आराघर चौक तक कैंडल मार्च निकाला और वीर शहीदों की आत्मशांति के लिए दो मिनट का मौन रखा। इस मौके पर ऋषि नंदा, सौरभ शर्मा, अंकित वर्मा, महेश कौशल, जगमोहन मल्होत्रा, बलवंत नेगी, हाविंदर नेगी, सतीश कनौजिया, बिशाल नेगी, राकेश कुमार, गोपाल कनौजिया, रीना देवी मौजूद रहे।
पूर्व सैनिक संगठन ने दी शहीदों को श्रद्धाजंलि 
देहरादून। पुलवामा शहीद जवानों को पीबीओआर पूर्व सैनिक कार्यकारिणी ने श्रद्धांजलि दी। इस दौरान शोक सभा में पूर्व सैनिक संगठन के महसचिव कैप्टन आरडी शाही, संगठन मंत्री कैप्टन सुरेन्द्र सिंह बिष्ट, यूडी जोशी, वाईडी शर्मा, मेजर शंकर क्षेत्री, महिला अध्यक्ष राजकुमारी थापा, रमेश रावत, कैलाश चन्द, केबी गुरुंग, मेजर प्रेम सिंह रावत, विनोद बलूनी, महिला सचिव माधुरी राई, बीर बहादुर, जेबी राना, राजेश रावत मौजूद रहे।
पेंशनर्स एसोसिएशन ने जताया दुख
सेवानिवृत राजकीय पेंशनर्स संगठन से जुड़े सदस्यों की ओर से गांधी पार्क में शहीदों के सम्मान में दो मिनट का मौन रख श्रद्धांजलि दी गई। इस दौरान पीडी गुप्ता, गिरीश भट्ट, संतोष कुमार, नारायण सिंह राणा, एमएस गुसाईं, जेपी टुकेजा, वेद किशोर शर्मा, जेएन अग्रवाल आदि मौजूद रहे।
दून न्यूज पेपर एजेंट एसोसिएशन ने जताया दुख
दून न्यूज पेपर एजेंट एसोसिएशन ने भी पुलवामा घटना पर गहरा दुख व्यक्त कर शहीदों की आत्मा की शांति की कामना की। इसमें राजवीर जागी, हरप्रीत, ललित जोशी, राजकुमार तिवारी, कैलाश,मनीष, विजेंद्र सेमवाल आदि मौजूद रहे। अजबपुर खुर्द में भी शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई।